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चमन लाल डिग्री कॉलेज लंढौरा में राजनीतिक विज्ञान विभाग का दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार


दक्षिण एशिया को भौगोलिक ऐतिहासिक व सांस्कृतिक रूप से एक ही इकाई के रूप में देखा जाना चाहिए।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

लंढौरा। दक्षिण एशिया को भौगोलिक ऐतिहासिक व सांस्कृतिक रूप से एक ही इकाई के रूप में देखा जाना चाहिए। लेकिन वर्तमान में बाहरी ताकतों के बढ़ते प्रभाव में इस इकाई को छिन्न-भिन्न कर दिया है। इस क्षेत्र का सबसे बड़ा तेज होने के कारण इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता बहाली में भारत की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। उक्त उद्गार चमन लाल महाविद्यालय लंढौरा में दक्षिण एशिया में राजनीतिक स्थिरता एवं विकास में भारत की भूमिका विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रुप में बोलते हुए चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर अर्चना शर्मा ने कही। उन्होंने कहा की 80 के दशक में भारत ने म्यांमार और तिब्बत जैसे क्षेत्रों से अपना ध्यान हटाया जिसका फायदा चीन ने उस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ा कर उठाया। जिससे इस क्षेत्र में चीन का दखल बढ़ गया और इससे दक्षिण एशिया की स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। भारत चीन की ओर से बढ़ते हुए खतरे को नहीं भाया और इस खतरे से बचा नजर आया जिसके परिणाम स्वरूप चीन आज विश्व में एक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है। दक्षिण एशिया में चिता के लिए आवश्यक है कि भारत स्वयं को आर्थिक सैनिक सांस्कृतिक रूप से एक शक्तिशाली देश के रूप में स्थापित करें इसी उम्मीद से केवल दक्षिण एशियाई देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया भारत की ओर देखती है। वैश्विक मामलों की भारतीय परिषद से आई डॉक्टर दीपिका सारस्वत ने परिषद की स्थापना उसके उद्देश्यों को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि भारत विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का वैचारिक पक्ष रखता है। उन्होंने कहा कि डोकलाम विवाद में भारत ने कूटनीतिक स्तर पर बिना लड़े चीन को पीछे धकेल कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि को मजबूत किया उन्होंने कहा कि पिछले कुछ समय में दक्षिण एशिया में भारत की भूमिका मजबूत हुई है।

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