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नारी अनादि काल से ही बन्धनयुक्त रही है :उमा घिल्डियाल


नारी ईश्वर की सबसे सुन्दर कृति है। वह शक्ति और सन्तुलन का अद्भुत सम्मिश्रण है। कुछ दुराग्रहों के कारण उसकी शक्तियों को दबाया गया और उसे एक शोषित और उपेक्षित जीवन जीने पर मजबूर किया गया।

रिपोर्ट  - à¤…ंजना भट्ट घिल्डियाल

नारी ईश्वर की सबसे सुन्दर कृति है। वह शक्ति और सन्तुलन का अद्भुत सम्मिश्रण है। कुछ दुराग्रहों के कारण उसकी शक्तियों को दबाया गया और उसे एक शोषित और उपेक्षित जीवन जीने पर मजबूर किया गया। आज स्थितियाँ बदली हैं। आज नारी ने स्वयं को पहचाना है और पुरूषों ने भी उसकी राह के काँटों को बीनने तथा उसका मार्ग प्रशस्त करने के लिए अथक प्रयास किए हैं।शक्ति स्वरूपिणी नारी को उसकी वास्तविक स्थिति का बोध कराने के लिए प्रयासरत श्री लोकेश नवानी जी ने महिला उत्तरजन के बैनर तले एक गोष्ठी श्रीनगर में वाटिका भोजनालय के हाँल में आयोजित की।गोष्ठी की अध्यक्षता श्रीमती उमा घिल्डियाल ने की।गोष्ठी में वरिष्ठ साहित्यकार डा0 विष्णुदत्त कुकरेती,वरिष्ठ समाजसेवी अनिल स्वामी,युवा समाजसेवी प्रभाकर बाबुलकर मंचासीन सहयोगी के रूप में सम्मिलित थे।कार्यक्रम का प्रारम्भ करते हुए लोकेश नवानी ने महिला उत्तरजन के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि नारी स्वयं अपने अस्तित्व को भूल चुकी है। उसने अपने -आपको पुरूषों द्वारा बनाई हुई निश्चित सीमाओं में बाँध लिया है।अपने मुँह को सी दिया है और पैरों में बेडियों को धारण कर मूक प्राणी बने रहने में ही अपने कार्यों की इतिश्री समझ रही है।उसकी राजनीतिक चेतना केवल वोट देने और प्रधानपति या जिलापंचायत पति की प्रतिच्छाया बनने तक सीमित है। जनगीतों के द्वारा गोष्ठी की खूबसूरत शुरूआत करते हुए उन्होंने कहा कि अब समय महिला के चुप रहने का नहीं है,वरन् गरज कर अपनी बात कहने का है। गोष्ठी में कवयित्री और शिक्षिका राधा मैंदोली ने कहा कि विकसित सोच को महिलाएँ हाथों हाथ लेती हैं।हम जो भी कार्यक्रम करें, उनमें महिलाओं की परेशानियों का अवश्य जिक्र करें,साथ ही साथ महिलाओं की काउंसिलिंग भी होनी चाहिए । डा0 कविता भट्ट ने अपने वक्तव्य में महिला उत्तरजन की पहल का स्वागत किया।जयन्ती कुंवर ने कुरीतियों के विरुद्ध आवाज उठाने पर बल दिया। प्रसिद्ध गढ़वाली कवयित्री और शिक्षिका आरती पुण्डीर ने उत्साही और इच्छुक महिलाओं को उत्तरजन से जोड़ने पर बल दिया। माँ फ़ाउन्डेशन से जुड़ी ,कवयित्री और शिक्षिका प्रभा खण्डूड़ी ने बच्चों को संस्कारित बनाने पर बल दिया और कहा कि परिवार का साथ मिलने पर ही महिला आगे बढ़ी है। रीजनल रिपोर्टर की संयुक्त सम्पादक गंगा असनोड़ा ने कहा कि स्त्री के भीतर की जो आग और चेतना है ,उसे बाहर लाने के लिए प्रेरणा की आवश्यकता है। चेतना के द्वार खोले जाने चाहिए । नारी को अपने हलकों का ज्ञान होना चाहिए । जागरूकता क्यों और कैसे हो यह जानना भी जरूरी है। प्रभाकर बाबुलकर ने सामाजिक कार्यक्रमों की भागीदारी को उपयोगी बताया। डा0 कुकरेती ने बताया कि नारी को अपनी शक्तियों को जानने की आवश्यकता है।नारी की स्थिति पर मन्थन किया जाना चाहिये ।परिवर्तन के लिए सजगता आवश्यक है। अनिल स्वामी ने कहा कि माँ का संस्कारित होना आवश्यक है।इच्छागिरि जैसी महिलाओं ने उस समय में समाजसेवा का कार्य किया है,जब महिलाएँ बहुत पीछें थीं। अन्त में कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं उमा घिल्डियाल ने कहा कि नारी अनादि काल से ही बन्धनयुक्त रही है।इतना अवश्य रहा कि उसका चेतन बन्धन में रह कर भी छटपटाता रहा और उसकी पीड़ा कभी गीतों के,कभी लोककथाओं के ,कभी पखाड़ों के माध्यम से व्यक्त होती रही है।आज वह बाहर निकल रही है,आगे बढ़ रही है,किन्तु अभी उसकी चेतना पूर्ण रूप से खिली नहीं है।उसे जागरूकता की आवश्यकता है।राजनीति में उसे अभी उसका वास्तविक मुकाम हासिल नहीं हुआ है। कार्यक्रम में वक्ताओं के अतिरिक्त विमला जोशी,मनोरम बनाई,नीलमरावत, निर्मला कण्डारी,सुनीता रावत,अंजना घिल्डियाल, पूनम रतूड़ी,संगीता फारसी,कुसुम खण्डूरी,रिंकी बंगवाल,प्रियंका असनोड़ा, अनीता काला,कविता रमोला,मकानी पंवार,रेखा चमोली,कमला देवी,सुनीता कठैत आदि उपस्थित थीं।साहित्यिक संस्था परिवेश के कोषाध्यक्ष सुबोध पटवाल और प्रभाकर का कार्यक्रम को आयोजित करने में विशेष योगदान रहा।कार्यक्रम का संचालन लोकेश नवानी ने किया। श्रीनगर में महिला उत्तरजन के कार्यों को आगे बढाने के लिए उमा घिल्डियाल को अध्यक्ष चुना गया। शीघ्र ही अन्य सदस्यों को चयनित कर संस्था के कार्यों को आगे बढ़िया जायेगा।

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