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पृथ्वी के अस्तित्व को बचाने रखने के लिये पर्यावरण संरक्षण नितांत आवश्यक - डा0 अशोक कुमार बडोनी


पृथ्वी पर रहने वाले जीव जन्तुओं, और पेड़ पौधों को बचाए रखने तथा दुनियाभर में पर्यावरण के प्रति जागरुकता बढाने के उदेश्य से 22 अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस मनाया जाता है।

रिपोर्ट  - à¤…ंजना भट्ट घिल्डियाल

पृथ्वी पर रहने वाले जीव जन्तुओं, और पेड़ पौधों को बचाए रखने तथा दुनियाभर में पर्यावरण के प्रति जागरुकता बढाने के उदेश्य से 22 अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। इस दिवस की शुरुआत 1970 में हुई।इस दिवस की स्थापना अमेरिकी सीनेटर गेलार्ड नेल्सन ने पर्यावरण शिक्षा के रूप में की थी। पृथ्वी पर रहने वाले जीव जन्तुओं और पेड पौधों को बचाए रखने तथा दुनियाभर में पर्यावरण के प्रति जागरूकता के उद्देश्य से विश्व पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। पृथ्वी हमारी धरोहर है, इसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। प्रकृति ने हमें बहुमूल्य प्राकृतिक सम्पदा प्रदान की है जो सीमित है। किन्तु मनुष्य ने अविवेकपूर्ण कृत्यों से बहुत ही निर्दयतापूर्वक धरती की इस सम्पदा का दोहन किया। जिससे प्राकृतिक असन्तुलन की स्थिति पैदा होती जा रही है। जिसके चलते भूकम्प, अत्यधिक वर्षा, सूखा, बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है।इसलिये समय रहते हमें पृथ्वी को बचाना होगा। धरती का सम्मान करना होगा और धरती पर पर्यावरण और पारिस्थितिक तन्त्र को बनाये रखने के लिये अपना योगदान देना होगा। पृथ्वी पर पर्यावरण को बचाने के लिये हमे रिसाइकिल प्रक्रिया को बढ़ावा देने के साथ- साथ पालिथीन के उपयोग को नकारना होगा, अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना होगा, पर्यावरण प्रदूषण रोकना होगा तथा स्वछ्ता कार्यक्रम चलाकर धरती को स्वच्छ और सुन्दर बनाना होगा, पर्यावरण यदि स्वच्छ रहेगा तभी हम विभिन्न घातक बीमारियो से भी बचे रहेंगे। यह बात तो कोरोना ने भी हमें समझा दी है कि बार - बार हाथ धोने का अर्थ स्वच्छता के लिये हमें प्रेरित किया जा रहा है। ताकि हम ऐसी घातक बीमारी से बच सकें। इस पृथ्वी दिवस की थीम - " री स्टोर दी अर्थ " है जिसके अन्तर्गत क्लाइमेट चेंज से लेकर प्रदूषण और डिफारेस्टेशन तक कई मुद्दे शामिल हैं।भारतीय परम्परा भी अनादिकाल से पर्यावरण संरक्षण के लिये संवेदन शील रही है, हमारे वेदों और पुराणों में भी पर्यावरण संरक्षण को विशेष महत्व दिया गया है। अथर्ववेद में कहा गया है कि पृथ्वी हमारे लिये माता के समान पूज्य है "माता भूमि: पुत्रोहं पृथिव्या:" मनुस्मृति और मत्स्यपुराण मे वृक्षों को काटने वालों को दण्ड देने की बात कही गयी है- "वृक्षं तु सफलं छित्वा सुवर्ण दण्डमर्हति, द्विगुण दण्डयेच्चैवं पथि सीम्नि जलाशये " । मनुस्मृति में वृक्षों को प्राणवान माना गया है- " अन्त: संज्ञा भवन्त्येते सुखदु:खसमन्विता " जिस बात को प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक सर जे0 सी0 बोस ने प्रायोगिक रूप से सिध्द किया कि वृक्षों में उत्तेजना का संचार होता है अर्थात् पौधों में जीवन होता है और वे हमारी तरह ही सुख एवं दु:ख का अनुभव करते हैं, जिसको उन्होने क्रेस्कोग्राफ यंत्र द्वारा सिध्द किया। हमारी पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है जहां जीवन है, अन्य ग्रहों पर तो जीवन की सम्भावना को तलाशा जा रहा है। फिर जहां जीवन है उसे तो सहेज कर रखा जाना चाहिये, कहीँ ऐसा न हो कि अन्य ग्रहों पर जीवन की सम्भावना को टटोलते टटोलते हम पृथ्वी ग्रह को न खो देँ।पृथ्वी ने हमें बहुमुल्य सम्पदा प्रदान की है किन्तु मनुष्य ने पृथ्वी को प्लास्टिक जैसे विषैले पदार्थों से दूषित करने का कार्य किया है। प्रकृति की अवहेलना के परिणामस्वरूप ही विभिन्न आपदाएं अब तक आ चुकी हैं । पारिस्थितिकी को ध्यान में रखते हुए ही विकास कार्य किये जाने चाहिये ,चाहे सड़क निर्माण कार्य हों या जल विधुत परियोजना कार्य । यदि सुनियोजित ढंग से विकास कार्य नहीं होंगे तो उसके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। अतः पर्यावरण को बचाने के लिये सभी लोगों को आगे आना होगा तभी धरती बचेगी और तभी जीवन बचेगा-डा0 अशोक कुमार बडोनी, प्रवक्ता जीव विज्ञान, रा0 इ0 का0 मन्जाकोट, चौरास, टिहरी गढ़वाल।

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