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मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश, योगी आदित्यनाथ को अवतरण दिवस की शुभकामनायें


विश्व पर्यावरण दिवस की शुभकामनायें देते हुये कहा कि वृक्षारोपण करना, उपहार स्वरूप पौधों को देना और पौधों का संरक्षण करना सबसे सरल; सबसे सहज़ और सबसे श्रेष्ठ तरीका है, इससे हम अपनी पृथ्वी और अपने पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 5 जून। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने आज विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर रूद्राक्ष का पौधा रोपित कर देशवासियों को विश्व पर्यावरण दिवस की शुभकामनायें देते हुये कहा कि वृक्षारोपण करना, उपहार स्वरूप पौधों को देना और पौधों का संरक्षण करना सबसे सरल; सबसे सहज़ और सबसे श्रेष्ठ तरीका है, इससे हम अपनी पृथ्वी और अपने पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं। आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर जी की पुण्यतिथि पर परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों और परमार्थ परिवार के सदस्यों ने उन्हें भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित की। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने यशस्वी मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश, माननीय योगी आदित्यनाथ जी को उनके अवतरण दिवस पर शुभकामनायें देते हुये कहा कि भारतीय संस्कृति और धार्मिक मूल्यों की रक्षा हेतु योगी जी का अभूतपूर्व योगदान है। जीवेम् शरदः शतम्। परमार्थ निकेतन परिवार ने योगी के प्राकट्य दिवस के अवसर पर विशेष यज्ञ कर दीर्घायु की प्रार्थना की। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि यह समय एक-एक पेड़ और जल की एक-एक बूंद को बचाने का है। यह समय खुद को सरेण्डर करने का समय है। हमें हमारी धरती और आने वाली पीढ़ियों के बेहतर भविष्य के लिए मिलकर प्रयास करना होगा। जहां पर भी बंजर भूमि हैं वहां पर पौधे लगायें, गांवों और शहरों को हरा-भरा करें, घरों के आस-पास खाली पड़ी जमीनों को बाग-बगीचों में बदलें तो ही पृथ्वी पर जीवन की कल्पना की जा सकती है। वर्तमान समय में चारों ओर कांक्रीट के जंगल बढ़ते जा रहे हैं, तमाल कटते जा रहे हंै, कदम्ब छंटते जा रहे है। पानी कम हो रहा है, तापमान बढ़ता जा रहा है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं जिससे ये प्यारा सा हरा भरा नीला ग्रह तपते गोले में परिवर्तित हो रहा है। स्वामी के कहा कि धरती को हमारी आवश्यकता नहीं है परन्तु बिना उसके हमारे जीवन की कल्पना भी नहीं, की जा सकती इसलिये धरती का शोषण नहीं, पोषण करें, दोहन नहीं संवर्द्धन करें। हमारे ऋषियों ने हमें प्रकृति के अनुरूप जीने का मार्ग दिखाया। गांधी जी ने भी कहा कि ’’धरती के पास सब लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पर्याप्त संसाधन हैं, परन्तु एक भी व्यक्ति के लालच को पूरा करने के लिये पर्याप्त संसाधन नहीं हंै।’’ यह कथन इशारा करता है कि हमें ग्रीड कल्चर से नीड कल्चर; ग्रीड कल्चर से ग्रीन कल्चर; नीड कल्चर से नये कल्चर; यूज एंड थ्रो कल्चर से यूज एंड ग्रो कल्चर की ओर बढ़ना होगा।

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