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दलाई लामा की चार प्रतिज्ञाओं पर अमल करने की तत्काल आवश्यकता: तिब्बती राष्ट्रपति पेन्पा श्रृंग


भारतीय प्राचीन ज्ञान परंपरा से बना रहे हम भारत के लिए पाठ्यक्रम: प्रो. गेशे --हम भारतीयों के सहोदर हैं तिब्बती: पदम सिंह --तिब्बत मसले पर यूएन नकारा साबित: प्रो. हरिकेश --मानवाधिकार हनन पर चीन को घेरने की जरूरत: तेन्ज़िन जॉर्डन

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

देहरादून। तिब्बत के सर्वोच्च धर्मगुरु दलाई लामा के 86वें जन्मदिन पर भारत-तिब्बत समन्वय संघ (बीटीएसएस) द्वारा आयोजित वेबिनार में तिब्बत की निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति पेन्पा श्रृंग का संघ को भेजे अपने विशेष वीडियो संदेश में कहा गया कि दलाई लामा जी की सभी चार प्रतिज्ञाओं पर तत्काल अमल किए जाने की आवश्यकता है लेकिन चौथी सबसे महत्वपूर्ण है, जिसमें कहा गया है कि भारत की प्राचीन संस्कृति की ज्ञान संपदा से वर्तमान पीढ़ी को जागरूक किए जाने की जरूरत है। उन्होंने बीटीएसएस के कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहा कि तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए प्रभावी कार्य किए जाने की दिशा में इस संगठन के प्रयासों की सराहना की जानी चाहिए। वेबीनार के प्रारंभ में सारनाथ, वाराणसी के केंद्रीय तिब्बती विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने दलाई लामा के जन्म दिवस पर विशेष प्रार्थना कर उनके दीर्घायु की कामना की। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गेशे नवांग सैमतेन ने अपने उद्बोधन में कहा कि 1959 में चीन द्वारा जबरन कब्जा करने के बाद 80 हजार तिब्बतियों के साथ दलाई लामा भारत में आए और यहां आकर बस गए। वह भले ही कुछ वर्षों से तिब्बतियों के लिए राजनीतिक प्रमुख का काम नहीं कर रहे हैं लेकिन धार्मिक, सांस्कृतिक व आध्यात्मिक नेतृत्व के अंतर्गत ही वह पूरी दुनिया को व नैतिकता, करुणा व शांति का मार्ग दिखा रहे हैं। उन्होंने कहा कि दलाई लामा के जीवन से हमें प्रेरणा उसी प्रकार से लेनी चाहिए क्योंकि वह भारत की प्राचीन विद्या परंपरा को दुनिया की सबसे समृद्ध विद्या मानते हुए कहते हैं कि यही आज भी प्रासंगिक है क्योंकि आधुनिक शिक्षा से आत्मनिर्भरता आ सकती है लेकिन यहां की ज्ञान परंपरा से सुख, शांति व साधना की प्राप्ति होगी। प्रो गेशे ने कहा कि परम् पावन के मार्गदर्शन में भारतीय दर्शनों को समाहित करके यह विश्वविद्यालय कक्षा नवीं तक के एक नैतिक पाठ्यक्रम की रचना कर रहा है। कक्षा तीन तक का काम पूरा हो गया है। बाकी पर काम चल रहा है। दिल्ली सरकार ने इसे अपने यहां लागू किया है लेकिन पूरे देश में यह लागू किए जाने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पश्चिम उत्तर प्रदेश क्षेत्र के क्षेत्रीय प्रचार प्रमुख पद्म सिंह जी ने इस अवसर पर हरिद्वार से जुड़ते हुए कहा कि संघ और दलाई लामा के कार्य एक ही हैं। वसुधैव कुटुंबकम की भारतीय संस्कृति की भावना से हम दोनों ही यह कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि तिब्बती हमारे अनुज नहीं बल्कि सहोदर है। यही कारण है कि 1951 में "हिंदी चीनी, भाई भाई" का नारा लग रहा था और तत्कालीन संघ प्रमुख गुरु गोलवलकर जी ने खतरे को पहले ही भागते हुए तिब्बत की सुरक्षा के लिए आगाह कर दिया था। उन्होंने कहा कि तिब्बत की स्वतंत्रता की आवश्यकता को लेकर संघ के तृतीय प्रमुख बालासाहेब देवराज जी व चतुर्थ प्रमुख रज्जू भैया मुखर थे। रज्जू भैया व वरिष्ठ प्रचारक अधीश जी के योजनाबद्ध कार्यों का ही परिणाम है कि संघ तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए और तेजी से आगे आकर बात करने लगा है। उन्होंने कहा कि भारत- तिब्बत समन्वय संघ उसी नीति अनुरूप कार्य करते हुए अभी इसी वर्ष जनवरी, 2021 में स्थापित हुआ है लेकिन उसकी गति व प्रगति देखकर स्पष्ट है कि अब चीन के विरुद्ध निर्णायक स्थिति शीघ्र बनेगी। उन्होंने कहा कि दलाई लामा को बोधिसत्व का अवतार मानते हैं और बोधिसत्व को भगवान बुद्ध का और भगवान बुद्ध को विष्णु का अवतार हम मानते हैं इसलिए तिब्बती और हम एक हैं, यह भाव तिब्बत और भारत को एक करता है। जयप्रकाश नारायण विश्वविद्यालय के पूर्व वीसी प्रो. हरिकेश सिंह ने कहा कि तिब्बत की स्वतंत्रता ही भारत की सुरक्षा है। यही मूल मंत्र को सामने रखकर कार्य करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, मधु लिमये और जॉर्ज फर्नांडिस ने अपने काल में ही तिब्बत की सुरक्षा को इसीलिए जरूरी समझा था। प्रो. सिंह ने कहा कि भारत नेपाल व तिब्बत के लोग आपस में सहोदर है और मौलिक सनातन का स्वरूप यही देखने को मिलता है। यही पैन-सनातनिज्म है और इसी को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है हालांकि तिब्बत को चीन ने हड़प कर दुनिया में सबसे पवित्र व संवेदनशील तिब्बती लोगों पर अत्याचार शुरू किए लेकिन विश्व मंच पर चीन के विरुद्ध कोई ओरभावी स्वर न उठा। संयुक्त राष्ट्र भी नाकारा साबित हुआ लेकिन निरन्तर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। तिब्बत सरकार के दिल्ली स्थित समन्वय केंद्र के उप समन्वयक तेन्ज़िन जॉर्डन ने कहा कि दलाई लामा तो विश्व के लिए मैत्री व करुणा के साक्षात धरोहर हैं लेकिन चीन का तिब्बत पर जबरन आधिपत्य किए जाने से जो मानवाधिकार का हनन तिब्बती मूल के लोगों पर हुआ है, वह दुनिया को देखने की जरूरत है। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की पत्नी डॉ रश्मि त्यागी रावत भी कार्यक्रम से जुड़ीं लेकिन नेटवर्किंग समस्या से उनका उद्बोधन न हो सका। कार्यक्रम का संचालन शिमला से अखिलेश पाठक ने और अतिथियों व प्रतिभागियों का धन्यवाद वाराणसी के विवेक सोनी ने किया। गूगल मीट पर आयोजित सेमिनार में दलाई लामा पर आधारित दो लघु फिल्में भी दिखाई गई। वेबिनार में केंद्रीय संयोजक हेमेन्द्र तोमर, राष्ट्रीय महामंत्रीद्वय अरविंद केसरी, विवेक मान के अलावा अन्य पदाधिकारियों में प्रो. राघवेंद्र स्वामी, महेश नारायण तिवारी, गजानन जोशी, कर्नल राजेश तंवर आशीष देवगन, भागवत प्रसाद पांडेय, मनीषा मुंढे, प्रदेश महामंत्री उत्तराखंड मनोज गहतोड़ी, आशुतोश गुप्ता, प्रखर त्रिपाठी, मुकेश तिवारी, अनिता जे सिंह, डॉ सोनी सिंह सहित लगभग 340 प्रतिभागी जुड़े।

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