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संस्कृत, वैकल्पिक नहीं बल्कि वैश्विक भाषा - स्वामी चिदानन्द सरस्वती


परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने पश्चिम की धरती से देशवासियों को रक्षाबंधन की शुभकामनायें देते हुये कहा कि ‘रक्षाबंधन’ से तात्पर्य रक्षा अर्थात बिना किसी शर्त के सुरक्षा का आश्वासन|

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

22 अगस्त, ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने पश्चिम की धरती से देशवासियों को रक्षाबंधन की शुभकामनायें देते हुये कहा कि ‘रक्षाबंधन’ से तात्पर्य रक्षा अर्थात बिना किसी शर्त के सुरक्षा का आश्वासन और बंधन अर्थात ‘अटूट व शाश्वत बंधन’, यह दिव्य सार है आज के इस पावन पर्व का। यह पर्व भाई-बहन के आपसी प्रेम, पवित्रता, वफादारी और प्रतिबद्धता का संदेश देता है। रक्षा बंधन रक्त संबंध ही नहीं बल्कि दिव्य रिश्तों के संबंध को भी दर्शाता है। यह एक ऐसा धागा है जो केवल कलाई पर ही नहीं बल्कि प्रेम, पवित्रता, समर्पण, प्रतिबद्धता, वफादारी और सुरक्षा के साथ दिलों को जोड़ता है। इस पावन अवसर पर आप सभी प्यारे-प्यारे भाइयों और बहनों को रक्षा बंधन की ढ़ेरों शुभकामनायें। रक्षाबंधन के इस पवित्र अवसर पर परमार्थ निकेतन गंगा आरती में भारत माता के वीर सपूत हमारे सेना के जवानों की रक्षा के लिये विशेष आहूतियाँं समर्पित की गयी। साध्वी भगवती सरस्वती जी ने परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों और अपने प्यारे भाईयों के लिये रक्षाबंधन की शुभकामनायें भेजी। परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों एवं आचार्यो का आज पावन गंगा तट पर उपनयन संस्कार सम्पन्न हुआ। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने देशवासियों से आह्वान करते हुये कहा कि आईये इस रक्षाबंधन पर कम से कम पांच-पांच पौधों को रक्षासूत्र बांधकर उनके संरक्षण का संकल्प लें ताकि हमारे चारों ओर हरियाली और खुशहाली बनी रहें। अभी तक प्रकृति और पर्यावरण हमारी सुरक्षा करते आये हैं, अब यह पौधों का रक्षाबंधन कर प्रकृति की सुरक्षा का समय है। पेड़-पौधे हमें जीवन प्रदान करते हैं, प्राणवायु ऑक्सीजन देते हैं, इस दृष्टि से भी हमारा कर्तव्य बनता है कि हम पौधों का रोपण कर उन्हें संरक्षण प्रदान करें। रक्षाबंधन के दिन बहन अपने भाई को राखी बांधती है और भाई अपनी बहन को उसकी रक्षा का वचन देता है परन्तु अब समय आ गया है कि बहन अपने भाई को राखी बांधने के पश्चात पूरा परिवार मिलकर वृक्षों को राखी बांधे और पर्यावरण की रक्षा का वचन लें। इस रक्षाबंधन पर पेड़ों को बांधे वृक्षाबंधन और रक्षाबंधन से वृक्षाबंधन की ओर बढ़ेे। वृक्षाबंधन अर्थात सब मिलकर पेड़ों को राखी बांधना और उन्हें गले लगाना तथा उनकी रक्षा का वचन लेना। राखी का पवित्र धागा हमें धर्म और कर्म दोनों का निर्वहन करने की शिक्षा देता है। रक्षाबंधन का यह पर्व सभी के कल्याण की कामना, स्नेह की भावना के साथ सबके लिये सुख-समृद्धि लेकर आये इन्हीं शुभकामनाओं के साथ परमार्थ परिवार की ओर से रक्षाबंधन की ढ़ेर सारी शुभकामनायें। आज विश्व संस्कृत दिवस के अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि संस्कृत एक दिव्य भाषा है; वेदों की भाषा है और देवों की भाषा है। यह सभी भारतीय भाषाओं का मूल है, कई भाषाओं की जन्मदात्री है और यह भाषा दुनिया की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है। संस्कृत को हमारे पाठ्यक्रमों में एक वैकल्पिक भाषा के रूप में नहीं बल्कि वैश्विक भाषा के रूप में स्थापित करने की जरूरत है। देशवासियों से आह्वान किया कि अपने बच्चों को हमारी देव भाषा से जोड़े और उसे जीवंत और जागृत बनायें रखे।

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