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बाघंबरी मठ के 24 वें महंत होंगे बलवीर गिरि|


बलवीर गिरि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि के करीबी शिष्यों में शामिल रहे। 1998 में वह निरंजनी अखाड़े के संपर्क में आए। नरेंद्र गिरि से उनका संपर्क 2001 में हुआ। उस वक्त नरेंद्र गिरि निरंजनी अखाड़े के कारोबारी महंत थे। इसके बाद बलवीर गिरि ने अखाड़े में नरेंद्र गिरि से दीक्षा ग्रहण की और उनके शिष्य हो गए।

रिपोर्ट  - à¤°à¤¾à¤®à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° गौड़

प्रयागराज बगम्बरी गद्दी को लेकर अखाड़े के पंच परमेश्वरों ने संत बलबीर गिरि को बाघंबरी पीठ और लेटे हनुमान मंदिर की गद्दी सौंपने पर अपनी मंजूरी दे दी है। बलबीर गिरि की ताजपोशी की तैयारियां भी प्रारम्भ हो गई हैं। श्रीमहंत नरेंद्र गिरि की षोडशी के बाद पांच अक्तूबर को बलबीर गिरि की ताजपोशी की जाएगी। श्री निरंजनी अखाड़े के श्रीमहंत रविंद्रपुरी सहित पांच संतों का सुपरवाइजरी बोर्ड बनेगा। बता दें कि अकबर के शासनकाल में बाबा बालकेसर गिरि ने 1582 में मठ की स्थापना कराई थी। संगम के पास तब किला बन रहा था। आज जहां लेटे हनुमान जी हैं उधर किले की दीवार बननी थी। खोदाई में विशाल प्रतिमा निकली, मजदूरों ने उठाने का प्रयास किया। वह जितना उठाते प्रतिमा उतना धंसती। अकबर ने इसे अलौकिक शक्ति का प्रताप माना और उस स्थान को छोड़ने का निर्देश दिया। लेटे हनुमान जी की पूजा की जिम्मेदारी श्रीनिरंजनी अखाड़ा के श्रीमहंत बाबा बालकेसर देदी । और आसपास के क्षेत्रों की सैकड़ों एकड़ जमीन देदी। इसे संरक्षित करने के लिए बाबा बालकेसर द्वारा श्री मठ बाघम्बरी गद्दी की स्थापना कराई गयी। तब से श्री मठ बाघम्बरी गद्दी का महंत ही लेटे हनुमान मंदिर की देखरेख करता आ रहा है। महंत नरेंद्र गिरि ने तीन वसीयत बनाई थी. पहले वसीयत में उन्होंने बलवीर गिरि को उत्तराधिकारी बनाया था. इसके बाद 2011 में एक दूसरी वसीयत बनवाई,जिसमें आनंद गिरि को उत्तराधिकारी बनाया। लेकिन आनंद गिरि से विवाद के बाद उन्होंने अपनी पहले की दोनों वसीयतों को रद्द करते हुए तीसरी वसीयत बनाई जिसमें एक बार फिर उन्होंने बलवीर गिरि को उत्तराधिकारी बनाया |अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत नरेंद्र गिरि का 20 सितंबर को प्रयागराज बाघंबरी पीठ में संदिग्ध परिस्थितियों में निधन हो गया। नरेंद्र गिरि का शव कमरे में पंखे पर लटका हुआ मिला। उसके बाद श्रीमहंत नरेंद्र गिरि का कथित सुसाइड लेटर सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो गया था। कई पेज के कथित सुसाइड नोट में शिष्य संत बलबीर गिरि को ही उत्तराधिकारी बनाए जाने का जिक्र किया था। बलवीर गिरि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि के करीबी शिष्यों में शामिल रहे। 1998 में वह निरंजनी अखाड़े के संपर्क में आए। नरेंद्र गिरि से उनका संपर्क 2001 में हुआ। उस वक्त नरेंद्र गिरि निरंजनी अखाड़े के कारोबारी महंत थे। इसके बाद बलवीर गिरि ने अखाड़े में नरेंद्र गिरि से दीक्षा ग्रहण की और उनके शिष्य हो गए। धीरे-धीरे नरेंद्र गिरि के घनिष्ठ और विश्वासपात्र सहयोगी के तौर पर पहचान बनी। नरेंद्र गिरि जब निरंजनी अखाड़े की ओर से बाघंबरी गद्दी के पीठाधीश्वर बन कर प्रयागराज आए, तो बलवीर भी उनके साथ यहां आ गए। सहयोगी के तौर पर नरेंद्र गिरि ने बलवीर को जो भी जिम्मेदारी सौंपी, उन्होंने पूरी कर्मठता और निष्ठा से उसे निभाया। नरेंद्र गिरि उन पर पूरी तरह निर्भर थे और विश्वास करते थे। कुंभ और बड़े पर्व के दौरान अखाड़े व मठ की ओर से खर्च को आने वाले लाखों रुपए बलवीर के पास ही रहते थे, रुपए बलवीर की देख-रेख में खर्च किए जाते थे, इस साल हुए हरिद्वार कुंभ के दौरान भी उन्होंने इस भूमिका को बखूबी निभाया, आनंद गिरि से विवाद और बढ़ती दूरी ने बलवीर को नरेंद्र गिरि का और करीबी बना दिया, 5 अक्टूबर को मठ और अखाड़े के सभी साधु-संत बलवीर गिरि को चादर ओढ़ाकर महंत के रूप में स्वीकार करेंगे ।

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