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यज्ञ/हवन पर्यावरण स्वच्छता का आयुर्वेदिक उपाय


पतंजलि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने एक सरल अध्ययन के माध्यम से पर्यावरण में मौजूद विभिन्न रोगजनक बैक्टीरिया और कवकों पर यज्ञ/हवन के रोगाणुरोधी प्रभावों को प्रमाणित किया है।

रिपोर्ट  - à¤†à¤² न्यूज भारत

हरिद्वार, 06 जनवरी। पतंजलि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने एक सरल अध्ययन के माध्यम से पर्यावरण में मौजूद विभिन्न रोगजनक बैक्टीरिया और कवकों पर यज्ञ/हवन के रोगाणुरोधी प्रभावों को प्रमाणित किया है। इस नवीन अनुसंधान के अनुसार हवन/यज्ञ वातावरण को शुद्ध करने का सुरक्षित, व पर्यावरण के अनुकूल उपाय हो सकता है। साथ ही हवन Microbial Pathogens जैसे बैक्टीरिया, कवक और वायरस के कारण होने वाली संक्रामक बीमारियों के विरुद्ध प्रभावी भी हो सकता है। यह अध्ययन एक प्रतिष्ठित अमेरिकी वैज्ञानिक जर्नल, Journal of Evidence-Based Integrative Medicine में प्रकाशित हुआ है, और इच्छुक पाठकों के लिए https://doi.org/10.1177%2F2515690X211068832 पर निःशुल्क उपलब्ध है। इस अवसर पर पूज्य आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने कहा कि यज्ञ/हवन की प्राचीन प्रथा के अनुसार पर्यावरण को शुद्ध करने का एक तरीका है, उसका यह पहला वैज्ञानिक प्रमाण है। उन्होंने इन वैज्ञानिक निष्कर्षों को नियमित पर्यावरण परिशोधन प्रोटोकॉल के रूप में यज्ञ/हवन आयोजित करने की प्राचीन भारतीय दैनिक प्रथा से जोड़ा। आचार्य जी ने इस बात पर जोर दिया है कि यज्ञ/हवन न केवल मानसिक शांति प्राप्त करने का अपितु समग्र शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त करने का एक आध्यात्मिक तरीका भी है। पतंजलि अनुसंधान संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. अनुराग वार्ष्णेय द्वारा साझा किए गए विवरण के अनुसार, विषघ्न धूप नामक हवन सामग्री के धूम्र से Pathogenic Microbes को उपचारित किया और उनके वृद्धि पर धूम्र के प्रभाव का व्यापक अध्ययन किया गया। अध्ययन किए गए Pathogens में वे रोगाणु शामिल हैं जो आमतौर पर दूषित वातावरण में मौजूद होते हैं, और त्वचा, फेफड़े, पेट और मूत्रजननांगों के संक्रमित होने का कारण बनते हैं। इन Pathogens की वृद्धि को विषघ्न धूप के धूम्र के उपचार से बाधित पाया गया। डॉ. वार्ष्णेय ने बताया कि एक उन्नत तकनीक स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी के माध्यम से गहन जांच करने पर पाया गया कि विषघ्न धूप का धूम्र वास्तव में नैनोस्केल कणों से युक्त है। एक अन्य अत्याधुनिक विश्लेषणात्मक रसायन विज्ञान तकनीक, गैस क्रोमैटोग्राफी युग्मित मास स्पेक्ट्रोमेट्री (जीएस-एमएस) से स्पष्ट हुआ कि ये कण वास्तव में एंटी-माइक्रोबियल फाइटोकंपाउंड्स से परिपूर्ण थे, जैसे कि p-Cyanoaniline, Eucalyptol, Drimenol और endo-Borneol आदि।

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