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गीता जीवन प्रबंधन का सबसे बड़ा माध्यम-- स्वामी ज्ञानानंद महाराज


श्रीमद्भागवत गीता जीवन प्रबंधन का सबसे बड़ा माध्यम और सार है। जो मनुष्य को संशय की स्थिति से बाहर निकालकर सद् कर्म करने की प्रेरणा देता है ।

रिपोर्ट  - à¤‘ल न्यूज़ भारत

हरिद्वार 11 जनवरी। श्रीमद्भागवत गीता जीवन प्रबंधन का सबसे बड़ा माध्यम और सार है। जो मनुष्य को संशय की स्थिति से बाहर निकालकर सद् कर्म करने की प्रेरणा देता है ।गीता सबसे बड़ा चिकित्सा शास्त्र है, जो मनोरोगी को दुविधा की स्थिति से उबारता है। यह उदगार जियो गीता संस्था के संस्थापक गीता के मर्मज्ञ स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने व्यक्त किए। वे आज गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय मे आयोजित दूसरे तीन दिवसीय हरिद्वार लिटरेचर फेस्टिवल के दूसरे दिन श्रीमद्भागवत गीता ज्ञान यज्ञ के" विशेष संवाद सत्र " में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। इस कार्यक्रम का संचालन अंग्रेजी लेखिका ,चिंतक ,विचारक डॉ राधिका नागरथ ने किया। डॉ राधिका नागरथ ने स्वामी ज्ञानानंद महाराज से गीता और वर्तमान युवा पीढ़ी की दिशा और दशा को लेकर कई सवाल किए। उन्होंने युवा पीढ़ी का मार्गदर्शन करते हुए कहा कि गीता दिव्य ग्रंथ है। सभी समस्याओं का निदान करता है और पूरे संसार को तनाव मुक्त करने का सबसे बड़ा माध्यम है। साथ ही गीता हमें बेहतर जीवन प्रबंधन के गुर सिखाती है। गीता चिकित्सक-रोगी, पिता-पुत्र, गुरु-शिष्य के संबंधों को रेखांकित करती हुई उनके अधिकार और कर्तव्यों का बोध कराती है। गीता ज्ञान विज्ञान का सबसे बड़ा अनूठा ग्रंथ है। स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि गीता का ज्ञान युद्ध भूमि में भगवान श्री कृष्ण ने उस योद्धा अर्जुन को दिया, जो अपने पारिवारिक संबंधों के मोह में अपने धर्म से भटक रहा था और भगवान श्री कृष्ण ने उसे इस मनोविषाद से उबार कर अपना कर्म करने को प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि भागवत गीता विश्व की ऐतिहासिक व अनूठी घटना है ,जो युद्ध के मैदान में ज्ञान और शांति प्रदान करता है। जबकि मनुष्य शांत और एकांत वातावरण में ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करता है, जबकि भगवान कृष्ण युद्ध के मैदान में युद्ध करने ना करने की दुविधा से युक्त अर्जुन को इस मनोस्थिति से बाहर निकाल कर शांति प्रदान करते हैं और उसे धर्म की स्थापना के लिए कर्म करने के लिए प्रेरित करते हैं। उन्होंने कहा कि गीता की शरण में आने से मनुष्य मानसिक और आंतरिक शांति प्राप्त करता है। गीता संवाद कार्यक्रम की संचालिका डॉ राधिका नागरथ के एक सवाल के जवाब में कि रामकृष्ण परमहंस भी गीता में निहित त्याग की भावना को सर्वोपरि मानते थे ,स्वामी ज्ञानानंद ने उत्तर दिया कि गीता कभी भी कर्म का त्याग करने को नहीं कहती है . सिर्फ अहम का त्याग कर कर्म को कर्म योग बनाने का संदेश देती है. गीता सबसे उत्तम साहित्य है यह एक चिकित्सा शास्त्र है जिसको जीने पर एक चिकित्सक और रोगी का संबंध, पति और पत्नी का संबंध, बाप और बेटी का संबंध, संसार का कोई भी रिश्ता मजबूत और सुदृढ़ होता है आज के युग में गीता सबसे ज्यादा प्रासंगिक है गीता खुद से ऊपर उठकर, स्वार्थ छोड़ दूसरे के लिए करने का संदेश देती है उन्होंने कहा कि गीता सीमा पर देश की रक्षा करने वाले सैनिक का भी मार्गदर्शन करती है और घर में गृहस्थी का कार्य करने वाली महिला का भी और स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक का भी और पढ़ने वाले छात्र का भी। ैइस अवसर पर कार्यक्रम के निदेशक डॉ श्रवण कुमार शर्मा और अंतः प्रवाह संस्था के प्रमुख संजय हांडा ने स्वामी ज्ञानानंद महाराज और कार्यक्रम की संचालिका डॉ राधिका नागरथ को अंग वस्त्र स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। डॉ राधिका नागरथ ने प्रेस क्लब हरिद्वार की ओर से स्वामी ज्ञानानंद महाराज को स्व- लिखित पुस्तकें और गंगाजलि भेंट की। इस अवसर पर गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार प्रोफेसर दिनेश चंद्र भट्ट, डीपीएस रानीपुर के प्रधानाचार्य अनुपम जग्गा, शिक्षाविद् मंजुला भगत, उमा पांडे, निधि हांडा ,सामाजिक कार्यकर्ता नेहा मलिक ,डॉ वीके अग्निहोत्री ,पल्लवी ,नीता नैयर, प्रफुल्ल ध्यानी आदि उपस्थित थे।

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