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हरिद्वार में ठंड के बावजूद लोहडी का पर्व हर्षोल्लास से मनाया


16वी सदी में पंजाब के लाहौर जिले के पिंडी गाँव का जट्ट था। जो जवानी की देहलीज़ पर आकर अकबर की मुगल फौजो का जनता पर हो रहे अत्यचार के खिलाफ बागी हो गया । दुल्ला असल में उस दौर का राबिनहुड था।

रिपोर्ट  - à¤‘ल न्यूज़ भारत

हरिद्वार में आज बारिश व ठंड के बावजूद लोहडी का पर्व हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। सार्वजनिक तौर पर ज्वालापुर, कनखल सहित गली,मुहल्लों, बाजारों में लोहडी के आयोजन के साथ लोग घरों में भी निजी तौर पर परिवार के साथ मिलकर लोहडी मना रहे हैं।और लोहडी के गीत गा,बजा रहे हैं। असल में 16वी सदी में पंजाब के लाहौर जिले के पिंडी गाँव का जट्ट था।जो जवानी की देहलीज़ पर आकर अकबर की मुगल फौजो का जनता पर हो रहे अत्यचार के खिलाफ बागी हो गया।दुल्ला असल में उस दौर का राबिनहुड था।वह मुगलो को लूटता और गरीबो मे बाट देता था। उसका इलाक़ा संदल बार के जंगलो से ले कर लाहौर तक था ।दुल्ला का ख़ौफ़ मुगलो में इतना था की अकबर को अपनी आधी मुगल फौज दुल्ला को पकड़ने के लिए लगिनी पड़ी लेकिन 25 साल तक मुगल फौज दुल्ला को नही पकड़ सकी। लाहौर के गाँव मे सुंदरी और मुंदरी 2 हिन्दू बहनें थी ।जिनके पिता पर मुगल फोज़दार दोनों बहनो के साथ विवाह की जिद पर अड गए। गाँव वाले दुल्ला भट्टी के पास जंगल में गए और सारी बात बताई ।दुल्ले ने 2 हिन्दू लड़के ढूंढ के जंगल मे ही तत्काल सुंदरी और मुंदरी की शादी करवा दी ।तब दुल्ला के पास नये जोडों को शगुन में देने के लिए कुछ नही था तो दुल्ले ने शगुन के तोर पे सेर शकर ही दोनों की झोली में डाल दी।तभी से यह लोकगीत प्रचलन में आया।आज पंजाब , हिमाचल, पाक अधिकृत पंजाब मे दुल्ला भट्टी की याद मे 13 जनवरी लोहड़ी का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है और दुल्ला के सम्मान में सुंदर मुंदरिये ,तेरा कौन वेचारा, दुल्ला भट्टी वाला गाया जाता है।अब लोहडी पूरे हिंदुस्तान का पर्व है।हालांकि अलग अलग प्रांतों में इसे अलग अलग ढंग से मनाया जाता है।इसे ऋतु परिवर्तन का पर्व भी कहा जाता है।

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