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श्रीरामानन्द आश्रम में आज भजन-कीर्तन के साथ ही संत सम्मेलन का आयोजन किया गया


रामानन्द सम्प्रदाय के आचार्य आद्यजगद्गुरु रामानन्दाचार्य जी महाराज के 720वें जयन्ती समारोह के उपलक्ष में पंचपुरी की आचार्य महापीठ श्रीरामानन्द आश्रम में आज भजन-कीर्तन के साथ ही संत सम्मेलन का आयोजन किया गया |

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

हरिद्वार, 18 जनवरी। रामानन्द सम्प्रदाय के आचार्य आद्यजगद्गुरु रामानन्दाचार्य जी महाराज के 720वें जयन्ती समारोह के उपलक्ष में पंचपुरी की आचार्य महापीठ श्रीरामानन्द आश्रम में आज भजन-कीर्तन के साथ ही संत सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें वैष्णव मण्डल से जुड़े संत महापुरुषों ने रामानन्द सम्प्रदाय की विशिष्टताओं पर प्रकाश डालते हुए सम्पूर्ण राष्ट्र एवं समाज को मर्यादित आचरण तथा राष्ट्रसेवा की प्रेरणा दी। संत सम्मेलन को अध्यक्षीय पद से सम्बोधित करते हुए श्रीवैष्णव मण्डल अध्यक्ष तथा श्रीगुरुसेवक निवास उछाली आश्रम के परमाध्यक्ष महंत विष्णुदास जी महाराज ने कहा कि रामानन्द सम्प्रदाय मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जीवन चरित्र को आत्मसात करने की प्रेरणा देता है और सम्पूर्ण विश्व को परिवार समझते हुए जाति व्यवस्था को समाप्त करने का पहला संदेश आद्य जगद्गुरु रामानन्दाचार्यजी भगवान ने दिया था, उन्होंने आचार्य महापीठ से सम्पूर्ण राष्ट्रवासियों का आवाह्न किया कि जात-पांत के बन्धनों को तोड़कर आपसी भाईचारे का वातावरण बनायंे तभी राष्ट्र और समाज की उन्नति होगी यही सनातन संस्कृति के प्रति समर्पण होगा। रामानन्द आश्रम के अध्यक्ष महंत प्रेमदास ने सभी संत महापुरुषों का अभिनन्दन करते हुए कहा कि हमें संतत्व को संबल प्रदान करने के लिए एकजुट होकर सनातन संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्द्धन का संकल्प लेना होगा यही इस जयन्ती समारोह की सार्थकता है। सुदर्शन आश्रम के परमाध्यक्ष म. रघुवीरदास एवं श्रीसीताराम धाम के परमाध्यक्ष म. सूरजदास ने आद्य जगद्गुरु रामानन्दाचार्य भगवान की दीक्षाओं को आत्मसात करने का आवाह्न करते हुए कहा कि संतों का सर्वस्व समाज एवं राष्ट्र सेवा के लिए ही समर्पित होता है और वैष्णव मण्डल हरिद्वार आगामी कुम्भ पर्व पर धर्म एवं राष्ट्र सेवा के नए प्रकल्पों का शुभारम्भ करेगा। कार्यक्रम का संचालन करते हुए म. प्रमोददास ने कहा कि आद्यजगद्गुरु श्रीरामानन्दाचार्य जी स्वयं भगवान राम के ही स्वरुप थे जिन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों का शमन करने के लिए ही अपना जीवन धर्म, संस्कृति एवं समाजसेवा में समर्पित किया। संत सम्मेलन को म. बिहारीशरण, म. हितेशदास, म. राजेश्वरशरण, म. जागीरदास, म. शत्रुघ्नदास एवं म. सुमितदास ने भी सम्बोधित किया। तत्पश्चात सभी संत महापुरुषों एवं भक्तों ने जयंती समारोह का प्रसाद पाकर अपना अन्तःकरण पवित्र किया।

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