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गंगा स्वरूप आश्रम में आने वाले भक्तों के दुःख-दर्द दूर करंगे खाटू श्याम


गंगा स्वरूप आश्रम में जयराम आश्रम संस्थाओं के परमाध्यक्ष स्वामी ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी महाराज ने आज गंगा स्वरूप आश्रम में विद्वान आचार्यों के वेद मंत्रों के उच्चारण से हवन यज्ञ कर जगद्गुरु शंकराचार्य राजराजेश्वराश्रम के कर कमलों द्वारा प्राण प्रतिष्ठा कराई गई

रिपोर्ट  - à¤†à¤² न्यूज़ भारत

हरिद्वार गंगा स्वरूप आश्रम में आज भगवान बर्बरीक की प्रतिमा का विधि विधान से जगतगुरु शंकराचार्य राजराजेश्वराश्रम ने प्राण प्रतिष्ठा की। हरिद्वार गंगा स्वरूप आश्रम में जयराम आश्रम संस्थाओं के परमाध्यक्ष स्वामी ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी महाराज ने आज गंगा स्वरूप आश्रम में विद्वान आचार्यों के वेद मंत्रों के उच्चारण से हवन यज्ञ कर जगद्गुरु शंकराचार्य राजराजेश्वराश्रम के कर कमलों द्वारा प्राण प्रतिष्ठा कराई गई इस अवसर पर शंकराचार्य ने बर्बरीक के बारे में बताया कि बार्बरीक घटोत्कच और अहिलावती का पुत्र था। वास्तव में वह एक यक्ष था जिसका पुनर्जन्म एक इंसान के रूप में हुआ था। वह भीम का पोता था। बार्बरीक को उसकी मां ने यही सिखाया था कि हमेशा हारने वाले की तरफ से लड़ना और वह इसी सिद्धांत पर लड़ता भी रहा। महाभारत की लड़ाई में बार्बरीक को लड़ाई में हिस्सा लिए बगैर इस ऐतिहासिक लड़ाई के गवाह के रुप नियुक्त किया गया था। इस अवसर पर महामंडलेश्वर हरिचेतनानन्द जी महाराज ने बताया कि बार्बरीक को तीन बाण धारी भी कहा जाता है उन्होंने यह भी बताया कि भीम के पौत्र बर्बरीक के समक्ष जब अर्जुन तथा भगवान श्रीकृष्ण उसकी वीरता का चमत्कार देखने के लिए उपस्थित हुए तब बर्बरीक ने अपनी वीरता का छोटा-सा नमूना मात्र ही दिखाया। कृष्ण ने कहा कि यह जो वृक्ष है ‍इसके सारे पत्तों को एक ही तीर से छेद दो तो मैं मान जाऊंगा। बर्बरीक ने आज्ञा लेकर तीर को वृक्ष की ओर छोड़ दिया। जब तीर एक-एक कर सारे पत्तों को छेदता जा रहा था उसी दौरान एक पत्ता टूटकर नीचे गिर पड़ा। कृष्ण ने उस पत्ते पर यह सोचकर पैर रखकर उसे छुपा लिया की यह छेद होने से बच जाएगा, लेकिन सभी पत्तों को छेदता हुआ वह तीर कृष्ण के पैरों के पास आकर रुक गया। तब बर्बरीक ने कहा कि प्रभु आपके पैर के नीचे एक पत्ता दबा है कृपया पैर हटा लीजिए, क्योंकि मैंने तीर को सिर्फ पत्तों को छेदने की आज्ञा दे रखी है आपके पैर को छेदने की नहीं। इस अवसर पर जयराम संस्थाओं के परमाध्यक्ष स्वामी ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी महाराज ने बताया कि बर्बरीक द्वारा अपने पितामह पांडवों की विजय हेतु स्वेच्छा के साथ शीशदान कर दिया गया था । बर्बरीक के इस बलिदान को देखकर दान के पश्चात श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को कलियुग में स्वयं के नाम से पूजित होने का वर दिया था। आज बर्बरीक को खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है जहां कृष्ण ने उसका शीश रखा था उस स्थान का नाम खाटू है । इसलिए गंगा स्वरूप आश्रम में भगवान बर्बरीक(खाटू श्याम) की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की गई है जिससे आश्रम में आने वाले भक्तों के दुख-दर्द दूर हो सके लोग उनकी पूजा कर मनोवांछित फल प्राप्त कर सकें इस अवसर पर हरिद्वार के प्रतिष्ठित संत म0म0 हरिचेतनानन्द जी महाराज, सतपाल ब्रह्मचारी, स्वामी ललितानंद गिरि महंत विनोद गिरी, महंत जमुनादास, स्वामी ज्ञानानंद, आचार्य विजय गौतम एवं सैकड़ो संतों के भाग लिया।

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