हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° हर की पौड़ी शà¥à¤°à¤µà¤£ नाथ मठकनखल ऋषिकेश जयराम आशà¥à¤°à¤® सहित शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£à¥€ उपाकरà¥à¤® पूजा पाठकर बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ ने धूमधाम से मनाई शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£ मास की पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ होती है। à¤à¤• ओर जहां इस दिन रकà¥à¤·à¤¾à¤¬à¤‚धन का तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤° मनाया जाता है वहीं दूसरी ओर इस दिन शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£à¥€ उपाकरà¥à¤® à¤à¥€ किया जाता है। शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£à¥€ उपाकरà¥à¤®: संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ दिवस के रूप में मनाया जाता है।
रिपोर्ट -
हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° हर की पौड़ी शà¥à¤°à¤µà¤£ नाथ मठकनखल ऋषिकेश जयराम आशà¥à¤°à¤® सहित शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£à¥€ उपाकरà¥à¤® पूजा पाठकर बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ ने धूमधाम से मनाई शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£ मास की पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ होती है। à¤à¤• ओर जहां इस दिन रकà¥à¤·à¤¾à¤¬à¤‚धन का तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤° मनाया जाता है वहीं दूसरी ओर इस दिन शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£à¥€ उपाकरà¥à¤® à¤à¥€ किया जाता है। शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£à¥€ उपाकरà¥à¤®: संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ दिवस के रूप में मनाया जाता है। शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£à¥€ उपाकरà¥à¤® वैदिक बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ को वरà¥à¤· à¤à¤° में आतà¥à¤®à¤¶à¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ का अवसर पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करता है। वैदिक परंपरा अनà¥à¤¸à¤¾à¤° वेदपाठी बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ के लिठशà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£ मास की पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ सबसे बड़ा तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤° है। इस दिन पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒà¤•à¤¾à¤² में दैनिक कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤“ं से निवृतà¥à¤¤ होने के बाद सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करते हैं। फिर कोरे जनेऊ की पूजा करते हैं। जनेऊ के गाठमें बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ होते हैं, उनके धागों में सपà¥à¤¤à¤‹à¤·à¤¿ का वास माना जाता है। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® और सपà¥à¤¤à¤‹à¤·à¤¿ पूजन के बाद गंगा या नदी या सरोवर में खड़े होकर बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤•à¤°à¥à¤® शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£à¥€ संपनà¥à¤¨ होती है। पूजा किठगठजनेऊ में से à¤à¤• जनेऊ पहन लेते हैं और बाकी के जनेऊ रख लेते हैं। पूरे वरà¥à¤·à¤à¤° जब à¤à¥€ जनेऊ बदलने की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ होती है तो शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£à¥€ उपाकरà¥à¤® के पूजन वाले जनेऊ को ही पहनते हैं। सबसे पहले तो आप ये जान लें कि शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£à¥€ उपाकरà¥à¤® के तीन पकà¥à¤· है- पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤¶à¥à¤šà¤¿à¤¤ संकलà¥à¤ª, संसà¥à¤•à¤¾à¤° और सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥¤ सरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® होता है- पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤¶à¥à¤šà¤¿à¤¤ रूप में हेमादà¥à¤°à¤¿ सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ संकलà¥à¤ªà¥¤ गà¥à¤°à¥ के सानà¥à¤¨à¤¿à¤§à¥à¤¯ में बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ गाय के दूध, दही, घी, गोबर, गोमूतà¥à¤° तथा पवितà¥à¤° कà¥à¤¶à¤¾ से सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¤•à¤° वरà¥à¤·à¤à¤° में जाने-अनजाने में हà¥à¤ पापकरà¥à¤®à¥‹à¤‚ का पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤¶à¥à¤šà¤¿à¤¤ कर जीवन को सकारातà¥à¤®à¤•à¤¤à¤¾ से à¤à¤°à¤¤à¥‡ हैं। सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ के बाद ऋषिपूजन, सूरà¥à¤¯à¥‹à¤ªà¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ à¤à¤µà¤‚ यजà¥à¤žà¥‹à¤ªà¤µà¥€à¤¤ पूजन तथा नवीन यजà¥à¤žà¥‹à¤ªà¤µà¥€à¤¤ धारण करते हैं। यजà¥à¤žà¥‹à¤ªà¤µà¥€à¤¤ या जनेऊ आतà¥à¤® संयम का संसà¥à¤•à¤¾à¤° है। आज के दिन जिनका यजà¥à¤žà¥‹à¤ªà¤µà¤¿à¤¤ संसà¥à¤•à¤¾à¤° हो चà¥à¤•à¤¾ होता है, वह पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ यजà¥à¤žà¥‹à¤ªà¤µà¤¿à¤¤ उतारकर नया धारण करते हैं और पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ यजà¥à¤žà¥‹à¤ªà¤µà¤¿à¤¤ का पूजन à¤à¥€ करते हैं । इस संसà¥à¤•à¤¾à¤° से वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ का दूसरा जनà¥à¤® हà¥à¤† माना जाता है। इसका अरà¥à¤¥ यह है कि जो वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ आतà¥à¤® संयमी है, वही संसà¥à¤•à¤¾à¤° से दूसरा जनà¥à¤® पाता है और दà¥à¤µà¤¿à¤œ कहलाता है। उपाकरà¥à¤® का तीसरा पकà¥à¤· सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ का है। इसकी शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ सावितà¥à¤°à¥€, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾, शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾, मेधा, पà¥à¤°à¤œà¥à¤žà¤¾, सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿, सदससà¥à¤ªà¤¤à¤¿, अनà¥à¤®à¤¤à¤¿, छंद और ऋषि को घी की आहà¥à¤¤à¤¿ से होती है।