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श्री भगवान परशुराम जन्मोत्सव घरों में हवन, पूजन एवं रात्रि में दीप प्रज्ज्वलन कर मनाया।


कोरोना वायरस के कारण विश्व की विकट परिस्थितियों को देखते हुये तथा सरकार के निर्देशों का अनुपालन करते हुये अखिल भारतीय ब्राह्मण एकता परिषद् द्वारा पूरे देश में अक्षय तृतीया तिथि को भगवान परशुराम जन्मोत्सव इस बार वैश्विक संक्रमण कोविड-19 से बचाव हेतु चल रहे लॉक डाउन में मनाया गया। इसी क्रम में उत्तराखण्ड इकाई के वरिष्ठ पदाधिकारियांे ने आपस में विचार विमर्श करने के बाद श्री भगवान परशुराम जन्मोत्सव अक्षय तृतीया के अवसर पर 25 अप्रैल को प्रदेश के सभी जनपद, ब्लॉक एवं ग्रामांे में वैदिक मन्त्रोच्चारण से विधि पूर्वक घरों में हवन, पूजन एवं रात्रि में दीप प्रज्ज्वलन कर मनाया।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

हरिद्वार, 26 अप्रैल2020। कोरोना वायरस के कारण विश्व की विकट परिस्थितियों को देखते हुये तथा सरकार के निर्देशों का अनुपालन करते हुये अखिल भारतीय ब्राह्मण एकता परिषद् द्वारा पूरे देश में अक्षय तृतीया तिथि को भगवान परशुराम जन्मोत्सव इस बार वैश्विक संक्रमण कोविड-19 से बचाव हेतु चल रहे लॉक डाउन में मनाया गया। इसी क्रम में उत्तराखण्ड इकाई के वरिष्ठ पदाधिकारियांे ने आपस में विचार विमर्श करने के बाद श्री भगवान परशुराम जन्मोत्सव अक्षय तृतीया के अवसर पर 25 अप्रैल को प्रदेश के सभी जनपद, ब्लॉक एवं ग्रामांे में वैदिक मन्त्रोच्चारण से विधि पूर्वक घरों में हवन, पूजन एवं रात्रि में दीप प्रज्ज्वलन कर मनाया। परिषद के प्रदेश संयोजक पं. बालकृष्ण शास्त्री, प्रदेश अध्यक्ष पं. मनोज गौतम एवं जिला संयोजक पं. प्रदीप शर्मा ने कनखल स्थित प्रदेश कार्यालय में व्यक्तिगत रूप से (सोशल डिस्टेन्सिंग) का ध्यान रखते हुये परशुराम जी के चित्र पर दीपार्चन, पुष्प व माल्यार्पण किया। इस मौके पर परिषद के मार्गदर्शक एवं संरक्षक पं. जुगुल किशोर तिवारी (आईपीएस) ने सभी पदाधिकारियों को विडिओ के माध्यम से सन्देश देते हुए कहा कि अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किंतु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है। उन्होंने ने कहा कि भगवान परशुराम जी ने अपनी शक्ति का प्रयोग सदैव कुशासन के विरुद्ध किया। निर्बल और असहाय समाज की रक्षा के लिए उनका कुठार अत्याचारी कुशासकों के लिए काल बन चुका था। महिष्मती के शासक हैहयवंशी कार्तवीर्य के पुत्र सहस्त्रबाहु ने अपने आतिथ्य से अचंभित हो परशुराम जी के पिता ऋषि जमदग्नि से उनकी कामधेनु गाय माँगी। जमदग्नि के इन्कार करने पर उसके सैनिक बलपूर्वक कामधेनु को अपने साथ ले गये। बाद में परशुराम जी को सारी घटना विदित हुई तो उन्होंने अकेले ही सहस्त्रबाहु की समस्त सेना का संहार कर दिया और साथ ही अत्याचारी सहस्त्रबाहु का भी वध किया। उन्होंने कहा कि अधर्मी कार्तवीर्य अर्जुन (सहस्रबाहु) की राजसत्ता को परशुरामजी ने छिन्न-भिन्न कर दिया। बाद में सहस्रबाहु के पुत्रों ने भगवान के पिता ऋषि जमदग्नि को आश्रम में अकेले पाकर छल से उनकी हत्या कर दी। अतः परशुराम जी ने उनके मूलोच्छेद के लिए 21 बार अभियान कर सभी पापियों का वध कर दिया। आज लोग किसी भी जीत को प्रकट करने के लिए जिन दो उंगलियों को उठाकर विजय मुद्रा का प्रदर्शन करते हैं, वह परशुरामजी की विजय मुद्रा की नकल मात्र है। परिषद के प्रदेश संयोजक पं. बालकृष्ण शास्त्री ने बताया कि भविष्य पुराण के अनुसार जो कल्कि अवतार होगा उनको गुरू के रूप में भगवान परशुराम जी ही शस्त्र एवं शास्त्र की शिक्षा देंगे। इस बार सोशल कंैपेनिंग के माध्यम से ब्राह्मण एकता प्रदर्शन करने का आवाहन भी खूब किया गया एवं आपस में ब्राह्मणों ने मोबाइल से एक दूसरे को शुभकामनाएं दीं। फेसबुक, व्हाट्सप्प, ट्विटर आदि के द्वारा सोशल प्लेटफार्म पर परशुराम जन्मोत्सव के अवसर पर फोटो सहित शुभकामना सन्देशों की भरमार दिखाई दी।

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