संगोष्ठी के दूसरे दिन का पहला सत्र चौरास परिसर स्थित स्वामी मन मंथन सभागार में आयोजित किया गया । दूसरे दिन का आरंभ प्लेनरी सत्र से हुआ । जिसकी अध्यक्षता नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी त्रिपुरा के प्रो. के.एन जेना द्वारा की गई। उन्होंने इस विषय को श्रोताओं से परिचित कराते हुए सत्र का आरंभ किया।
रिपोर्ट - अंजना भट्ट घिल्डियाल
राजनीति विज्ञान विभाग, हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित किया जा रहा है, जिसका विषय है "हिमालय और उप हिमालय क्षेत्रों में विकास और राजनीति : संबंधों और संभावनाओं की खोज" । संगोष्ठी के दूसरे दिन का पहला सत्र चौरास परिसर स्थित स्वामी मन मंथन सभागार में आयोजित किया गया । दूसरे दिन का आरंभ प्लेनरी सत्र से हुआ । जिसकी अध्यक्षता नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी त्रिपुरा के प्रो. के.एन जेना द्वारा की गई। उन्होंने इस विषय को श्रोताओं से परिचित कराते हुए सत्र का आरंभ किया । पहले वक्त के रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ नरेश राणा ने हिमालय में प्राकृतिक आपदाओं के विषय में अपना पत्र प्रस्तुत करते हुए हिमालयी पारिस्थितिकी को बचाने के लिए आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण के महत्व को रेखांकित किया तथा इसके सन्दर्भ में उन्होंने उत्तराखंड में आई 2013 की भीषण आपदा के पश्चात उत्पन्न स्थितियों के बारे में भी चिंता व्यक्त की। इसके पश्चात जेएनयू विश्वविद्यालय के प्रो अतुल कुमार ने अपना शोध पत्र ' सस्टेनेबल डेवेलपमेंट एन्ड क्लाइमेट चेंज चैलेंजेज एंड एपोरचुनिटीज इन द हिमालयन रीजन' प्रस्तुत किया। उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत करते हुए बताया कि किस प्रकार पिछली 3- 4 सदियों में वैश्विक ताप में उद्योगीकरण से लगातार उत्तरोत्तर वृद्धि दर्ज की जा रही है जो बेहद खरतनाक रूप से बढ़ रहा है । इसके साथ ही उन्होंने पहाड़ो में अवैज्ञानिक विकास के नाम पर किये जा रहे निर्माण कार्यों जैसे सड़क निर्माण के कारण उत्पन्न समस्याओं की तरफ भी सत्र का ध्यान आकर्षित किया। भरसार विश्वविद्यालय रानीचौरी से डॉ एस. पी. सती ने क्लाइमेट चेंज एंड द हिमालया : रिसेंट अंडरस्टैंडिंग अपना पत्र प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि किस प्रकार धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है जिससे ग्लेशियर पिघलने , जलसंकट , वैश्विक तापवृद्धि जैसे घटनाएं समान्तर रूप से बढ़ रही है । उन्होंने जीओ- पोलिटिकल लिहाज़ से भी हिमालय तथा उसके जल स्रोतों के के महत्व को रेखांकित किया। दून विश्वविद्यालय के प्रो एस. सी. पुरोहित ने कार्बन उत्सर्जन में पश्चिमी तथा पूर्वी देशों की स्थितियों की तरफ सत्र का ध्यान आकृष्ट किया । उन्होंने कहा कि भारत जैसे विकासशील देशों की विकास तथा पर्यावरण की चिंताओ को केंद्र में रखकर वैश्विक नीति निर्माण की आवश्यकता पर जोर दिया। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हिमालय जैसे बेहद संवेदनशील पर्वत शृंखला में क्षेत्रीय अनुकूलता के अनुसार ही विकास कार्य किये जाने चाहिए। इस सत्र में सर्वश्रेष्ठ प्रश्न का सर्टिफिकेट तुलाज़ इंस्टिट्यूट देहरादून में असिस्टेंट प्रो डॉ कमलेश जोशी को दिया गया। उसके बाद अलग अलग टेक्निकल सत्र महिला संबंधी मुद्दे, पलायन, जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण ,संस्कृति एवं जनजाति मुद्दे विषय पर भौतिक विज्ञान विभाग, भूगोल विभाग तथा भूगर्भ विज्ञान विभाग में आयोजित किये गए जिसमें देशभर के शोधार्थियों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये। राष्ट्रीय संगोष्ठी के राष्ट्रीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक प्रोफेसर एमएम सेमवाल ने बताया कि दो दिवसीय गोष्टी में ,304 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।