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आध्यात्मिक विकास भारतीय संस्कृति में ही निहितः डॉ चिन्मय पण्ड्या


गायत्री तीर्थ शांतिकुंज में भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा से संबद्ध दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का रविवार को समापन हो गया। इस संगोष्ठी में सन् २०२३ की कार्य योजना पर गहन विचार विमर्श किया गया। शांतिकुंज की अधिष्ठात्री श्रद्धेया शैलदीदी ने प्रतिभागियों को भारतीय संस्कृति से युवाओं को जोड़ने के लिए प्रेरित किया।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

हरिद्वार 26 फरवरी। गायत्री तीर्थ शांतिकुंज में भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा से संबद्ध दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का रविवार को समापन हो गया। इस संगोष्ठी में सन् २०२३ की कार्य योजना पर गहन विचार विमर्श किया गया। शांतिकुंज की अधिष्ठात्री श्रद्धेया शैलदीदी ने प्रतिभागियों को भारतीय संस्कृति से युवाओं को जोड़ने के लिए प्रेरित किया। संगोष्ठी को आनलाइन संबोधित करते हुए देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति डॉ चिन्मय पण्ड्या ने कहा कि भारतीय संस्कृति में ही आत्मिक व आध्यात्मिक विकास निहित है। स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि भारत ही एक ऐसा देश है, जहाँ प्रत्येक मानवों के विकास के संबंध कार्य होता है। प्रतिकुलपति ने कहा कि बाल्याकाल से ही बच्चों को भारतीय संस्कृति से जोड़ने से उनमें शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक तीनों स्तर पर विकास होगा और इससे उन्हें अवसाद, तनाव, चिंता, निराशा, दुर्भाव आदि समस्याओं से बचाया जा सकता है। दो दिन चले इस संगोष्ठी में कुल बारह सत्र हुए, जिसमें विषय विशेषज्ञों ने भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा से जुड़े शिक्षकों, सक्रिय सदस्यों, जिला एवं प्रांतीय समन्वयकों का मार्गदर्शन किया।

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