परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि एक विकासवादी भविष्य के निर्माण के लिये विज्ञान और आध्यात्मिकता का संयुक्त स्वरूप और दोनों का समन्वय बहुत जरूरी है।
रिपोर्ट - ऑल न्यूज़ ब्यूरो
ऋषिकेश, 28 फरवरी। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि एक विकासवादी भविष्य के निर्माण के लिये विज्ञान और आध्यात्मिकता का संयुक्त स्वरूप और दोनों का समन्वय बहुत जरूरी है। आध्यात्मिकता, विज्ञान की वह नींव है जिस पर विकास का मजबूत भवन खड़ा किया जा सकता है। नींव मजबूत होगी तो भवन स्थायी और सुदृढ़ होगा क्योंकि अध्यात्म और विज्ञान एक ही सिक्के के दो पहलू है इसलिये दोनों को साथ लेकर चलना होगा, दोनों में से एक भी कमजोर होगा तो सतत विकास की कल्पना नहीं की जा सकती हैं। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि विज्ञान, भौतिक प्रगति का आधार है परन्तु अकेला विज्ञान सजृनकर्ता नहीं हो सकता। विज्ञान के साथ मानवता और नैतिकता होगी तभी वह विध्वंसक नहीं बल्कि सृजन करने वाला होगा। आज के युग में धरती पर मानवता और नैतिकता से युक्त औद्योगीकरण की ही आवश्यकता है, क्योंकि यही तो सहिष्णुता और सार्वभौमिकता का सूत्र भी है। पुरातात्विक निष्कर्षों से यह पता चलता है कि हमारी प्राचीन सभ्यतायें भी विज्ञान सम्मत और वैज्ञानिकता से युक्त थीं परन्तु उन सभ्यताओं का विकास नैतिक मूल्यों के आधार पर किया गया था, न केवल विकास बल्कि उसमें कई तात्कालिक समस्याओं का समाधान भी निहित था। उस समय विकास में मानव के साथ-साथ प्रकृति और पृथ्वी के प्रति अहिंसा, सत्य, प्रेम, शुचिता और ईमानदारी के भाव भी थे आज वह खोते दिखायी दे रहें हैं।