परमार्थ निकेतन गंगा तट पर उपनिषद्, भगवत गीता:ध्यान योग‘ पर नौ दिवसीय अनुष्ठान हो रहा है, जिसमें सहभाग हेतु दक्षिण भारत से हजारों की संख्या में साधक परमार्थ निकेतन पधारे। सभी साधक भक्ति भाव से ज्ञान गंगा और दिव्य गंगा में स्नान कर रहे हैं। वेदांत संप्रदाय के आचार्य श्री रमणचरनतीर्थ नोचूर वेंकटरमण जी के नेतृत्व में अनुष्ठान सम्पन्न हो रहा है।
रिपोर्ट - allnewsbharat.com
ऋषिकेश, 8 अप्रैल। परमार्थ निकेतन गंगा तट पर उपनिषद्, भगवत गीता:ध्यान योग‘ पर नौ दिवसीय अनुष्ठान हो रहा है, जिसमें सहभाग हेतु दक्षिण भारत से हजारों की संख्या में साधक परमार्थ निकेतन पधारे। सभी साधक भक्ति भाव से ज्ञान गंगा और दिव्य गंगा में स्नान कर रहे हैं। वेदांत संप्रदाय के आचार्य श्री रमणचरनतीर्थ नोचूर वेंकटरमण जी के नेतृत्व में अनुष्ठान सम्पन्न हो रहा है। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और ग्लोबल इंटरफेथ वाश एलायंस की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती जी ने नौ दिवसीय अनुष्ठान में आये साधकों को सम्बोधित किया तथा वेदान्त से संबंधित विषयों पर जिज्ञासाओं का समाधान किया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने दक्षिण भारत से गंगा तट पर आकर साधना कर रहे साधकों का अभिनन्दन करते हुये कहा कि परमार्थ निकेतन में दक्षिण और उत्तर का अद्भुत संगम दिखायी दे रहा हैं। यह अद्भुत और अलौकिक दृश्य हैं। स्वामी जी ने कहा कि प्रतिवर्ष यहां पर सभी साधक आयें और इस पवित्र वातावरण का आनन्द लें ताकि हम सब एक परिवार हैं ; एक है इसका दर्शन सदैव होता रहे तथा संगच्छध्वं संवदध्वं के मंत्र के साथ आगे बढ़ते रहे। स्वामी जी ने कहा कि यह भगवान नीलकंठ की धरती है, प्रभु श्री राम और लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न की धरती हैं, जिन्होंने यहां आकर साधना की। यह धरती साधना, उपासना और आराधना की धरती है, चिंतन, मनन और मंथन की धरती है इसलिये उत्तराखंड में तीर्थाटन की दृष्टि से आयें क्योंकि तीर्थ भाव से बाहर का आनन्द नहीं बल्कि भीतर का आनन्द भी प्राप्त होता है। स्वामी जी ने कहा कि वेदांत दर्शन उपनिषद् पर आधारित है जिसके माध्यम से आप सभी ब्रह्म की अवधारणा को समझ पायेंगे क्योंकि यही उपनिषद् का केंद्रीय तत्त्व है। स्वामी जी ने कहा कि वेद ज्ञान के परम स्रोत हंै। वेदांत में संसार से मुक्ति के लिये त्याग के स्थान पर ज्ञान के पथ की व्याख्या की गयी है और बताया गया है कि ज्ञान का अंतिम उद्देश्य संसार से मुक्ति के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति है।