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वैदिक विसडम वैश्विक विसडम् बने - स्वामी चिदानन्द सरस्वती


परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय वेद विज्ञान सम्मेलन में सहभाग कर भारतीय संस्कृति और वेदों के संरक्षण और विकिपीडिया की तरह वैदिक पीडिया बनाने के विषय में चर्चा की। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि वेद, सनातन संस्कृति के प्राचीनतम ग्रन्थ हैं और हमारी संस्कृति के आधार स्तंभ भी हैं।

रिपोर्ट  - ALL NEWS BHARAT

ऋषिकेश, 29 अप्रैल। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय वेद विज्ञान सम्मेलन में सहभाग कर भारतीय संस्कृति और वेदों के संरक्षण और विकिपीडिया की तरह वैदिक पीडिया बनाने के विषय में चर्चा की। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि वेद, सनातन संस्कृति के प्राचीनतम ग्रन्थ हैं और हमारी संस्कृति के आधार स्तंभ भी हैं। वेद शब्द का अर्थ ही है “ज्ञान”। ज्ञान का अपार भण्डार है वेदों में। धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक क्षेत्र का ज्ञान समाहित है। वेद विश्व की सबसे प्राचीन लिखित कृतियों में से हैं इसलिये वेदों को संसार का आदि ग्रंथ कहा जाता है। वेदों में आध्यात्मिकता और वैज्ञानिकता, चिकित्सा और स्वस्थ दिनचर्या के अलावा स्वाधीनता और समानता, प्रकृति और पंचमहाभूतों का भी स्पष्ट उल्लेख किया गया है। ऋग्वेद में वैश्विक कल्याण के लिये बड़ा ही दिव्य मंत्र है ’’लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु।’’ स्वामी जी ने कहा कि वेदों में उल्लेखित मंत्र आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः सर्वे भवन्तु सुखिनः - सब के सुख और कल्याण की कामना करता हैं। ऊँ संगच्छध्वं संवदध्वं -सभी के बीच सौहार्द एवं एकता स्थापित करने वाला दिव्य मंत्र है। ‘‘असतो मा सद्गमय’’, यह केवल एक मंत्र नहीं है बल्कि इसमें जीवन का अध्यात्म है, जीवन जीने का शास्त्र है असत्य से सत्य की ओर, अन्धकार से प्रकाश की ओर मृत्यु से अमरता को प्राप्त बढ़ने का संदेश समाहित है। वेदों में अमरता से तात्पर्य सम्पूर्णता से है। ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णत्, पूर्ण मुदच्यते, पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवावशिष्यते। ऊँ शान्तिः, शान्तिः शान्तिः। अब समय आ गया है कि ‘‘विकिपीडिया की तरह वैदिक पीडिया बने,’’ पूरे विश्व को घर बैठे-बैठे आनलाइन सभी को वेदज्ञान सुलभ हो सके। वेद हमें जीवन को सफाई, सच्चाई और ऊँचाई की ओर बढ़ने का संदेश देते हैं। वेदभाषा, विश्व भाषा, वेदवाणी विश्ववाणी बने इस हेतु प्रयास करना होगा चूंकि वेद वाणी वसुधैव कुटुम्बकम् की वाणी है इसलिये अब जरूरत है वैदिक विसडम वैश्विक विसडम् बने, वैदिक ज्ञान वैश्विक ज्ञान बने, इस तरह से हमारे विद्वानों को कार्य करना होगा ताकि वेद भाषा जन-जन की भाषा बने और सर्व सुलभ हो ताकि सर्व हित वाले मंत्र सर्व सुलभ मंत्र बने सके।

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