परमार्थ निकेतन में उत्तराखंड के माननीय राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह जी, पीवीएसएम, यूवाईएसएम, एवीएसएम, वीएसएम (सेवानिवृत्त) पधारे। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती और राज्यपाल गुरमीत सिंह ने विभिन्न समसामयिक विषयों पर चर्चा की ।
रिपोर्ट - ALL NEWS BHARAT
ऋषिकेश, 1 मई। परमार्थ निकेतन में उत्तराखंड के माननीय राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह, पीवीएसएम, यूवाईएसएम, एवीएसएम, वीएसएम (सेवानिवृत्त) पधारे। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती और राज्यपाल गुरमीत सिंह ने विभिन्न समसामयिक विषयों पर चर्चा की । परमार्थ निकेतन में डॉ निशंक का रचना संसार अन्तर्राष्ट्रीय दो दिवसीय संगोष्ठी का उद्घाटन माननीय राज्यपाल उत्तराखंड गुरमीत सिंह जी, स्वामी चिदानन्द सरस्वती, माननीय पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड निशंक , डा अरूण , महात्मा गांधी हिन्दी विश्व विद्यालय वर्धा के कुलपति डा रजनीश कुमार शुक्ल जी, डा रश्मि खुराना , डा राजेश नैथानी , डा अश्विनी और अन्य विशिष्ट अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर किया। उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने कहा कि परमार्थ निकेतन का यह दिव्य क्षेत्र और यह क्षण ऐतिहासिक क्षण है। भारत की सभ्यता, संस्कृति और साहित्य अद्भुत है। यहां आज एक वल्र्ड रिकार्ड बनाने जा रहा है क्योंकि यहां पर निशंक जी की 108 रचनाओं का उत्सव है। इतनी पुस्तकों की रचना करना अद्भुत है, अपने आप में कीर्तिमान है। भारत की सभ्यता और साहित्य को लिखना अनिर्वाय है क्योंकि हम साहित्य के माध्यम से आने वाली पीढ़ियों को दिशा प्रदान कर सकते हैं। माननीय राज्यपाल जी ने कहा कि दो दिन के चिंतन-मंथन से अद्भुत अमृत निकल कर आयेगा। जीवन जो है वह सोच, विचार, और धारणा का समन्वय ही तो है। उन्होंने कहा कि परमार्थ निकेतन आकर जीवन की खोज समाप्त हो जाती है। जीवन का परम अर्थ प्राप्त होता है। माननीय राज्यपाल जी ने कहा कि शब्द में ही पूरा संसार है। भारत की सभ्यता और ब्रह्मण्ड की उत्त्पति ओम से हुई। ऊँ में पूरे ब्रह्मण्ड के स्वर समाहित है। उन्होंने कहा कि स्वामी जी से मैं जब भी मिलता हूँ मेरे जीवन की बैटरी चार्ज हो जाती है। ऐसे लगता है कि स्वामी जी ने पूरी मानवता की जिम्मेदारी ली है। भारत की महान परम्परा हमारे ऋषियों की सोच, विचार और धारणा ही तो है। उन्होंने कहा कि डा निशंक जी ने भारत की संस्कृति और सभ्यता को गहराई से जाना और उसे शब्दों में उतारा है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि डॉ निशंक जी का व्यक्तित्व हिमालय की तरह विशाल है और उनकी रचनायें भी सृजनात्मकता और संवेदनशीलता से युक्त है। उनका साहित्य ज्ञानवर्धक और प्रेरणाप्रद है।