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वेद के कोष हैं प्रो0 मनुदेव बन्धु - प्रो0 विनय विद्यालंकार


गुरुकुल कांगड़ी समविश्वविद्यालयए हरिद्वार के वेद विभाग के सभागार में वेद विभाग के प्रोफेसरए अध्यक्ष तथा प्राच्य विद्या संकाय के डीन प्रोण् मनुदेव बन्धु की सेवानिवृत्ति के अवसर पर विदाई समारोह का भव्य आयोजन किया गया।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

गुरुकुल कांगड़ी समविश्वविद्यालयए हरिद्वार के वेद विभाग के सभागार में वेद विभाग के प्रोफेसर अध्यक्ष तथा प्राच्य विद्या संकाय के डीन प्रोण् मनुदेव बन्धु की सेवानिवृत्ति के अवसर पर विदाई समारोह का भव्य आयोजन किया गया। सम्मान समारोह में बोलते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोण् सोमदेव शतांशु ने कहा कि प्रोण्बन्धु की ब्यालिस वर्ष की अवधि की शैक्षणिक सेवाएं सदा स्मरणीय रहेंगी। आपकी सरलताए सहजता तथा विद्या के प्रति अटूट अनुराग हम सबको अनुकरणीय रहेगा। कुलसचिव प्रोण् सुनील कुमार ने प्रो0 साहब को विदाई समारोह पर बधाई देते हुए उनके स्वास्थ की कामना की तथा उनकी वेद के प्रति रुचि की सराहना की। प्रोण् विनय विद्यालंकार ने उनको प्रकाश का स्तम्भ बताते हुए उनके विद्यानुरागिता के गुणों का बखान किया तथा उन्हें वेदविद्या के कोष बताया। वेद विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो0 भारत भूषण विद्यालंकार ने उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए उन्हें अतीव सौम्य अध्यापक तथा मानवता की प्रतिमूर्ति बताया। गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर से पधारे डा0 सुशीलकुमार कविराज ने उनके विषय में कविता का वाचन किया तथा डा0 जयकुमार त्यागी ने जीवन को उन्नतिशील बनाने के लिये समय के महत्त्व को दर्शाने वाली स्वनिर्मित कविता का गान करते हुए प्रो0 बन्धु को कविता समर्पित की। शिक्षकेतर संघ के अध्यक्ष चौधरी प्रमोद कुमार ने प्रोण् बन्धु को विश्वविद्यालय का सुयोग्य शिक्षक बताते हुए उनकी विद्वाता की प्रशंसा की। संकाय की तरफ से प्रोण् बन्धु की विशाल सेवाओं और उनके द्वारा वेदविद्या के प्रचार तथा प्रसार हेतु वेदसूर्यसम्मान की उपाधि से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर प्रोण् सुरेन्द्र कुमार त्यागीए प्रोण् ब्रह्मदेवविद्यालंकारए डाण् दीनदयाल वेदालंकारए डाए संगीता विद्यालंकारए डाण् बबलू वेदालंकार डा0 विपिन बालियानए गिरीश सुन्दरीयालए प्रोण् रामप्रकाश वर्णीए डाण् रामचन्द्र मेघवालए डाण् भगवानदास जोशीए हेमन्त नेगीए डा0 भारत वेदालंकार तथा संकाय समस्त छात्र एवं छात्राएं उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन प्रो0 सत्यदेव निगमालंकार ने किया।

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