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एम्स ऋषिकेश में जीवनरक्षक तकनीक कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) का प्रशिक्षण


परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती के आशीर्वाद से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, (एम्स) ऋषिकेश में आयोजित जीवनरक्षक तकनीक कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) का प्रशिक्षण परमार्थ निकेतन के ऋषिकुमारों और सेवा टीम ने लिया।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 27 अगस्त। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती के आशीर्वाद से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, (एम्स) ऋषिकेश में आयोजित जीवनरक्षक तकनीक कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) का प्रशिक्षण परमार्थ निकेतन के ऋषिकुमारों और सेवा टीम ने लिया। यूएसए, डॉ. आहूजा ने जीवनरक्षक तकनीक कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) का प्रशिक्षण दिया। जीवनरक्षक तकनीक कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) अर्थात् किसी की सांस या दिल की धड़कन रुक गई हो, उदाहरण के लिए, जब किसी को दिल का दौरा पड़ता है ऐसे समय तेज छाती संपीड़न के साथ सीपीआर शुरू करने की सलाह डाक्टर देते हंै। उन्होंने बताया कि सीपीआर से पहले देखे कि पीड़ित की नाड़ी और सांस चल रही है। यदि 10 सेकंड के भीतर कोई नाड़ी या सांस नहीं चल रही है, तो छाती को दबाना शुरू करें। दो बचाव साँसें देने से पहले छाती को 30 बार दबाने के साथ सीपीआर शुरू करना चाहिये। प्रति मिनट 100 से 120 की दर से छाती को दबाएं। उन्होंने बताया कि वयस्कों, बच्चों और शिशुओं को सीपीआर की आवश्यकता होती है, लेकिन नवजात शिशुओं को नहीं। ज्ञात हो कि नवजात शिशु 4 सप्ताह तक के शिशु होते हैं। सीपीआर मस्तिष्क और अन्य अंगों में ऑक्सीजन युक्त रक्त प्रवाह को तब तक बनाए रख सकता है जब तक कि आपातकालीन चिकित्सा उपचार सामान्य हृदय गति को बहाल नहीं कर देता। जब हृदय रुक जाता है, तो शरीर को ऑक्सीजन युक्त रक्त नहीं मिल पाता है। ऑक्सीजन युक्त रक्त की कमी से कुछ ही मिनटों में मस्तिष्क क्षति हो सकती है।

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