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प्रकृति संदेश दे रही है संभल जा आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के मानव


जीवन की रचना सुख-दुख के आवरण से बनी है। सुख-दुख व्यक्ति के प्रारब्ध तथा कर्मो से नियत होते है। सुख मे सुखी तथा दुख मे दुखी रहना व्यक्ति की सामान्य प्रवृत्ति है। जब व्यक्ति सुख तथा दुख मे सम-भाव रहता है, वह जीवन के महत्व एवं वास्तविक स्वरूप को पहचानता है। परन्तु दुख मे ज्यादा दुखी रहने वाला व्यक्ति कर्मो की महत्ता को न समझ कर आंशिक उपाय द्वारा दुख निवृत्ति का प्रयास करता है।

रिपोर्ट  - ALL NEWS BHARAT

जीवन की रचना सुख-दुख के आवरण से बनी है। सुख-दुख व्यक्ति के प्रारब्ध तथा कर्मो से नियत होते है। सुख मे सुखी तथा दुख मे दुखी रहना व्यक्ति की सामान्य प्रवृत्ति है। जब व्यक्ति सुख तथा दुख मे सम-भाव रहता है, वह जीवन के महत्व एवं वास्तविक स्वरूप को पहचानता है। परन्तु दुख मे ज्यादा दुखी रहने वाला व्यक्ति कर्मो की महत्ता को न समझ कर आंशिक उपाय द्वारा दुख निवृत्ति का प्रयास करता है। इसी कारण जीवन मे कर्म की प्रधानता धीरे-धीरे नगण्य होने लगती है और व्यक्ति दुखी जीवन यापन करते हुए ही अपनी जीवन यात्रा पूरी करता है। यही वास्तिविक रूप मे जीवन का दर्शन है। मनोवैज्ञानिक विश्लेषक डाॅ शिव कुमार का मानना है कि विपत्ति तथा बदली परिस्थिति ही परमात्मा का बोध कराती है, यह सार्वभौमिक सत्य है। तालमेल से जीवन निर्वहन तथा परमात्मा का सदस्मरण बना रहने से दुख की तपीस कम अनुभव हो जाती है। 16 जून को केदारनाथ धाम मे आई भीषण आपदा के जख्म तथा विकराल मंजर याद करके आज भी रूह कांप जाती है। पहाड से लेकर मैदानी इलाकों मे बाढ की विनाश लीला आज 7 वर्षो का समय व्यतीत होने के बाद भी पीडित परिवार के लोगों के जहन मे न भुलाये जाने कष्ट के रूप में विद्ययमान है। उस विनाश लीला के मंजर को याद करके प्रकृति के कोप तथा व्यक्ति के कर्मो की विभीषका का भी पता चलता है। व्यक्ति अपने जीवन मे सुख को स्थायी स्रोत बनाने के लिए प्रकृति की सभी मर्यादाओं का उल्ंलधन करता चला आ रहा है। जिसकी सभी सीमाएं समाप्त हो चुकी है। लेकिन प्रकृति से यह खिलवाड आखिर कब तक चलेगा। डाॅ शिव कुमार कहते है कि प्रकृति से मिलने वाले उत्पाद मनुष्य के लिए है। यह सत्य है, लेकिन ऐसा भी नही है कि उन उत्पाद के लिए व्यक्ति इस कदर स्वार्थी और हिंसक हो जाए की प्रकृति का महत्व उसकी दृष्टि में खत्म होता चला जाएं। इतिहास गवाह है कि व्यक्ति की इसी लालसा ने सुनामी, तुफान, बाढ, भूकंम्प और अब कोरोना जैसी विकरालता से दो-चार होना पड रहा है। क्षण भंगुर जीवन के लिए यह चुनौती व्यक्ति के एक सबक है। जिसके माध्यम से शायद प्रकृति यह संदेश दे रही है कि ए आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के मानव, जीवन की आवश्यकताओं को सीमित करते हुए प्रकृति के सम्मान की रक्षा करना सीख ले। नही तो आने वाला समय नई तथा विकट चुनौतियों से भरा होगा। जिसके लिए केवल और केवल व्यक्ति ही जिम्मेदार होगा।

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