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हमारी वैदिक संस्कृति में जल अत्यंत महात्वपूर्ण संसाधन है - स्वामी चिदानन्द


परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने आज अमेरिका की धरती से जल संरक्षण का संदेश देते हुये कहा कि जल पञ्चमहाभूतों में से एक प्रमुख संसाधन है। हमारी पृथ्वी पर लगभग तीन चैथाई भाग जल है, फिर भी जल की समस्या बढ़ती ही जा रही है। हमारी वैदिक संस्कृति में जल अत्यंत महात्वपूर्ण संसाधन है तथा जल संरक्षण हमारे संस्कृति का एक मूल घटक भी रहा है।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 3 सितम्बर। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज अमेरिका की धरती से जल संरक्षण का संदेश देते हुये कहा कि जल पञ्चमहाभूतों में से एक प्रमुख संसाधन है। हमारी पृथ्वी पर लगभग तीन चैथाई भाग जल है, फिर भी जल की समस्या बढ़ती ही जा रही है। हमारी वैदिक संस्कृति में जल अत्यंत महात्वपूर्ण संसाधन है तथा जल संरक्षण हमारे संस्कृति का एक मूल घटक भी रहा है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि जल व वायु पृथ्वी के सर्वाधिक मूल्यवान संसाधन है और हमें न केवल अपने लिये इसकी रक्षा करनी है बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिये भी इसे संरक्षित करके रखना है। वर्तमान समय में न केवल भारत बल्कि संपूर्ण विश्व जल संकट का सामना कर रहा है, ऐसे में आवश्यक है कि इस ओर गंभीरता से ध्यान दिया जाए। स्वामी ने कहा कि जल प्रबंधन का आशय जल संसाधनों के इष्टतम प्रयोग से है क्योंकि जल मानव अस्तित्व को बनाए रखने के लिये एक प्रमुख प्राकृतिक संसाधन है। सनातन संस्कृति से ही जल को प्रमुख संसाधनों में शामिल किया है। वर्तमान समय में जल एक ऐसा अति महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दा है जो न केवल मनुष्य बल्कि सम्पूर्ण मानवता को भी प्रभावित करता है। जल की शुचिता और स्वच्छता कई क्षेत्रों में विस्तारित है। उत्तराखंड में ऐसा माना जाता है कि सभी सिंचाई चैनलों में पानी की आत्मा मौजूद है जो फसलों की सुरक्षा के लिये आवश्यक है। राजस्थान में मानसून के पहले लसिपा पर्व मनाया जाता है। इस पर्व के दौरान गाँव के समस्त लोग एकत्र होकर सभी जल निकायों की सफाई करते हैं, उनकी देखभाल करते हैं तथा इसे एक दिव्य अनुष्ठान की तरह मनाते है। गणगौर और अक्खा तीज पर्वों के दौरान नारियाँ झीलों और टैंकों को साथ मिलकर साफ व स्वच्छ करती हैं। भारत में मनायी जाने वाली ऐसी सभी सांस्कृतिक परंपराएँ जल संरक्षण के सामुदायिक स्वामित्व, भागीदारी और जिम्मेदारी को दर्शाती हैं। इन परम्पराओं के मूल और मूल्यों से वर्तमान पीढ़ी को जोड़ना होगा ताकि जल संरक्षण के सामुदायिक स्वामित्व को जीवंत व जागृत बनाये रखा जा सके।

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