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'हिमालयी परिस्थितिकी तंत्र के सतत विकास में जन भागीदारी' विषयक एकदिवसीय कार्यशाला का आयोजन


कार्यशाला के मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय के कुलाधिपति एवं बागपत सांसद डॉ. सत्यपाल सिंह ने अपने सम्बोधन में कहा कि आपदाएँ प्राकृतिक नहीं मानव निर्मित होती हैं वैदिक संस्कृति ही हमें सतत विकास के उचित रास्ते पर ले जा सकती है क्योंकि वहाँ प्रकृति का स्वरूप वैज्ञानिक है।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ईको क्लब, ग्रीन ऑडिट सेल, जन्तु एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग गुरुकुल काँगड़ी समविश्वविद्यालय द्वारा हिमालय दिवस पर 'हिमालयी परिस्थितिकी तंत्र के सतत विकास में जन भागीदारी' विषयक एकदिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया। कार्यशाला के मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय के कुलाधिपति एवं बागपत सांसद डॉ. सत्यपाल सिंह ने अपने सम्बोधन में कहा कि आपदाएँ प्राकृतिक नहीं मानव निर्मित होती हैं वैदिक संस्कृति ही हमें सतत विकास के उचित रास्ते पर ले जा सकती है क्योंकि वहाँ प्रकृति का स्वरूप वैज्ञानिक है। डॉ. सिंह ने कहा कि हिमालयी क्षेत्र में सतत विकास के लिए यह भी आवश्यक है कि इस क्षेत्र के लिए बनाए गए विशेष क़ानूनों के बारे में जनजागरूकता हो उन्होने छात्रों से आह्वान किया कि वे इस जानकारी को अपने पैतृक स्थानों तक लेकर जाए। डॉ. सत्यापल सिंह ने कहा कि वैदिक ऋषि मूलत: वैज्ञानिक थे इसलिए वेदों में मनुष्य और प्रकृति के समन्वय का मार्ग दिखाई देता है। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झांसी के पूर्व कुलपति प्रो. एस. वी. एस. राणा ने कहा कि हिमालयी क्षेत्र के संरक्षण के लिए एक स्वतंत्र नीति की आवश्यकता है क्योंकि हिमालय के संसाधनों का दुरुपयोग हो रहा है। प्रो. राणा ने कहा कि नीतिगत तौर पर पर्यावरण परिषद का गठन होना चाहिए जो अलग-अलग स्तरों पर पर्यावरण संरक्षण के लिए जनभागीदारी को सुनिश्चित करें। प्रो. राणा ने शिक्षकों को पर्यावरण चेतना से सम्पन्न समाज बनाने के लिए शिक्षकों को आगे आकर काम करने का आह्वान किया। 'हिमालयी परिस्थितिकी तंत्र के सतत विकास में जन भागीदारी' विषयक एकदिवसीय कार्यशाला में बीज वक्तव्य डॉ. पी. के. मिश्र, आईआईएच रुड़की ने प्रदान किया। पीपीटी प्रस्तुति के माध्यम से डॉ. मिश्र ने हिमालयी क्षेत्र में आपदा के कारणों और बचाव के उपायों पर विस्तृत चर्चा की। डॉ. पी. के. मिश्र ने कहा कि हिमालयी क्षेत्र में सतत विकास और उसके परिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिए जन,जल, जंगल,जमीन और जानवर के मध्य मैत्री और समन्वय-संतुलन का रिश्ता होना नितांत ही आवश्यक है तभी सह अस्तित्व बचा रह सकता है। डॉ. मिश्र ने हिमालयी क्षेत्र में जल संकट से निबटने के लिए लघु जल स्रोतों के संरक्षण को आवश्यक बताया तथा बादल फटने जैसी घटनाओं से जनहानि को रोकने के लिए आपदा चेतावनी तंत्र को अत्याधुनिक बनाने पर बल दिया।

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