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जय माँ अबै ,बोल माड़ी अम्बे के उद्घोष के बिच नम आँखों से माता को दी विदाई


नवमी की देर रात्रि और विजयादशमी के मौके पर भक्तों ने नम आंखों के साथ मां आदि शक्ति को विदा किया। शारदीय नवरात्र के नौ दिनों के अनुष्ठान के बाद मंगलवार को जब माता के विदाई की बेला आई, तो मां से दूर होने का गम कमोबेश हर भक्तों के अश्रुपूरित आंखों स्पष्ट बता रही थी।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

नवमी की देर रात्रि और विजयादशमी के मौके पर भक्तों ने नम आंखों के साथ मां आदि शक्ति को विदा किया। शारदीय नवरात्र के नौ दिनों के अनुष्ठान के बाद मंगलवार को जब माता के विदाई की बेला आई, तो मां से दूर होने का गम कमोबेश हर भक्तों के अश्रुपूरित आंखों स्पष्ट बता रही थी। इस दौरान श्रद्धालुओं ने काफी मायूसी के साथ माता को विदा किया। अश्रुपूरित भक्तों की आंखें अंतिम विदाई के दौरान माता से सुख-समृद्धि और निरोग रहने की कामना कर रही थी। इधर माता भगवती की प्रतिमा और गरबी का विसर्जन गंगा तट पर हुआ ।इस अवसर पर हरिद्वार के सभी गुजराती परविअर एक साथ जय माँ अबै ,बोल माड़ी अम्बे के उद्घोष के साथ पहुंचे और माता को गमगीन होकर विसर्जन किया। मंगलवार की मध्य रात्री को हरिद्वार गुजु परिवार द्वारा चल रहे गरबा महोत्सव पर भक्तों ने नम आंखों के साथ मां आदि शक्ति को विदा किया। शारदीय नवरात्र के नौ दिनों में गुजरती संस्कृति के अनुसार अम्बे माता की आराधना का प्रमुख गरबा ही होता है। हरिद्वार का ये गुजराती परिवार पिछले २००७ से प्रतिवर्ष नवरात्र के दौरान विशेष गरबा व डांडिया का आयोजन करता है। इसमें धर्मनगरी हरिद्वार में गुजराती संस्कृति के अनुरूप नवरात्र महोत्सव का आयोजन किया जाता है। आयोजन में माँ शक्ति की विधिवत आरती, पूजा के साथ सभी गरबा नृत्य, डांडिया नृत्य करते हैं एवं विशेष गुजराती प्रसाद का वितरण किया जाता है। ये परिवार नौकरी, व्यापार आदि के सिलसिले में गुजरात से आकर तीर्थ नगरी में रहता है। यह आयोजन हरिद्वार गुज्जु ग्रुप द्वारा शहर के मध्य में श्याम सुंदर निवास ,नेशनल हाइवे ,मायापुर में ९ दिनों तक चला । गरबा गुजरात में प्रचलित एक लोक नृत्य है वर्तमान में उसका कुछ परिष्कार हुआ है फिर भी उसका लोकनृत्य का तत्व अक्षुण्ण है। आरंभ में देवी के निकट सछिद्र घट में दीप ले जाने के क्रम में यह नृत्य होता था। इस प्रकार यह घट दीप गर्भ कहलाता था। वर्णलोप से यही शब्द गरबा बन गया। आजकल गुजरात में नवरात्रि के दिनों में लड़कियाँ कच्चे मिट्टी के सछिद्र घड़े को फूल पत्तियों से सजाकर उसके चारों ओर नृत्य करती हैं।

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