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श्रीमद्भगवतगीता भौतिक युग में मानव जिदंगी का दर्पण


धरती पर जीवमात्र अपने अपने कर्मो के आधार पर सुख-दुख का उपभोग करता है। सुख सद्कर्मो का प्रतीक है वही दुख बुरे कर्मो का। सुख का उपभोग करने पर आनन्द एवं शान्ति की अनुभूति होती है वही दुख के उपभोग मे कष्ट एवं पीडा का अनुभव होता है।

रिपोर्ट  - ALL NEWS BHARAT

24 जून, 2020,धरती पर जीवमात्र अपने अपने कर्मो के आधार पर सुख-दुख का उपभोग करता है। सुख सद्कर्मो का प्रतीक है वही दुख बुरे कर्मो का। सुख का उपभोग करने पर आनन्द एवं शान्ति की अनुभूति होती है वही दुख के उपभोग मे कष्ट एवं पीडा का अनुभव होता है। वर्तमान परिवेश मे श्रीमद्भगवतगीता की सार्थकता विषय पर सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी आॅफ हरियाणा, महेन्द्रगढ द्वारा कोविड के प्रभाव मे नेशनल योग वेबिनार का आयोजन किया गया। जिसमे श्रीमद्भगवतगीता मे कर्मो फल की सार्थकता पर विचार रखते हुए गुरूकुल कांगडी विश्वविद्यालय, हरिद्वार के शारीरिक शिक्षा एवं खेल विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅ0 शिव कुमार चैहान ने बताया कि सुख-दुख जीवन की दो ऐसी राह है जिसमे एक पर चलने से दूसरे का वियोग संभव है। अर्थात सुख-दुख एक साथ जीवन मे समाहित नही हो सकते। श्रीमद्भगवतगीता के अनुसार व्यक्ति जब जन्म लेता है तब उसके समक्ष प्रारब्ध तथा कर्म दो ही विकल्प प्रमुख होते है। प्रारब्ध के आधार पर उसे स्थूल शरीर तथा बुद्वि-विवेक प्राप्त होता है। जबकि कर्म करने के लिए व्यक्ति को संस्कार तथा वातावरण की आवश्यकता होती है। जो उसे माता-पिता तथा उस परिवार से मिलते है जहां उसका जन्म हुआ है। अर्थात व्यक्ति मे रोपित संस्कार तथा वातावरण ही उसके कर्मो की गति का निर्धारण करते है। यह स्थिति ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार एक शीत प्रदेश मे उगने वाले पेड को उष्ण प्रदेश मे रोपित कर दिया जाये तो वह भलीभाॅति देखरेख करने पर भी उगना संभव नही है। कारण अनुकूल वातावरण नही मिलना। इसी प्रकार प्रारब्ध मे सब सद्गुण मिलने पर भी संस्कार तथा वातावरण के अभाव मे व्यक्ति मे सद्गुण अधिक समय तक स्थायी नही बने रह सकते। उनके ऊपर विपरीत गुणों का प्रभाव बढने लगेगा। और सद्गुणो का दमन हो जायेगा। इसलिए धरती पर व्यक्ति को जीवन रहस्यों को समझने तथा कठिन राह को सुगमता से पार करने का वास्तविक मार्ग श्रीमद्भगवतगीता प्रदान करती है। व्यक्ति को श्रीमद्भगवतगीता द्वारा बताये गये मार्ग का अनुसरण करते हुए जीवन पथ को सुगमता से पार करने की कला को अपनाना चाहिए। क्योकि श्रीमद्भगवतगीता ही भौतिक युग मे मानव जीवन का दर्पण है। इस अवसर पर आयोजन समिति के चैयरमेन प्रो0 सतीश कुमार, संयोजक प्रो0 रविन्द्रपाल अहलावत तथा आयोजन सचिव डाॅ0 अजय पाल उपस्थित रहे।

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