Latest News

गु0कां0वि0वि0 में आयोज्यमान सप्त दिवसीय अन्तर्जालीय कारकविषयक कार्यशाला के पंचम दिवस प्रारम्à¤


गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के द्वारा आयोज्यमान सप्त दिवसीय अन्तर्जालीय कारकविषयक कार्यशाला के पंचम दिवस प्रारम्भ में देव नागरी महाविद्यालय, गुलावरी, बुलंदशहर के मुख्यवक्ता के रूप में डॉ हरिदत्त शर्मा ने बताया कि किसी ध्रुव (अचल) वस्तु या स्थान से अलग होना की अवस्था में अचल वस्तु या स्थान की अपादानसंज्ञा (अपादान कारक) होगी ।

रिपोर्ट  - ALL NEWS BHARAT

गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के द्वारा आयोज्यमान सप्त दिवसीय अन्तर्जालीय कारकविषयक कार्यशाला के पंचम दिवस प्रारम्भ में देव नागरी महाविद्यालय, गुलावरी, बुलंदशहर के मुख्यवक्ता के रूप में डॉ हरिदत्त शर्मा ने बताया कि किसी ध्रुव (अचल) वस्तु या स्थान से अलग होना की अवस्था में अचल वस्तु या स्थान की अपादानसंज्ञा (अपादान कारक) होगी । उन्होने बताया कि जहाँ अपादान कारक होता है वहां पंचमी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है । संज्ञा के जिस रूप से एक वस्तु का दूसरी से अलग होना पाया जाए वह अपादान कारक कहलाता है। कर्त्ता अपनी क्रिया द्वारा जिससे अलग होता है, उसे अपादान कारक कहते हैं। जैसे- पेड़ से आम गिरा। इस वाक्य में (पेड़) अपादान अवस्था में है, क्योंकि आम पेड़ से गिरा अर्थात अलग हुआ है। जैसे- बच्चा छत से गिर पड़ा या गीता घर से चल पड़ी। इन दोनों वाक्यों में (छत से) और (घर से) गिरने में अलग होना प्रकट होता है। अतः घर से और छत से अपादान अवस्था में हैं। प्रोफेसर सोमदेव शतांशु ने बताया कि अपादान कारक, वाक्य में जिस स्थान या वस्तु से किसी व्यक्ति या वस्तु की पृथकता अथवा तुलना का बोध होता है, वहां अपादान कारक होता है। यानी अपादान कारक से अलग या विलगाव का बोध होता है। प्रेम, घृणा, लज्जा, ईर्ष्या, भय और सीखने आदि भावों की अभिव्यक्ति के लिए अपादान कारक का ही प्रयोग किया जाता है। क्योंकि उक्त कारणों से अलग होने की क्रिया किसी-न-किसी रूप में जरूर होती है। जैसे वह कलम से लिखता है या उसके हाथ से कलम गिर गयी(हाथ से अलग होना)। ‘से’ चिन्ह करण एवं अपादान दोनों कारको का है। करण कारक का से माध्यम या साधन के लिए प्रयोग होता है, जबकि अपादान का ‘से’ अलग होने या करने का बोध कराता है। करण का ‘से’ साधन से जुड़ा रहता है। विश्वविद्यालय के प्राच्यविद्यासंकाय के अध्यक्ष प्रो० ब्रह्मदेव विद्यालंकार ने सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद व्यक्त किया। इस अवसर पर इस वेबिनार में प्रो० संगीता विद्यालंकार, डा० वीना विश्नोई, डा० मौहर सिंह, डा० वेदव्रत, डा० पंकज कौशिक, हेमन्त नेगी तथा विभिन्न विश्वविद्यालयों से लगभग ७०० से अधिक प्रतिभागी समुपस्थित थे।

Related Post