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निषेध पदार्थो का उपयोग बंद कर, आत्म निर्भर बनने की सोचे युवा


समाज व्यक्ति के जीवन की अदभुत प्रयोगशाला है। जहां वह अनुभव एवं संस्कारों के माध्यम से अपने जीवन मे रंग भरने का प्रयास करता है। जहां समाज का स्वरूप सकारात्मक चिन्तन एवं जागरूकता का पक्षधर होता है वहां कोई भी बुराई उसको प्रभावित नही कर पाती।

रिपोर्ट  - ALL NEWS BHARAT

26 जून अन्तर्राष्ट्रीय ड्रग्स निषेध दिवस के अवसर पर ।(26.06.2020) समाज व्यक्ति के जीवन की अदभुत प्रयोगशाला है। जहां वह अनुभव एवं संस्कारों के माध्यम से अपने जीवन मे रंग भरने का प्रयास करता है। जहां समाज का स्वरूप सकारात्मक चिन्तन एवं जागरूकता का पक्षधर होता है वहां कोई भी बुराई उसको प्रभावित नही कर पाती। परन्तु कभी-कभी मिथ्या एवं भ्रामक प्रचार व्यक्ति के अनुभव को प्रभावित करते है और व्यक्ति आवेश मे उसे शाही जीवन शैली का अंग मानते हुए उसके माया जाल मे फंसता जाता है। जिससे बाहर निकल पाना उसके लिए कठिन हो जाता है। ऐसी ही स्थिति समाज में ड्रग्स (मादक पदार्थो) के प्रयोग को लेकर बनी हुई है। विभिन्न प्रचार के माध्यम से युवा वर्ग (निषेध पदार्थो) से इतना विचलित हो जाता है कि उसको व्यवाहरिकता में लाने के लिए व्याकुल हो जाता है। यही सामाजिक परिवर्तन का आधार है। विश्व के सबसे युवा आबादी वाले देश के लिए दिन-प्रति-दिन यह चिन्ता का विषय बना हुआ है। भौतिक रूप से बढती जरूरतों की पूर्ति के लिए युवा मादक पदार्थो का आदि होता जा रहा है। जिससे उसकी दैनिक आवश्यकताए भले ही पूरी हो रही हो परन्तु नैतिक हनन का ग्राफ भी बढता जा रहा है। मान-सम्मान का आदर करते हुए एवं अपनी प्रतिभा के बल पर जिस कीर्तिमान की आशा यह समाज युवाओं से करता है वह कही धूमिल होती नजर आ रही है। क्षण भर के आनन्द एवं मनोंरंजन के लिए व्यक्ति अपने स्वास्थ्य से समझौता कर रहा है। परन्तु उसके दूरगामी प्रभाव से अभी वह चिन्तित नही है। समाज मे गुटखा, तम्बाकू तरह तरह के पान मसाले, मादक द्रव्य, मद्यपान, धुम्रपान आदि का प्रयोग चरम पर है। जो व्यक्ति को आपराधिक प्रवृत्ति की ओर ले जा रहा है। जो सामजिक चिन्तकों के लिए सोचनीय विषय है। गुरूकुल कांगडी विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅ0 शिव कुमार चैहान कहते है कि युवा वर्ग केवल गुटखा, तम्बाकू आदि के सेवन से तो प्रभावित होता ही आ रहा है। वही जिम के प्रयोग से कम समय मे निषेध प्रोटीन तथा स्टीराॅयड आदि निषेध पदार्थो का उपयोग करके अपने शारीरिक गठन तथा क्षमताओं को बढाने के प्रयास में लगा है। लेकिन वह यह नही समझ पा रहा है कि शरीर का दोहन भी एक प्रकार का उपराध ही है। जिस शरीर के माध्यम से उसे जीवन के उतार-चढाव का सामना करना है उसे इस प्रकार दूषित करते हुए कुदरती एवं प्राकृतिक तरीकों से प्राप्त स्वास्थ्य को नष्ट कर रहा है। इसलिए आज 26 जून अन्तर्राष्ट्रीय ड्रग्स निषेध दिवस के अवसर पर संकल्प लेने की आवश्यकता है कि हम प्रकृति के विपरीत स्रोतो से प्राप्त होने वाली तथा शरीर को हानि पहुॅचाने वाले निषेध तत्वों के प्रयोग को बंद कर वैश्विक आकर्षण के छलावे मे न आकर भारतीय संस्कृति एवं सदभाव के उददेश्य प्राप्ति को आधार बनाकर आत्म निर्भर भारत बनाने की दिशा मे सार्थक पहल करेगे।

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