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स्वामी विवेकानन्द जी के निर्वाण दिवस को युवा निर्माण दिवस के रूप में मनायें


मानवतावादी चिंतक युगपुरूष स्वामी विवेकानन्द जी के अनुसार मनुष्य का जीवन ही एक धर्म है। धर्म न तो केवल पुस्तकों में है, न ही धार्मिक सिद्धांतों में, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति अपने में ईश्वर का अनुभव स्वयं कर सकता है। उनकेे शब्दों में “मेरा ईश्वर दुखी, पीड़ित व हर जाति का निर्धन मनुष्य है|

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 4 जुलाई। मानवतावादी चिंतक युगपुरूष स्वामी विवेकानन्द जी के अनुसार मनुष्य का जीवन ही एक धर्म है। धर्म न तो केवल पुस्तकों में है, न ही धार्मिक सिद्धांतों में, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति अपने में ईश्वर का अनुभव स्वयं कर सकता है। उनकेे शब्दों में “मेरा ईश्वर दुखी, पीड़ित व हर जाति का निर्धन मनुष्य है’’, जैसे अनेक सिद्धान्तों एवं क्रान्तिकारी विचारों को देने वाले युग प्रवर्तक स्वामी विवेकानन्द जी के आज महानिर्वाण दिवस पर परमार्थ निकेतन में पूजा अर्चना कर स्वामी विवेकानन्द जी को याद किया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि स्वामी विवेकानंद जी ने युवाओं को आध्यात्मिक बल के साथ-साथ शारीरिक बल में वृद्धि करने के लिये भी प्रेरित किया। उन्होंनेे ऐसी शिक्षा पर बल दिया जिसके माध्यम से विद्यार्थियों की आत्मोन्नति हो, शिक्षा में नैतिकता हो, जो उनके चरित्र निर्माण में भी सहायक हो सके। भारतीय संस्कृति के प्रमुख तत्व मानववाद एवं सार्वभौमिकतावाद स्वामी विवेकानंद जी के राष्ट्रवाद की प्रमुख आधारशिला हैं। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द जी 19वीं सदी के श्रेष्ठ आध्यात्मिक गुरुओं में एक थे और वेदान्त के व्याख्याकार थे। उन्होंने हिंदू धर्म तथा अद्वैत वेदान्त की वैज्ञानिक और व्यावहारिक व्याख्या करते हुए भारत के नवजागरण में विलक्षण भूमिका निभायी। उन्होंने वर्ष 1893 ई. में शिकागो में आयोजित ‘विश्व धर्म महासभा’ में हिंदू धर्म को सहिष्णु तथा सार्वभौमिक धर्म के रूप में चित्रित किया। अपने ऐतिहासिक भाषण में उन्होंने सार्वभौमिक भ्रातृभाव को सभी धर्मों का आधार कहा था। वास्तव में उनके सभी सिद्धान्त और संदेश आज के युग में भी उतने ही प्रसंगिक हैं। उन्होंने सदैव मनुष्य को कर्मशील बने रहने के लिये प्रेरित करते हुये संदेश दिया कि ‘उठो, जागो और तब तक न रूको, जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए’। स्वामी जी ने युवाओं को जीवन की बाधाओं से लड़ने का संदेश दिया, जिसे आज उनके निर्वाण दिवस पर हर युवा को आत्मसात करना चाहिये ताकि फिर किसी परिवार को सुशांत सिंह के जैसे अपने बेटे को न खोना पड़े। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने युवाओं को संदेश देते हुये कहा कि हमारे देश के चिंतकों ने अपने जीवन के अनुभवों से जो सिद्धांत दिये है उन पर चलने की कोशिश करें। स्वामी विवेकानन्द जी ने युवाओं के लिये, समाज के लिये, संस्कृति, राष्ट्र तथा पूरे विश्व के कल्याण के लिये जो विचार दिये वे हर युग में प्रासंगिक हैं तथा अपने कालजयी स्वरूप में ये विचार आगे आने वाली कई सदियों तक मानव जाति को श्रेष्ठ मार्ग दिखाते रहेंगे। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हमारे देश के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी ने आत्मनिर्भर भारत का संदेश दिया है परन्तु आत्मनिर्भर भारत तभी बन सकता है जब आत्मनिर्भर गांव होगे। हमंे संकल्प लेना होगा कि मेरा गांव, मेरा तीर्थ, मेरा गांव, मेरी शान, ऐसी सोच पैदा करनी होगी और हमें अपनी जीवनशैली को बदलना होगा। हमें ग्रीड कल्चर से ग्रीन कल्चर की ओर बढ़ना होगा, ग्रीड कल्चर से नीड कल्चर की ओर बढ़ना होगा और नीड कल्चर से नये कल्चर की ओर कदम बढ़ाने होंगे। हमें अपने जीवन में छोटे-छोटे प्रयोग करने होंगे तथा जीवनचर्या को बदलना होगा। उन्होंने कहा कि अब युवाआंे को जल संरक्षण, वृक्षारोपण की मुहिम में जुटना होगा। प्रकृति और पर्यावरण के प्रति अपनेपन को लाना ही होगा तथा प्रकृति के साथ रिश्ता जोड़ना ही होगा। अब हमें ग्रीन विजन की जरूरत है सन 2020 में विजन 20: 20 चाहिये। यही विज़न दिया हमारी संस्कृति के ज्योतिर्धर महान युग प्रवर्तक स्वामी विवेकानन्द जी ने। उनका निर्वाण दिवस एक नये भारत का निर्माण दिवस बने। ऐसे दिव्य महापुरूष को यही श्रद्धांजलि होगी।

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