देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी ने कहा कि चैत्र नवरात्र साधक के आंतरिक गुणों को परिमार्जित करने का पावन अवसर है। यह साधना अध्यात्म क्षेत्र के कमांडो प्रशिक्षण जैसा है।
रिपोर्ट - ऑल न्यूज़ ब्यूरो
हरिद्वार 15 अप्रैल। देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी ने कहा कि चैत्र नवरात्र साधक के आंतरिक गुणों को परिमार्जित करने का पावन अवसर है। यह साधना अध्यात्म क्षेत्र के कमांडो प्रशिक्षण जैसा है। इसमें साधकों को कई तरह के अनुशासनों का पालन करना होता है। इन दिनों मनोयोगपूर्वक की गयी साधना से साधक के अंदर के कषाय कल्मषों का नाश होता है। युवा आइकॉन डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी नवरात्र साधना के अवसर पर गायत्री तीर्थ शांतिकुंज के मुख्य सभागार में आयोजित सत्संग में उपस्थित साधकों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रत्येक जीव कर्म के बंधन से बँधे हैं। उन्हें इनसे मुक्ति के लिए उच्च स्तरीय साधना की आवश्यकता होती है। ऋषि-मुनियों ने भी उच्च स्तरीय साधना की और अपने शिष्यों का मार्गदर्शन किया। युवा आइकॉन डॉ. चिन्मय जी ने कहा कि इन साधना के माध्यम से पूर्व जन्म में किये गये पापों का क्षय होता है तथा वर्तमान से लेकर भविष्य का मार्ग सुगम होता है। साधना के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हुए कहा कि जाग्रत तीर्थ परिसर व सद्गुरु के सान्निध्य में की गयी साधना पुण्यदायी होती है। शांतिकुंज में साधकों की दिनचर्या प्रातःकाल चार बजे से लेकर रात्रि नौ बजे तक है। इस बीच निर्धारित जप के साथ त्रिकाल संध्या भी साधक करते हैं। इस अवसर पर देश विदेश से आये हजारों साधकों सहित अंतेवासी कार्यकर्त्तागण उपस्थित रहे।