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प्रभु श्रीराम के चरण, षरण और आचरण हमारे जीवन का पाथेय - स्वामी चिदानन्द सरस्वती


परमार्थ निकेतन में संत मुरलीधर के मुखारविंद से आयोजित 34 दिवसीय श्रीराम कथा के आज 7 वें दिन प्रभु श्रीराम का प्राक्ट्य उत्सव मनाया। सभी ने धूमधाम से नाच-गाकर खुषियां मनायी।

रिपोर्ट  - आल न्यूज़ भारत

ऋषिकेष, 21 मई। परमार्थ निकेतन में संत मुरलीधर के मुखारविंद से आयोजित 34 दिवसीय श्रीराम कथा के आज 7 वें दिन प्रभु श्रीराम का प्राक्ट्य उत्सव मनाया। सभी ने धूमधाम से नाच-गाकर खुषियां मनायी। मानस कथा श्रवण कर रहें भक्तों को आज स्वामी चिदानन्द सरस्वती का पावन सान्निध्य, उद्बोधन व मार्गदर्षन प्राप्त हुआ। स्वामी चिदानन्द सस्वती जी ने कहा कि कथा समाज को सद्भाव, समरसता और समता का संदेष देती है जिसकी वर्तमान समय में पूरे विष्व को आवष्यकता है। आज संवाद व विकास के लिये विश्व सांस्कृतिक विविधता दिवस के अवसर पर स्वामी जी ने कहा कि विविधता में विषिष्टता कैसे हो वह प्रभु श्री राम का चरित्र और महाग्रंथ रामायण हमें संदेष देता है। भारत की धरती पर प्रभु श्री राम का प्राक्ट्य ही नहीं हुआ बल्कि उसके साथ एक संस्कृति का उद्भव भी हुआ जो न केवल भारत बल्कि पूरे विष्व के विकास को एक नई दिषा प्रदान कर रहा है। वर्तमान समय में भारत एक नये भारत के निर्माण की दिषा में अग्रसर हो रहा है। स्वामी जी ने कहा कि षो (दिखावा) के लिये बहुत कुछ है, षोर के लिये भी बहुत कुछ है परन्तु षान्ति के लिये कुछ चाहिये तो वह भगवान श्री राम की षरण, उनके चरण और उनका आचरण ही हमारे जीवन का पाथेय बने। कथा करना, कथा सुनना और कथा को आत्मसात करना भी प्रभु कृपा से ही सम्भव है। श्री राम कथा संषय को दूर करने वाली है। श्री राम कथा का आषय ही यह है कि कथा के माध्यम से प्रभु के गुणानुवाद को सुनना, उनकी षरण में बैठना और स्वयं को प्रभु के चरणों में समर्पित कर देना। साथ ही कथा को इतने भाव से सुनना कि दुनिया का कुछ पता न लगे। स्वयं को प्रभु के चरणों में समर्पित करने से जो प्राप्त होता है वह कभी भी प्रष्न करने से नहीं मिलता। प्रभु को पता है कि हमें क्या चाहिये। कथा इसलिये की जाती है कि हमारे धन की षुद्धि हो, विचारों व मन की षुद्धि हो और तन की षुद्धि के लिये गंगा स्नान, क्या अद्भुत रचना है प्रभु की। यह हम सभी का सौभाग्य है कि हमें प्रभु श्री राम जैसा चरित्र प्राप्त हुआ। उनके चित्र पर नजर जाये तो नजर नहीं हटती है और चरित्र पर नजर जाये तो हमारा जीवन भी विलक्षण हो जाता है।

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