परमार्थ निकेतन में आयोजित 34 दिवसीय श्री राम कथा के आज 12 वें दिन कथा व्यास संत मुरलीधर ने प्रभु श्रीराम व माता सीता जी के विवाह का अद्भुत प्रसंग सुनाना। इस अवसर पर भक्तों को परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती का पावन सान्निध्य व उद्बोधन प्राप्त हुआ।
रिपोर्ट - आल न्यूज़ भारत
ऋषिकेश, 26 मई। परमार्थ निकेतन में आयोजित 34 दिवसीय श्री राम कथा के आज 12 वें दिन कथा व्यास संत मुरलीधर ने प्रभु श्रीराम व माता सीता जी के विवाह का अद्भुत प्रसंग सुनाना। इस अवसर पर भक्तों को परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती का पावन सान्निध्य व उद्बोधन प्राप्त हुआ। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भावनाओं से ही हमारी सृष्टि को नूतन स्वरूप प्राप्त होता है। माँ गंगा के तट पर इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का आना भावनाओं का ही संसार है। स्वामी जी ने कहा कि मन्दिर में प्रतिमा होती है, पूजा होती है और पूजारी होते हैं परन्तु वास्तव में इसके पीछे का भाव देखना है तो हमें श्री रामकृष्ण परमहंस जी के व्यक्तित्व में देखना होगा जहां पर माँ और प्रतिमा में कोई अन्तर नहीं रह जाता, हम भी वैसा बननने की कोशिश करें । जिस दिन यह भाव जग जाता है कि मन्दिर में रखी यह प्रतिमा नहीं बल्कि माँ है उस दिन; उस क्षण जीवन बदल जाता है; जीवन में विलक्षण परिवर्तन होता है। स्वामी जी ने कहा कि हम सब इस जीवन यात्रा के साधक है। प्रभु की कृपा से जीवन बदलने लगता है; जीवन में क्रान्ति होने लगती है। वैराग्य तो यही है जहां हमें अपने अस्तित्व का भी होश न रहे। स्वामी जी ने कहा कि श्रीराम कथा के माध्यम से जनसमुदाय के दिलों में भारतीय संस्कृति, संस्कार और दिव्य परम्पराओं का प्रवेश होता हैं। हमारे विश्वास को दृढ़ करने के लिये ही ये कथायें हैं। हम सब के विश्वास को जगाये रखने के लिये ये गंगा जी के तट हैं, ये दिव्य कथायें हैं और ये अद्भुत संस्कृति हैं।