आनन्दमयी पुरम दक्ष रोड़ कनखल स्थित श्री महर्षि ब्रह्महरि उदासीन आश्रम में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन सुदामा चरित्र की कथा का श्रवण कराते हुए कथाव्यास स्वामी रविदेव शास्त्री ने कहा कि सुदामा गरीब ब्राह्मण थे।
रिपोर्ट - Rameshwar Gaur
हरिद्वार, 9 जून। आनन्दमयी पुरम दक्ष रोड़ कनखल स्थित श्री महर्षि ब्रह्महरि उदासीन आश्रम में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन सुदामा चरित्र की कथा का श्रवण कराते हुए कथाव्यास स्वामी रविदेव शास्त्री ने कहा कि सुदामा गरीब ब्राह्मण थे। संदीपनी मुनि के आश्रम में विद्या अध्ययन के दौरान उनकी और श्रीकृष्ण की मित्रता हुई। शिक्षा पूरी करने के बाद दोनों अपने घर लौट गए। श्रीकृष्ण द्वारिका के राजा बन गए। लेकिन सुदामा की स्थिति बड़ी दयनीय थी। पत्नि और बच्चों के साथ झोंपड़ी में निवास करते थे। बड़ी कठिनाई में दिन गुजार रहे थे। लेकिन कभी किसी से कुछ नहीं मांगते थे। सदा ईश्वर की भक्ति करते और श्रीकृष्ण की मित्रता को याद करते। एक बार पत्नि के कहने पर सुदामा एक पोटली में दस मुठ्ठी चावल लेकर कृष्ण से मिलने द्वारिका पहुंचे। द्वारपालों से सुदामा के आने का समाचार मिलने पर कृष्ण दौड़े आए और सुदामा को गले लगा लिया। उनका खूब आदर सत्कार किया। कृष्ण जानते थे कि सुदामा उनसे कुछ नहीं मांगेगे। कृष्ण ने सुदामा के बिना कुछ मांगे ही उन्हे सातों लोक की संपदा उनके नाम कर दी। सुदामा जब वापस अपने गांव लौटे तो अपनी झोंपड़ी की जगह महलों को देखकर आश्चर्य में पड़े गए। कथाव्यास ने कहा कि निष्काम भाव से भक्ति करने वाले अपने भक्त का भगवान स्वयं ध्यान रखते हैं और उसे सर्वस्व अर्पण कर देते हैं। आश्रम के परमाध्यक्ष श्रीमहंत दामोदर शरण महाराज एवं कथा संयोजक महंत अमृतमुनि महाराज ने ने कहा कि श्रीमद्भागवत कथा भवसागर की वैतरणी है। कथा मन से मृत्यु का भय दूर कर मोक्ष प्रदान करती है। जब राजा परीक्षित को तक्षक नाग के डसने से मृत्यु का श्राप मिला तो शुकदेव मुनि ने उन्हें सात दिन तक श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण कराया। कथा से प्रभाव से राजा परीक्षित का भय दूर हो गया और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई। इसी प्रकार बुरे कर्माे के चलते मृत्यु के बाद प्रेत योनि में भटक रहे धुंधकारी की मुक्ति के लिए उनके भाई ने श्रीमद्भावगत कथा का आयोजन किया। जिससे धुंधकारी प्रेत योनि से मुक्त हो गया और उसे बैकुंठ लोक में स्थान प्राप्त हुआ। इस अवसर पर महंत राघवेंद्र दास, महंत अमृतमुनि, महंत प्रेमदास, महंत जयेंद्र मुनि, स्वामी हरिहरांनद, महंत गोविंददास, महंत गंगादास, स्वामी दिनेश दास, महंत जसविंदर सिंह, महंत निर्भय सिंह, महंत कैलाशानंद, महंत सुतिक्ष्ण मुनि, पदम प्रकाश सुवेदी सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु भक्त मौजूद रहे।