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अब तक जैन मुनि लगभग 91 हजार किलो मीटर की पदयात्रा कर चुके हैं


अब तक जैन मुनि लगभग 91 हजार किलो मीटर की पदयात्रा कर चुके हैं जिसमें कन्याकुमारी से जम्मू, मुम्बई, गुजरात, कोलकाता, गुवाहाटी, मेघालय, उत्तराखण्ड, भूटान व सम्पूर्ण नेपाल शामिल हैं।

रिपोर्ट  - आल न्यूज़ भारत

हरिद्वार, 14 जून। राष्ट्र संत, नेपाल केसरी डॉ. मणिभद्र जी महाराज ‘सर्वोदय शांति यात्रा’ पर हैं, यह पद यात्रा मेरठ से प्रारंभ हुई थी तथा मार्च 2024 में इसका पड़ाव पतंजलि योगपीठ बना था। पतंजलि से यह यात्रा बद्रीनाथ तथा केदारनाथ धाम तक पहुँची तत्पश्चात इस कठिन यात्रा का पड़ाव पुनः पतंजलि योगपीठ बना है। कल यह यात्रा वापस हरिद्वार पहुँची जिसका पड़ाव पुनः पतंजलि योगपीठ बना। दो धामों की यात्रा पूर्ण कर वापस लौटे जैन मुनि का भव्य स्वागत करते हुए पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण महाराज ने कहा कि डॉ. मणिभद्र जैन धर्म के महान संत हैं। उन्होंने बताया कि जैन श्रमण, साधु, साध्वी एक स्थान पर न रहकर विहार भ्रमण करते रहते हैं, यह यात्रा भी उसी का विग्रह रूप है। हिमालय जैसा व्यक्तित्व हिमालय की दुर्गम यात्रा सीमित साधनों के साथ पूर्ण कर लौटा है। आचार्य जी ने जैन मुनि को भिक्षा भी प्रदान की। इस अवसर पर जैन मुनि ने कहा कि पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण जी महाराज से उनका भ्रातवत आत्मीय सम्बंध है। पतंजलि की विविध गतिविधियों, समाजसेवा व सृजन के कार्यों का अवलोकन कर जैन मुनि ने कहा कि पतंजलि अपनी उत्कृष्ट सेवाओं व कार्यों से सेवा के नए आयाम स्थापित कर रहा है। योग, आयुर्वेद चिकित्सा, शिक्षा, कृषि, अनुसंधान, गौ-संरक्षण, उद्योग, सूचना एवं तकनीकी आदि विविध क्षेत्रों में पतंजलि उत्कृष्ट सेवाएँ प्रदान कर राष्ट्र सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। अपनी यात्रा का अनुभव साझा करते हुए डॉ. मणिभद्र ने बताया कि प्राकृतिक छटाओं और सुंदरता से लबरेज उत्तराखण्ड भारत का सबसे सुंदर प्रदेश है। यहां ऊंचे-ऊंचे हरे-भरे पहाड़ तो वहीं कई धार्मिक स्थल भी हैं। यहां आकर मन प्रफुल्लित हो उठा। उत्तराखण्ड की पर्वत श्रृंखलाओं पर स्थापित ये दोनों धाम प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण हैं। यहाँ का पर्वतीय जीवन साधारण तथा यहाँ के लोगों में सरलता व सादगी है। उन्होंने बताया कि यह पदयात्रा देहरादून, मंसूरी, ऋषिकेश, शिवपुरी, देवप्रयाग, श्रीनगर, रूद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, नंद प्रयाग, जोशीमठ व विष्णुप्रयाग होते हुए 12 मई को बद्रीनाथ धाम पहुँची। बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलते समय वहाँ उपस्थित होना प्रफुल्लित करने वाला क्षण था।

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