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अमर बलिदानी राजगुरु पर एक संगोष्ठी आयोजित करके उनको श्रद्धांजलि दी।


प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग, गुरुकुल कांगड़ी समविश्वविद्यालय में आज अमर बलिदानी शिवराम हरि राजगुरु को उनकी एक सौ सोहलवी जयन्ति पर श्रद्धासुमन अर्पित किए गए।

रिपोर्ट  - आल न्यूज़ भारत

प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग, गुरुकुल कांगड़ी समविश्वविद्यालय में आज अमर बलिदानी शिवराम हरि राजगुरु को उनकी एक सौ सोहलवी जयन्ति पर श्रद्धासुमन अर्पित किए गए। इस अवसर पर इतिहास विभाग के बी0ए0, एम0 ए0 और पी-एच0 डी0 के छात्रों ने अपने शिक्षको के साथ मिलकर अमर बलिदानी राजगुरु पर एक संगोष्ठी आयोजित करके उनको श्रद्धांजलि दी। संगोष्ठी का प्रारम्भ करते हुए इतिहास विभाग के शिक्षक डॉ0 हिमांशु पण्डित ने कहा कि आज हम भले ही अंग्रेज़ों का शासन भारत में नही है और हमें किसी विदेशी गुलामी से भी लड़ने की आवश्यकता नही है परन्तु आज भी अनेक नकारात्मक शक्तियां पूरी ताकत से देश में सक्रिय हैं जिनसे लड़ने के लिए फिर से हमें राजगुरु जैसे लोग चाहिए। लेकिन अब हमें खुद ही अपने अन्दर के राजगुरु को इन ताकतों के खिलाफ खड़ा करना होगा। इन नायकों को बस याद करके छोड़ देने से काम नही चलेगा बल्कि खुद ही राजगुरु बनना पड़ेगा। एम0ए0 के छात्र राहुल ज्याला ने कहा कि आज पहली बार कहीं राजगुरु की जयंती मनाने का अवसर मिला है और यह गुरुकुल के इतिहास विभाग में ही संभव था। बी0ए0 के छात्र मयंक सैनी ने बताया कि किस प्रकार राजगुरु ने भगत सिंह और सुखदेव के साथ मिलकर लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला सांडर्स से लिया था। राजगुरु के जीवन पर प्रकाश डालते हुए मयंक ने बताया कि कैसे महाराष्ट्र के पुणे के एक छोटे से गांव खेड़ से निकलकर उन्होने भरी युवावस्था में देश और समाज के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया। संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए कार्यक्रम के मुख्य अतिथि इतिहास विभाग के शिक्षक डॉ0 दिलीप कुशवाहा ने कहा कि आज के युवा को राजगुरु सरीखे नायकों से प्रेरणा लेनी चाहिए। जिस आयु में आज के युवा सोशल मीडिया के जाल में फंसे हुए हैं उस आयु में उन्होंने देश के लिए स्वयं को बलिदान कर दिया।

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