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नारी का सम्मान ही सच्ची साक्षरता - स्वामी चिदानन्द सरस्वती


विश्व साक्षरता दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने स्वयं पढ़ें और दूसरों को भी पढ़ाएं का संदेश दिया। उन्होंने शिक्षा के माध्यम से संस्कार, संस्कार के माध्यम से परिवार और परिवार के माध्यम से संस्कृति के संवर्द्धन हेतु प्रेरित किया।

रिपोर्ट  - आल न्यूज़ भारत

ऋषिकेश, 8 सितंबर। आज विश्व साक्षरता दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने स्वयं पढ़ें और दूसरों को भी पढ़ाएं का संदेश दिया। उन्होंने शिक्षा के माध्यम से संस्कार, संस्कार के माध्यम से परिवार और परिवार के माध्यम से संस्कृति के संवर्द्धन हेतु प्रेरित किया। स्वामी जी ने शहरों में रहते हुये गांवों को स्वर्ग बनाने हेतु प्रेरित किया। स्वामी जी को मुम्बई में रहने वाले पदमाराम कुलरिया जी के भरेपूरे परिवार ने आमंत्रित किया। स्वामी जी ने इस अवसर पर पूरे कुलरिया परिवार से एक साथ भेंट की और कहा कि मुम्बई जैसे शहर में रहने के बाद भी गांवों में शिक्षा, चिकित्सा और जरूरतमंदों की मदद कर आप एक मिशाल कायम कर रहे हैं। इससे शिक्षा, साक्षरता, संस्कार, संस्कृति भी बढ़ेगी और संतति भी जागेगी क्योंकि जागी हुई संतति ही भारत का भविष्य है और इसकी नींव है नारी शक्ति। नारी शक्ति के सम्मान से संस्कृति बढ़ेगी और संतति में संस्कार आयेंगे। वास्तव में नारी का सम्मान ही सच्ची साक्षरता है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि साक्षरता केवल पढ़ने-लिखने की क्षमता ही नहीं है, बल्कि यह सम्मान, अवसर और विकास से जुड़ी हुई है। एक साक्षर व्यक्ति न केवल अपने जीवन को बेहतर बना सकता है, बल्कि समाज और देश के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। साक्षरता एक सशक्त समाज की नींव है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार मिले और वह साक्षर बने क्योंकि यह न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि एक समृद्ध और उन्नत समाज के निर्माण के लिए भी आवश्यक है। स्वामी जी ने कहा कि साक्षरता केवल व्यक्तिगत विकास तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज और देश के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। साक्षरता से व्यक्ति में आत्म-सम्मान, आत्म-निर्भरता और सामाजिक जागरूकता बढ़ती है। स्वामी जी ने कहा कि वर्तमान समय में हमारे युवाओं को मुफ़्त शिक्षा के साथ वास्तविक मुक्ति की शिक्षा की आवश्यकता है। वर्तमान समय में आतंक, विवाद, युद्ध, नफरत, तनाव, भेदभाव, बंधन, बड़ा-छोटा, तेरा मेरा आदि से मुक्ति की शिक्षा की जरूरत है। भारत में साक्षरता दर में पिछले कुछ दशकों में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है। हालांकि, अभी भी कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में इस ओर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। सरकार द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रम, जैसे सर्वशिक्षा अभियान और साक्षर भारत मिशन, ने साक्षरता दर को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 2021 की जनगणना के अनुसार, भारत की साक्षरता दर लगभग 77.7 प्रतिशत है। हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रों और महिलाओं के बीच साक्षरता दर में अभी भी अंतर है। प्राचीन काल से ही भारत में शिक्षा का महत्व रहा है, चाहे वह नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्व प्रसिद्ध शिक्षा संस्थान हों या गुरुकुल प्रणाली। नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्व प्रसिद्ध शिक्षा संस्थान इसका प्रमाण हैं। ये संस्थान न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में शिक्षा के केंद्र थे, जहाँ विभिन्न देशों से छात्र आकर शिक्षा प्राप्त करते थे। गुरुकुल प्रणाली भी प्राचीन भारतीय शिक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी, जहाँ छात्रों को न केवल शास्त्रों की शिक्षा दी जाती थी, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं की भी जानकारी दी जाती थी। आज भी गुरूकुल शिक्षा प्रणाली को पुनः जीवंत व जागृत करने की नितांत आवश्यकता है। परमार्थ निकेतन इस ओर अद्भुत कार्य भी कर रहा है।

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