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सफल जीवन के लिए चिन्ता और चिन्तन दोनो जरूरी डाॅ0 शिवकुमार चैहान, मनोवैज्ञानिक


व्यक्ति का जीवन सदैव दो पक्षों से ही संचालित होता है। एक ओर जहां व्यक्ति को व्यवहारिकता के सकारात्मकता पक्ष का बोध कराता है, वही दूसरा पक्ष नकारात्मक पहलु द्वारा व्यक्ति को सचेत एवं क्रियाशील बनाता है। अर्थात ज्ञान एवं चेतना के संयोग से व्यक्ति के जीवन की प्रगति संचालित होती है।

रिपोर्ट  - ALL NEWS BHARAT

व्यक्ति का जीवन सदैव दो पक्षों से ही संचालित होता है। एक ओर जहां व्यक्ति को व्यवहारिकता के सकारात्मकता पक्ष का बोध कराता है, वही दूसरा पक्ष नकारात्मक पहलु द्वारा व्यक्ति को सचेत एवं क्रियाशील बनाता है। अर्थात ज्ञान एवं चेतना के संयोग से व्यक्ति के जीवन की प्रगति संचालित होती है। उदाहरण के तौर पर व्यक्ति अपने ज्ञान द्वारा अपनी प्रगति से जुडें कार्यो की बडी बडी योजनाएं बनाता है। लेकिन उन योजनाओं में सफल होने के लिए जब तक चिन्ता उत्पन्न नही होगी, प्रगति संभव नही है। मनोवैज्ञानिक अध्ययन बताते है कि मन जब कुछ चाहे और वह चाहत पूरी ने हो अथवा जो हमारे पास उपलब्ध है, उसके भी खो जाने का भय हो या काम मे देरी हो तो हमारा मन परेशान होने लगता है। मन के इस भाव को चिन्ता कहते है। मन मे उत्पन्न इस भाव से बुद्वि अशान्त तथा चित्त सामान्य से भी नीचे की स्थिति मे आ जाता है। इस अवस्था मे ऊर्जा का संचालन अधोगति मे बहने लगता है। परन्तु जब मन मे किसी बात को लेकर उठने वाले विचारों के मनन से एकाग्रता, शान्ति, उत्साह और प्रेम का भाव पैदा होने लगे तो उसे चिन्तंन कहते है। इसके प्रभाव से मन व बुद्वि सूक्ष्म होने लगती है और चित्त अपनी सामान्य अवस्था से ऊपर उध्र्वगति को प्राप्त करता है। गुरू के द्वारा दिये गये ज्ञान तथा वचन व शास्त्रों के गूढ रहस्यों को खोलने के लिए जब हम मनन करते है जब चिंतन होता है। मनोवैज्ञानिक डाॅ0 शिवकुमार का कहना है कि चिन्ता तथा तनाव दो प्रकार का होता है। पाॅजिटिव एवं नेगिटिव। पाॅजिटिव चिन्ता मे हम हर प्रकार की बात मे अच्छाई खोजते है जिससे विचारों मे खुलापन आने से जीवन मे सुकुन तथा आराम मिलता है। इससे व्यवहार मे क्रिएटिविटी बढती है और आगे बढने के नए-नए रास्ते खुलते है। जबकि निगेटिव तनाव मे हम हर बात मे बुराई खोजते रहते है, चाहे वह हमारे भले के लिए ही क्यों न हो। इसे नकारात्मक तनाव या चिंता कहते है। जिनका मुख्य कारण हमारी इच्छाएं होती है। जीवन मे इच्छाएं जितना अधिक होगी, चिन्ताएं उतना ही अधिक होगी। आध्यात्मिकता में जब प्रभु का सिमरन किया जाता है तब व्यक्ति को अपने स्वरूप का बोध होता है। इसलिए सुझाव रूप में कहना है कि जीवन मे चिन्ताओं को कम करने के लिए अपनी बढती इच्छाओं को कम करना होगा और चिन्तन को बढाना होगा। चिन्तन जितना अधिक बढेगा चिन्ता उतना ही कम होती जायेगी। अतः जीवन मे सफलता प्राप्त करने के लिए चिन्तन को अपनाना होगा, क्योकि चिन्तन जीना सीखाता है जबकि चिन्ता पल-पल मारती है। लेकिन व्यवहारिक पक्ष मे जीवन मे दोनो का होना जरूरी है।

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