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हनुमान चालीसा के साथ हिन्दुस्तान चालीसा - स्वामी चिदानन्द सरस्वती


ऋषिकेश, 4 अक्टूबर। परमार्थ निकेतन में चिन्मय मिशन, त्रिनिदाद और टोबैगो के आध्यात्मिक प्रमुख स्वामी प्रकाशानंदजी जी पधारे। उन्होंने अपने अनुयायियों के साथ परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी से दिव्य भेंटवार्ता की। दोनों पूज्य आध्यात्मिक संतों ने वेद, वेदान्त, भारतीय संस्कृति और संस्कृत के वैश्विक संवर्द्धन पर चिंतन-मंथन किया।

रिपोर्ट  - Rameshwar Gaur

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अपनी त्रिनिदाद यात्रा की स्मृतियों का स्मरण करते हुये कहा कि उस धरती ने मुझे गद्गद कर दिया। वहां आयोजित विशाल कार्यक्रम में हिन्दू हृदय सम्राट, अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष, विश्व हिंदू परिषद् श्री अशोक सिंघल जी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पाँचवें सरसंघचालक, श्री के.एस. सुदर्शन जी एवं अन्य गणमान्य विभूतियों ने सहभाग किया था। उस कार्यक्रम में त्रिनिदाद के माननीय प्रधानमंत्री जी हनुमान चालीसा गाते-गाते मंच पर आये थे और उन्हें गाते देख वहां उपस्थित हजारों लोगों ने हनुमान चालीसा का पाठ शुरू कर दिया। उस दिन मेरे मन में आया कि क्या कभी भारत के माननीय प्रधानमंत्री इस तरह हनुमान चालीसा पढ़ पायेंगे। आज तो हनुमान चालीसा क्या पूरा विश्व हिन्दुस्तान चालीसा पढ़ रहा है। स्वामी जी ने बताया कि त्रिनिदाद में प्रत्येक घर के सदस्य मंडली में शामिल है ताकि सनतान संस्कृति का संरक्षण व संवर्द्धन हो। जब गिरमिटिया मजदूरों ने भारत से त्रिनिदाद और अन्य देशों में 19वीं सदी के मध्य में गमन किया था, उस समय उन मजदूरों को कठिन परिस्थितियों में काम करना पड़ता था और उन्हें कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता था। महात्मा गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में गिरमिटिया मजदूरों की स्थिति को सुधारने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी उनके प्रयासों के कारण, 1917 में इस प्रथा को समाप्त कर दिया गया था परन्तु ऐसी परिस्थितियों में भी उन्होंने अपनी संस्कृति को कायम रखा। जब भारतीय मजदूर त्रिनिदाद, फिजी, मॉरीशस, और अन्य देशों में काम करने के लिए गए, तो वे अपने साथ अपनी संस्कृति और धार्मिक ग्रंथ भी ले गए। रामायण का गुटका उनके लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक सहारा था, जो उन्हें कठिन परिस्थितियों में मानसिक और भावनात्मक समर्थन प्रदान करता था। उन्होंने अपने धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को बनाए रखा और उन्हें आगे की पीढ़ियों तक पहुँचाया। आज भी इन देशों में भारतीय मूल के लोग रामायण का पाठ और अन्य धार्मिक अनुष्ठान करते हैं, जो उनकी सांस्कृतिक पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। स्वामी जी ने कहा कि त्रिनिदाद के लोगों की आत्मीयता और उनका भारतीय संस्कृति के प्रति प्रेम अद्भुत है।

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