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गोवर्द्धन पूजा, अहंकार पर आस्था की विजय की प्रतीक स्वामी चिदानन्द सरस्वती


ऋषिकेश में आज गोवर्धन पूजा का उत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस पावन अवसर पर, परमार्थ निकेतन के दिव्य वातावरण में स्वामी चिदानन्द सरस्वती और साध्वी भगवती सरस्वती के पावन सान्निध्य में विशेष पूजा-अर्चना और धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया गया, जिसमें देश-विदेश से आए सैकड़ों श्रद्धालुओं ने सहभाग किया।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 2 नवम्बर। परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश में आज गोवर्धन पूजा का उत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस पावन अवसर पर, परमार्थ निकेतन के दिव्य वातावरण में स्वामी चिदानन्द सरस्वती और साध्वी भगवती सरस्वती के पावन सान्निध्य में विशेष पूजा-अर्चना और धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया गया, जिसमें देश-विदेश से आए सैकड़ों श्रद्धालुओं ने सहभाग किया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि गोवर्धन पूजा का उत्सव न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि यह पर्यावरण, सामाजिक एकता, संस्कृति और परंपराओं का भी प्रतीक है। भगवान श्री कृष्ण ने हमें अपने समाज, पर्यावरण और संस्कृति का सम्मान करने और उन्हें सहेजने का भी संदेश दिया। भगवान श्री कृष्ण का शाश्वत संदेश है कि अहंकार और घमंड के साथ कभी भी विजय प्राप्त नहीं हो सकती। सच्ची विजय तो श्रद्धा, विनम्रता और दिव्य शक्ति के प्रति समर्पण से ही प्राप्त होती है। भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर यह संदेश दिया कि हमें प्रकृति, पर्यावरण, संस्कृति और सनातन धर्म की रक्षा के लिये सदैव तत्पर रहना चाहिये। यह पर्व जीवन में सच्चाई, सरलता, सहजता और सौम्यता का संदेश देता है। हमारे जीवन में अहंकार और घमंड दो ऐसे दुर्गुण हैं, जो जीवन को सही मार्ग से भटका देते हैं जिससे समाज के प्रति हमारी जो जिम्मेदारियां हैं उससे हम विमुख हो जाते हैं, गलत निर्णय लेते हैं और हम अपने ही विनाश रास्ता तैयार कर लेते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर संदेश दिया अहंकार और घमंड किसी का भी हो, वह अंततः टूटता ही है। उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर इन्द्र के घमंड को चकनाचूर कर दिया। साथ ही हमें प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और सम्मान का मंत्र दिया और कहा कि प्रकृति के संरक्षण में ही संस्कृति और संतति का संरक्षण है।

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