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सम्बंधों की मजबूती का अनूठा अहसास है त्योहार, आधुनिकता के रंग से बदल रहा है त्योहारो का स्वरूप


त्योहार व्यक्ति के जीवन मे उत्साह एवं उमंग का एक अनूठा प्रतीक है। त्योहार एक ओर जहंा भारत की समृद्व सांस्कृतिक विरासत की अभिव्यक्ति का माध्यम है, वही इन त्योहारों के माध्यम से समाज में समरसता स्थापित करते हुए व्यक्ति के जीवन मे ऊर्जा का संचार होता है। व्यक्ति के जीवन मे संम्बंधों का मजबूत आधार तथा अनूठा अहसास केवल त्योहार ही है।

रिपोर्ट  - ALL NEWS BHARAT

हरिद्वार-02 अगस्त, 2020ः त्योहार व्यक्ति के जीवन मे उत्साह एवं उमंग का एक अनूठा प्रतीक है। त्योहार एक ओर जहंा भारत की समृद्व सांस्कृतिक विरासत की अभिव्यक्ति का माध्यम है, वही इन त्योहारों के माध्यम से समाज में समरसता स्थापित करते हुए व्यक्ति के जीवन मे ऊर्जा का संचार होता है। व्यक्ति के जीवन मे संम्बंधों का मजबूत आधार तथा अनूठा अहसास केवल त्योहार ही है। व्यक्ति अपने जीवन मे अनुकूल तथा प्रतिकूल दोनों स्थितियों में एक जैसा बना रहना चाहता है। इसके लिए वह अपनी क्षमता तथा बुद्वि-विवेक का भरपूर उपयोग करता है। इस श्रम से प्राप्त परिणाम के द्वारा वह अपने कर्मपथ का निर्धारण करता है और आगे बढता है। जीवन के इस प्रयोग मे वह कई बार सफल तो कई बार विफल भी होता है। सफलता तथा विफलता के इस क्रम मे व्यक्ति की मानसिक ऊर्जा का कम अथवा ज्यादा व्यय निर्भर करता है और व्यक्ति की वृत्तियों मे परिवर्तन संभव होता है। इन वृत्तियों के द्वारा ही व्यक्ति की आदतों का निर्माण होता है जो बाद में व्यवहार मे रूपान्तिरित होता है। व्यक्ति का व्यवहार उसके सामाजिक संबंधों पर गहरा प्रभाव डालता है। जिनकी मजबूती का आधार व्यक्ति का अहसास होता है। त्योहार व्यक्ति के इसी अहसास को दृढता प्रदान करता है। हिन्दू समाज मे भाई-बहन के परस्पर प्रेम से अभिसिंचित अनेक त्योहार है। जिनमें रक्षा बंधन का त्योहार भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक एवं दोनो का एक दूसरे के प्रति रिश्ता एवं संकल्प की याद का त्योहार है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देव व दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव देवों पर हावी होते नजर आने लगे। जिसके कारण भगवान इंद्र घबराकर गुरु बृहस्पति के पास गए और अपनी व्यथा सुनाई। इंद्र की पत्नी इंद्राणी यह सब व्यथा सुन रही थी। उन्होने एक रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र कर अपने पति की कलाई पर बांध दिया। वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। अन्त में इंद्र को इस युद्ध में विजय प्राप्त हुई। तभी से यह विश्वास है कि इंद्र को विजय इस रेशमी धागा पहनने से ही मिली थी। तभी से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है। शास्त्रों से जुडें विद्वानो का मत है कि यह धागा ऐश्वर्य, धन, शक्ति, प्रसन्नता और विजय देने में सक्षम है। इसलिए इस दिन विधि-विधान से पूर्णिमा के दिन प्रातः काल हनुमान जी व पित्तरों का स्मरण कर व चरण स्पर्श करते हुए जल, रोली, मौली, धूप, फूल, चावल, प्रसाद, नारियल, राखी, दक्षिणा आदि चढ़ाकर दीपक जलाना चाहिए। भोजन से पूर्व घर के सब पुरुष व स्त्रियां राखी बांधे। बहनें अपने भाई को राखी बांधकर तिलक करें व गोला नारियल दें। भाई बहन को प्रसन्न करने के लिए रुपये अथवा यथाशक्ति उपहार दें। मान्यता है कि राखी में रक्षा सूत्र अवश्य बांधना चाहिए। आज व्यक्ति के अति आधुनिकता से ज्यादा प्रभावित होने के कारण त्योहारों का स्वरूप बदलता जा रहा है। इन परम्परागत त्योहारों में जहां भाई-बन के प्रेम, त्याग एवं समर्पण की शिक्षा छिपी है, वही आधुनिकता ने इन त्योहारो के स्वरूप में धन, समृद्वि, मान, प्रतिष्ठा जैसे स्वार्थी महत्व वाले तत्वों के आने से भाई-बहन के प्रेम, संकल्प, त्याग एवं समर्पण मे कमी पैदा करने का काम किया है। जो भविष्य के लिए अच्छा संकेत नही है। इस प्रकार यह पौराणिक कथा एवं व्यवहार से जुडेे मनोवैज्ञानिक पहलू इस बात की ओर इशारा करते है कि संम्बंधों का जीवन मे अतिविशेष महत्व है। यही संबंध व्यक्ति के व्यवहार मे परिवर्तन का आधार है। अतः संम्बधों की मधुरता का अहसास त्योहार के द्वारा संभव है।

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