पà¥à¤²à¤¾à¤œà¥à¤®à¤¾ थेरेपी गंà¤à¥€à¤° कोरोना रोगियों में काम नहीं कर पाती। हालत बिगड़ने पर आखिरी वकà¥à¤¤ में यह थेरेपी दिठजाने से असर नहीं पड़ पाता। अगर रोगी को लेवल वन और लेवल टू में ही पà¥à¤²à¤¾à¤œà¥à¤®à¤¾ चढ़ा दिया जाठतो उसकी जान बच सकती है।
रिपोर्ट - allnewsbharat.com
पà¥à¤²à¤¾à¤œà¥à¤®à¤¾ थेरेपी गंà¤à¥€à¤° कोरोना रोगियों में काम नहीं कर पाती। हालत बिगड़ने पर आखिरी वकà¥à¤¤ में यह थेरेपी दिठजाने से असर नहीं पड़ पाता। अगर रोगी को लेवल वन और लेवल टू में ही पà¥à¤²à¤¾à¤œà¥à¤®à¤¾ चढ़ा दिया जाठतो उसकी जान बच सकती है।कोरोना विजेताओं से अपील की जा रही है कि वे पà¥à¤²à¤¾à¤œà¥à¤®à¤¾ दान करें जिससे वकà¥à¤¤ रहते कोरोना संकà¥à¤°à¤®à¤¿à¤¤à¥‹à¤‚ को इसे चढ़ा दिया जाà¤à¥¤ हैलट के नà¥à¤¯à¥‚रो साइंसेस कोविड असà¥à¤ªà¤¤à¤¾à¤² में पà¥à¤²à¤¾à¤œà¥à¤®à¤¾ थेरेपी दो रोगियों पर आजमाई गई।à¤à¤• रोगी तो वेंटिलेटर पर रहा और उसके फेफड़ों को निमोनिया ने जकड़ लिया था।उसे बेहद नाजà¥à¤• हालत में पà¥à¤²à¤¾à¤œà¥à¤®à¤¾ दिया गया था। अगले दिन उसकी मौत हो गई, लेकिन दूसरा रोगी था जिसकी हालत गंà¤à¥€à¤° हो रही थी। वह लेवल टू से लेवल थà¥à¤°à¥€ की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में आया ही था। तà¤à¥€ उसे पà¥à¤²à¤¾à¤œà¥à¤®à¤¾ दिया गया और उसकी जान बच गई।वह ठीक होकर अपने घर चला गया। जीà¤à¤¸à¤µà¥€à¤à¤® मेडिकल कालेज के à¤à¤¨à¥‡à¤¸à¥à¤¥à¥‡à¤¸à¤¿à¤¯à¤¾ विà¤à¤¾à¤—ाधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· पà¥à¤°à¥‹à¤«à¥‡à¤¸à¤° (डॉ.) अपूरà¥à¤µ अगà¥à¤°à¤µà¤¾à¤² का कहना है कि माइलà¥à¤¡ रोगी यानी जिनमें कम लकà¥à¤·à¤£ हैं और मॉडरेट रोगी जिनमें सांस की तकलीफ, हारà¥à¤Ÿ रेट तेज, ऑकà¥à¤¸à¥€à¤œà¤¨ का सà¥à¤¤à¤° 90 से 94 केे बीच होने की समसà¥à¤¯à¤¾ है, उन पर पà¥à¤²à¤¾à¤œà¥à¤®à¤¾ थेरेपी कारगर है। à¤à¤¸à¥‡ रोगियों को गंà¤à¥€à¤° सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में जाने से बचाया जा सकता है।