Latest News

कोविड संक्रमण तथा इसके प्रसार से जुडें लक्षण को लेकर चुनौती बन सकते है भिखारी एवं मानसिक विक्षिप्त लोग :डाॅ0 शिवकुमार चैहान


भयानक महामारी बन चुके कोरोना वायरस तथा इसके संक्रमण के फैलने से बचने के उपायों को लेकर किये जा रहे अनुसंधान तथा मानव ट्रायल पर कार्य तेजी से चल रहा है।

रिपोर्ट  - ALL NEWS BHARAT

आज पूरी दुनिया मे भयानक महामारी बन चुके कोरोना वायरस तथा इसके संक्रमण के फैलने से बचने के उपायों को लेकर किये जा रहे अनुसंधान तथा मानव ट्रायल पर कार्य तेजी से चल रहा है। इन प्रयासों मे सफलता के लिये दुनियाभर के लोग व्याकुल एवं बेसबरी से इन्तजार कर रहे है। दवा क्षेत्र से जुडे वैज्ञानिक दिन-रात तरह तरह के प्रयासों के माध्यम से शोधकार्यो में जुटे है, ताकि इस कोरोना महामारी से बचाव हेतु कारगर टीका अथवा दवाई तैयार की जा सके। हरिद्वार के मनोवैज्ञानिक डाॅ0 शिवकुमार चैहान का कहना है कि वैश्विक परिवेश को छोडकर भारतीय परिवेश की बात की जाये तो यहां सामाजिक ढांचे का प्रारूप ऐसा है जिसमे अनेक धर्म, जाति, पंथ, समुदाय के लोग साथ रहते है। इसी परिवेश में ऐसे लोग भी बहुतायत है जो बिना किसी सहारे के अपनी दैनिक जरूरतों की पूर्ति के लिए भीख मांगकर गुजर बसर करते है अथवा दूसरों की दया पर निर्भर रहते है। ऐसी ही जिंदगी पारिवारिक अथवा सामाजिक परिवर्तन के कारण अपने स्वभाव मे परिवर्तन न कर पाने वाले लोग जो मानसिक रूप से विक्षिप्त अथवा पर्सनाल्टी डिसआर्डर का शिकार हो गये है। ऐसे लोगों के स्वास्थ्य की परवाह करने के लिए न तो सरकार के पास कोई कार्य योजना है और न ही सामाजिक संस्थाये और संगठन इस दिशा मे सक्रिय है। लेकिन कुछ लोग एक बडी जिम्मेदारी के साथ इस दिशा मे कार्य की आवश्यकता समझते है। एक ओर जहां कोविड के संक्रमण से बचने के जनमानस अपनी इम्यूनिटी मजबूत करने, स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहकर, संक्रमण से बचने के लिए सामाजिक दूरी एवं मास्क का उपयोग करके, सैनेटाईजर आदि उपायों द्वारा अपनी सुरक्षा के इन्तजामात कर रहा है। वही भीख मांगकर अपना गुजर बसर करने वाले मजबूर एवं असहाय लोगों की चिन्ता करने को कोई नही है। जिनके दिन की शुरूआत ही शायद स्वास्थ्य की चिन्ता को ताक पर रखकर होती है। वही मानसिक विक्षिप्त व्यक्ति अथवा महिला को तो स्वयं के अस्तित्व का ही बोध नही है। क्या सही अथवा क्या गलत इसका भी उसे पता नही है। ऐसे लोगों को कोरोना से बचाने के लिए शायद किसी ने सोचा भी नही है। ऐसे तमाम लोगों के प्रति मानवीय संवेदना तथा मदद के प्रयास भी किये जाने जरूरी है। शायद इसीलिए कहा गया है ‘जाकों राखे साईयां मार सके न कोई’। कोरोना संक्रमण से दुनिया मे जहां मौतों का आंकडा 75 लाख के पार हो रहा है वही कोई भी सर्वे इस बात की पुष्टि नही करता है कि किसी भिखारी अथवा मानसिक विक्षिप्त व्यक्ति या महिला की मौत कोविड के कारण हुई हो। परन्तु यह समाज के लिए एक चुनौती है कि यदि ऐसा कोई व्यक्ति कोविड के कारण संक्रमित पाया जाता है। तब उसके बिना किसी रोक टोक के एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमने से संक्रमण फैल सकता है। और इसकी संभावना अधिक इसलिए भी है क्योकि ऐसे लोगों की इम्यूनिटी एवं प्रतिरोधक क्षमता अपेक्षाकृत कम होने की संभावना है। जिसके कारण इनमे संक्रमण का भय ज्यादा है। और यदि लक्षण अनुभव भी हो तो उन्हे बताने एवं जाॅच की व्यवस्था नही है। यदि ऐसे लोग संक्रमण का शिकार हो जाते है तो इसके प्रसार को फैलने से रोकना सरकार के लिए संकट पैदा कर सकता है। इसलिए सरकार को भी इस दिशा में सोचते हुए कारगर कार्ययोजना तैयार करने की जरूरत है। वही सामाजिक संस्थाओं एवं संगठनों को भी इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। तभी एक स्वास्थ एवं जागरूक सामाज की संकल्पना साकार हो सकती है।

Related Post