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अनीति एवं अत्याचार की पराकाष्ठा के शमन का पर्व है कृष्ण जन्माष्टमी :डाॅ0 शिवकुमार चैहान


गीता में भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिये गये धर्म शास्त्र के इसी उपदेश में व्यक्ति को जीवन का सार समझाया गया है। व्यक्ति जीवन मे कितना भी साधन सम्पन्न बन जाये, धर्म और अधर्म के बीच चलता उसका जीवन पग पग पर इसी भावार्थ के अनुसार कर्म करने की प्रेरणा देता है।

रिपोर्ट  - ALL NEWS BHARAT

यदा यदा ही धर्मस्य, ग्लानिर्भवती भारत। अभ्युथानम अधर्मस्य, तदात्मानं सृजाम्यहम्। परित्राणाय साधुनाम विनाशाय चः दुष्कृताम, धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामी युगे युगे।। जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं प्रकट होता हूँ। भावार्थ - हे पार्थ! साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ। गीता में भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिये गये धर्म शास्त्र के इसी उपदेश में व्यक्ति को जीवन का सार समझाया गया है। व्यक्ति जीवन मे कितना भी साधन सम्पन्न बन जाये, धर्म और अधर्म के बीच चलता उसका जीवन पग पग पर इसी भावार्थ के अनुसार कर्म करने की प्रेरणा देता है। अनीति एवं अन्याय के मार्ग पर चलने से व्यक्ति की हानि ही हानि है। इसलिए सदैव धर्म और अधर्म की विवेक पूर्ण विचार करके ही किसी भी कर्म को करने के लिए आगे बढना चाहिए। जीवन मे इसी संकल्प को याद दिलाने का पर्व है श्री कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव! श्री हरि विष्णु से लिया गया भगवान श्रीकृष्ण का अवतार अनीति, अधर्म, अत्याचार एवं अभिमान का शमन करने के लिए एवं साधु सन्तों एवं भद्र पुरूषों को इससे मुक्ति प्रदान करने के लिए ही हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के साथ जुडी पौराणिक कथा का भी यही अभिप्राय है। भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं। यह दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिवस माना जाता है। इसी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। यह तिथि उस शुभ घड़ी की याद दिलाती है और सारे देश में बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। जन्माष्टमी के दिन कुछ लोग भगवान श्रीकृष्ण के जन्म संबंधी कथा का भी स्मरण करते एवं सुनते-सुनाते हैं। द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राजा हुए। उनके आततायी पुत्र कंस ने उन्हे गद्दी से उतार कर स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार (मुखिया) से हुआ। एक समय कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था तब रास्ते में आकाशवाणी हुई- हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है। इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा। यह सुनकर कंस वसुदेव को मारने के लिए उद्यत हुआ। तभी देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा- मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने लाकर रख दूंगी। बहनोई को मारना सबसे बडा पाप है। कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया। उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया। उसने वसुदेव-देवकी के एक-एक करके सात पुत्रों को जन्म लेते ही मार डाला। जब आठवां बच्चा होने वाला था, तब कंस ने कारागार में उन पर कड़ा पहरा बैठा दिया। उसी समय नंद की पत्नी यशोदा को भी एक पुत्री पैदा हुई। उन्होंने वसुदेव-देवकी के दुखी जीवन को देख आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय रचा। जिस समय वसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से जन्मी कन्या जो और कुछ नहीं सिर्फ माया रूप थी। जिस कोठरी में देवकी-वसुदेव कैद थे, उसमें अचानक प्रकाश हुआ और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए। दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े। तब भगवान ने उनसे कहा- अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं। तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंदजी के घर वृंदावन भेज दो और उनके यहां जन्मी कन्या को लाकर कंस के हवाले कर दो। इस समय वातावरण अनुकूल नहीं है। फिर भी तुम चिंता न करो। कारागार मे जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के फाटक अपने आप खुल जाएंगे और उफनती अथाह यमुना तुमको पार जाने का मार्ग दे देगी। उसी समय वसुदेव नवजात शिशु-रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और अथाह यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे। वहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के पास सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए। कारागृह के फाटक पूर्ववत बंद हो गए। अब कंस को सूचना मिली कि वसुदेव-देवकी का आठवा बच्चा पैदा हुआ है। कंस ने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा, परंतु वह कन्या आकाश मार्ग से उड़ गई और कहा- अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारने वाला तो वृंदावन में पैदा हो चुका है। वह जल्द ही तुझे मार कर मथुरा नगरी को तेरे अन्याय एवं अत्याचार से मुक्ती प्रदान करेगा। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की कथा, हमें यही सन्देश देती है कि पापी अत्याचारी कितना ही बडा क्यो न हो। जीवन में एक दिन वह अवश्य ही अपने कर्मो का फल प्राप्त करता है। इसके लिए ही भगवान का पृथ्वी पर अवतरण होता है। आओं भगवान श्रीकृष्ण के जन्म दिवस के पावन अवसर पर हम सभी व्रत धारण करे कि हम जीवन में सदैव सद्कर्मो का अनुसरण करेगे तथा अपने मन, वचन तथा कर्म से किसी को भी दुखः नही पहुॅचायेगे। तभी सनातन धर्म के प्रतीक इस महापर्व को मनाने की सार्थकता सिद्व होती है।

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