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अहिल्याबाई होल्कर की पुण्यतिथि भारतीय नारियों के साहस और समर्पण को नमन : स्वामी चिदानन्द सरस्वती


परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने आज अहिल्लयाबाई होल्कर की पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये कहा कि अहिल्लाबाई ने कन्याकुमारी से हिमालय तक और द्वारिका से लेकर पुरी तक अनेक मंदिर, घाट, तालाब, बावड़ियाँ, धर्मशालाएं, कुएं, भोजनालय, आदि बनवाये थे।

रिपोर्ट  - ALL NEWS BHARAT

ऋषिकेश, 13 अगस्त। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने आज अहिल्लयाबाई होल्कर की पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये कहा कि अहिल्लाबाई ने कन्याकुमारी से हिमालय तक और द्वारिका से लेकर पुरी तक अनेक मंदिर, घाट, तालाब, बावड़ियाँ, धर्मशालाएं, कुएं, भोजनालय, आदि बनवाये थे। उन्होेंने काशी का प्रसिद्ध विश्वनाथ और अन्य स्थानों पर प्रसिद्ध मंदिर एवं घाट का निर्माण और जीर्णोद्धार करवाया था, यह सब उनकी सेवा और धर्मपरायणता का उत्कृष्ट उदाहरण है। उनके द्वारा करवाया गया निर्माण कार्य स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता हैं। आज उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें और उनके कार्यो को नमन। अहिल्ला बाई ने मालवा का राजपाठ सम्भाला और सम्पूर्ण भारत को नारी की शक्ति से परिचय करवाया। उन्होंने नारियों की सेना बनाई और स्वयं उस सेना का नेतृत्व भी किया तथा पेशवा के सामने अपने राज्य की ढ़ाल बनकर खड़ी रही। स्वामी जी ने कहा कि अहिल्या बाई भारत की वीरांगनाओं में से एक थी। उनके साहसिक कार्यों और धर्मनिष्ठा के लिये उन्हे ंहमेशा याद किया जायेगा। भारत की नारिया ंहमेशा से ही साहस और समर्पण की प्रतिमूर्ति रही है और आज भी है, जरूरत है तो उन्हें सम्मान देने की। अहिल्याबाई वास्तव में न्याय और धर्म की प्रतिमूर्ति थीं। हिन्दुस्तान के इतिहास में यह एक बड़ा अद्भुत समय था जब राज्य कार्य की धुरी एक उपासना परायण, धर्मनिष्ठ नारी के हाथ में सौंपी गयी थी। भारत के इतिहास में एक समय ऐसा भी आया जब एक नारी कुशलता से राज कार्य चला रही थी। कहा जाये तो उस समय मराठों ने एक ऐसा प्रयोग किया कि राज्य की शक्ति अहिल्याबाई के हाथ में सौंप दी और उन्होंने बहुत अच्छी तरह राज्य चलाया। अपने ज्ञान, संयम और शस्त्रबल से दुनिया को जीतने का प्रयास किया और प्रेम से व धर्म से दुनिया को प्रभावित भी किया। अहिल्लाबाई होल्कर की दो प्रकार की विचारधाराएँ थी उन्होंने अंधविश्वासों और रूढ़ियों को समाप्त करने का पूरा प्रयास किया। वह उस समय अँधेरे में प्रकाश-किरण के समान थीं, अपने उत्कृष्ट विचारों एवं नैतिक आचरण के चलते ही समाज में उन्होने श्रेष्ठ स्थान प्राप्त किया और उनके द्वारा किये गये सेवा कार्यो के लिये उन्हे ंहमेशा याद किया जायेगा। स्वामी जी ने कहा कि जिस समय अहिल्लाबाई ने राजगद्दी सम्भाली तब वह मात्र 30 वर्ष की विधवा थीं। उन्होंने अपने प्रशासन को बखूबी सम्भाला और वे राजकाज करने में सफल भी हुई। वे शान्तिप्रिय महिला थी उन्होंने युद्धों को टाला और हमेशा शांति कायम रखने का प्रयास किया। उन्होंने अपने राज्य और प्रजा को हमेशा खुशहाल रखने का प्रयास किया। ऐसी वीरांगना को भावभीनी श्रद्धांजलि।

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