घी-तà¥à¤¯à¤¾à¤° के अवसर पर मानव अधिकार संरकà¥à¤·à¤£ समिति के पà¥à¤°à¤¾à¤‚तीय अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· हेमंत सिंह नेगी ने कहा कि हमारा देश पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ काल से ही कृषि पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ देश रहा है । यहां पर कृषि, किसान, पशॠतथा ऋतॠसे संबंधित अनेक परà¥à¤µ मनाठजाते हैं।
रिपोर्ट - allnewsbharat.com
घी-तà¥à¤¯à¤¾à¤° के अवसर पर मानव अधिकार संरकà¥à¤·à¤£ समिति के पà¥à¤°à¤¾à¤‚तीय अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· हेमंत सिंह नेगी ने कहा कि हमारा देश पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ काल से ही कृषि पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ देश रहा है । यहां पर कृषि, किसान, पशॠतथा ऋतॠसे संबंधित अनेक परà¥à¤µ मनाठजाते हैं। कोई परà¥à¤µ खेती के परिपकà¥à¤µ होने व काटे जाने के वकà¥à¤¤ तथा कोई परà¥à¤µ खेती के बोने के समय पर मनाया जाता है। ये परà¥à¤µ अलग-अलग राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में वहां के ऋतà¥-परिवरà¥à¤¤à¤¨ तथा वहां पर होने वाली फसल के हिसाब से मनाठजाते हैं । उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड में à¤à¥€ ऋतॠपरिवरà¥à¤¤à¤¨ के वकà¥à¤¤, किसान, पशॠऔर फसलों को लेकर कई तरह के उतà¥à¤¸à¤µ मनाठजाते हैं। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ काल से यहां के लोगों का खासकर कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ के पहाड़ी à¤à¥‚à¤à¤¾à¤— में लोगों का पà¥à¤°à¤®à¥à¤– वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ कृषि और पशॠही हैं। विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ ऋतà¥à¤“ं में होने वाली पैदावार, फल, फूल, अनाज को इन परà¥à¤µà¥‹à¤‚ से जोड़कर उसके महतà¥à¤µ को समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ गया है । इनके वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• आधार à¤à¥€ हैं जिनकी जानकारी हमारे पूरà¥à¤µà¤œà¥‹à¤‚ को थी। जिसे लोग बड़े उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ और उमंग के साथ मनाते हैं । à¤à¤¸à¤¾ ही à¤à¤• तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° है घी-तà¥à¤¯à¤¾à¤° (अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ घी तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤°) à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ राजà¥à¤¯ उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ का à¤à¤• लोक उतà¥à¤¸à¤µ है। उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड में हिंदू कैलेंडर अनà¥à¤¸à¤¾à¤° संकà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿ को लोक परà¥à¤µ के रूप में मनाने का पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ रहा है। वरà¥à¤·à¤¾ ऋतॠके बाद आने वाले इस तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° में कृषक परिवारों के पास दूध व घी की कोई कमी नहीं होती हैं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वरà¥à¤·à¤¾ काल में पशà¥à¤“ं के लिठहरा घास व चारा पà¥à¤°à¤šà¥à¤° मातà¥à¤°à¤¾ में उपलबà¥à¤§ होता हैं। इसी कारण दà¥à¤§à¤¾à¤°à¥ जानवर पालने वाले लोगों के घर में दूध व धी की कोई कमी नहीं होती है। यह सब आसानी से वह पà¥à¤°à¤šà¥à¤° मातà¥à¤°à¤¾ में उपलबà¥à¤§ हो जाता है और इस मौसम में घी खाना सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ के लिठअतà¥à¤¯à¤§à¤¿à¤• लाà¤à¤¦à¤¾à¤¯à¤• à¤à¥€ माना जाता है। यह शरीर को नई ऊरà¥à¤œà¤¾ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करता है तथा बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के सिर में à¤à¥€ घी की मालिश करना अति उतà¥à¤¤à¤® समà¤à¤¾ जाता है। बदलते समय में घी संकà¥à¤°à¤¾à¤‚ति के इस तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° का असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ लगà¤à¤— खतà¥à¤® हो गया है। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि अधिकतर लोगों ने पशà¥à¤ªà¤¾à¤²à¤¨ व खेती करना छोड़ दिया है। लेकिन अà¤à¥€ à¤à¥€ उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड के गांव में जो लोग कृषि का कारà¥à¤¯ व पशà¥à¤ªà¤¾à¤²à¤¨ का कारà¥à¤¯ करते हैं वो इस तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° को आज à¤à¥€ बड़े शौक से मनाते हैं।