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छोटे फुटकर व्यापार की रही सही कसर ई - मार्केटिंग में गई


लगभग 10 महीने से उत्तराखंड मैं व्यापारिक गतिविधियां ठप हैं। नुकसान का अनुमान लगाना सहज है। उत्तराखंड में अक्टूबर के बाद ऑक्सीजन हो जाता है। मार्च से यात्रियों और पर्यटकों का आना जाना शुरू होता है जिसको चारधाम यात्रा सीजन के नाम से जाना जाता है।

रिपोर्ट  - à¤°à¤¤à¤¨à¤®à¤£à¥€ डोभाल

लगभग 10 महीने से उत्तराखंड मैं व्यापारिक गतिविधियां ठप हैं। नुकसान का अनुमान लगाना सहज है। उत्तराखंड में अक्टूबर के बाद ऑक्सीजन हो जाता है। मार्च से यात्रियों और पर्यटकों का आना जाना शुरू होता है जिसको चारधाम यात्रा सीजन के नाम से जाना जाता है। इस बार वैश्विक महामारी कोरोना के चलते मार्च में यात्रा शुरू होने के समय लॉकडाउन हो गया जो अघोषित रूप से खुलने के बाद भी जारी है क्योंकि यात्रा बंद है। जीवन बचाने तथा वायरस का संक्रमण न फैले ऐसा करना जरूरी समझा गया। यह अलग बात है कि संक्रमण तो फैल रहा है। लॉक डाउन का सबसे बुरा प्रभाव छोटे-मोटे कारोबार करने वाले व्यापारियों पर पड़ा है उनको हुई क्षति का अनुमान लगाना मुश्किल है। मोदी सरकार द्वारा ई- मार्केटिंग की नीति ने घरेलू व्यापार की कमर ही छोड़ दी है। ब्रेड तक ऑनलाइन आ रही है। सोचिए यात्रा सीजन में जो लोग यात्रा मार्ग पर सड़क किनारे बैठ कर नींबू पानी, खीरा, मूगरी (भुट्टा) बेचकर गुजारा करते थे वह किस हालत में होंगे। होटल, रेस्टोरेंट मार्च से ही बंद हैं। लॉकडाउन में पंसारियों ने तो एक्सपायरी माल भी निकाल दिया है इसके अलावा सबकुछ ठप है। रिक्शा, ऑटो रिक्शा, विक्रम, टेंपो ट्रैवलर, निजी टूरिस्ट बसें, ट्रैवल्स व्यवसाय, कंबल व्यवसाय मार्च से चौपट है। स्थिति की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कंबलों की 9 दुकानों का मालिक दुकान के बाहर सब्जी की दुकान खोलकर बैठा है। चलाने वाले सब्जी की ठेली गली-गली घुमा रहे हैं। बैंकों से लिए कर्ज की किश्त चुकानी मुश्किल हो गई है। प्रॉपर्टी व्यवसाय में पैसा लगाने वाले हैं डूबे पड़े हैं। लगता है यह विषय सरकार के एजेंडे में है ही नहीं। हो भी क्यों इस पर तो हमारे यहां चुनाव होता नहीं है। चुनाव का एजेंडा रोटी-रोजी से अलग मंदिर- मस्जिद, अगड़े- पिछड़े, दलित- मुस्लिम होता है। उत्तराखंड का एजेंडा मुख्यमंत्री ने गैरसैंण में जमीन खरीद का बना दिया है। वर्ष 2004 तक देश में एक उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल हुआ करता था जो जो व्यापारियों और व्यापार के बारे में सोचता था। सरकारों के साथ संघर्ष करता था। उत्तराखंड में भी वह बहुत प्रभावशाली था और हरिद्वार उसका प्रमुख केंद्र रहा। संघ की राजनीतिक भाजपा के मजबूत होने के बाद उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल नाम की संस्था बनकर रह गया। व्यापारियों के साथ खड़ा होने के स्थान पर वह भाजपा के साथ खड़ा होने लगा।आर एस एस ने उसके अंदर जबरदस्त घुसपैठ की है। नतीजा दुकानों से अधिक व्यापार मंडल के रूप में सामने है। अगर उद्योग व्यापार प्रतिनिधिमंडल व्यापारियों का हितैषी संगठन होता तो सरकार से व्यापारियों को बिजली-पानी, गृहकर से छूट दिलाना कोई बड़ा काम व मांग नहीं थी। लॉक डाउन की अवधि में बैंक ऋण पर ब्याज की माफ करने का दबाव बनाया जा सकता था।

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