Latest News

सम्मान और प्रेम ही तो भारतीय संस्कृति-स्वामी चिदानन्द सरस्वती


दुनिया भर में प्रतिवर्ष 21 अगस्त को विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस मनाया जाता है। यह दिवस युवाओं में वृद्धों के प्रति जागरूकता और मदद की भावना को बढ़ाने हेतु मनाया जाता है।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश। दुनिया भर में प्रतिवर्ष 21 अगस्त को विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस मनाया जाता है। यह दिवस युवाओं में वृद्धों के प्रति जागरूकता और मदद की भावना को बढ़ाने हेतु मनाया जाता है। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आज का दिन हमें यह याद दिलाता है कि हमारे बड़ों ने हमारी परवरिश हेतु अपना सब कुछ समर्पित किया, उन्होंने अपनी खुशियों का त्याग कर हमें उपलब्धियां हासिल करने का अवसर दिया। हम सभी आज जिस मुकाम पर खड़े है उसके लिये उन्होंने जीवन भर हमारी सेवा की। वास्तव में इस समर्पण के लिये एक दिन पर्याप्त नहीं है, यह दिन तो प्रतीक मात्र है। माता-पिता और अपने वृद्धों ने जो त्याग किया उसका ऋण पूरे जीवन में नहीं चुकाया जा सकता इसलिये सबसे जरूरी है, वृद्धों के प्रति सम्मान बनायें रखे, उनके साथ प्रतिदिन थोड़ा सा समय व्यतित करें और प्रेम से उनकी समस्याओं का समाधान करें। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज हरितालिका तीज के पावन अवसर पर भारत की सभी सुहागिन माताओं और बहनों को शुभकामनायें देते हुये कहा कि भारतीय संस्कृति बहुत ही दिव्य और अद्भुत है। हमारे पूर्वजों ने सभी त्योहारों को प्रकृति से जोड़कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया है, उसी में से एक है हरितालिका तीज। आज के दिन माता पार्वती ने अपने आराध्य भगवान शिव का बिल्वपत्र और अनेक प्रकार के पेड़ो की पत्तियों से पूजन किया था तब से यह दिव्य परम्परा चली आ रही है। स्वामी जी ने कहा कि जब हम पौधों का रोपण और संरक्षण करेंगे तभी तो हमें आॅक्सीजन और पूजन सामग्री प्राप्त होगी। त्योहार हमें याद दिलाते है कि हमारे जीवन के लिये पौधों का रोपण और संवर्द्धन कितना जरूरी है। स्वामी जी ने कहा कि कोविड-19 के दौरान वृद्धों को बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा क्योंकि कई बुजुर्ग अपने बच्चों से अलग रहते है। बच्चें अपनी शिक्षा या नौकरी हेतु बाहर रहते है ऐसे में बुजुर्ग माता-पिता अकेले रह जाते है विशेष तौर पर वृद्धावस्था ने उन्हें मदद की ज्यादा जरूरत होती है। कोविड-19 के दौरान जब लाॅकडाउन था और अब भी चारों ओर कोरोना का खतरा मंडरा रहा है ऐसे में वृद्धों की मदद करना, उन्हें जरूरत की वस्तुयें पहुंचाना, दवाईयां और फल की व्यवस्था जैसे छोटी-छोटी मदद उनके जीवन को आसान बना सकती है। स्वामी जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति तो अर्पण, तर्पण और सर्मपण की संस्कृति है। माता-पिता, बच्चों को जन्म देते है, बेहतर जीवन और उत्तम शिक्षा देने के लिये अपना सब न्यौछावर करते है। बच्चों का कर्तव्य है कि अपने माता-पिता और वृद्धजनों का ध्यान रखें, उनकी जरूरतों को पूरा करें और उन्होंनेे जो प्रेम अपने बच्चों पर लूटाया है उससे अधिक प्रेम की जरूरत उन्हें वृद्धावस्था में होती है। सम्मान और प्रेम करना तो हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा है इस हेतु किसी दिन या किसी कानून की जरूरत नहीं होनी चाहिये बल्कि यह तो सभी का नैतिक कर्तव्य भी है। उन्होंने युवा पीढ़ी का आह्वान करते हुये कहा कि आईये सभी संकल्प करें की हमारे घर, आस-पास या सम्पर्क में जो भी वृद्ध है उनका सम्मान करेंगे और उनकी मदद के लिये हमेशा तत्पर रहेंगे।

Related Post