à¤à¤¾à¤°à¤¤ देश à¤à¤• लोकतांतà¥à¤°à¤¿à¤• देश है और इसके लोकतंतà¥à¤° की सारी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ मे दà¥à¤¹à¤¾à¤ˆ दी जाती है लेकिन कà¥à¤¯à¤¾ वासà¥à¤¤à¤µ में इस देश मे लोकतांतà¥à¤°à¤¿à¤• वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ मजबूत है या अंतिम साà¤à¤¸à¥‡ ले रहा है ? सवाल बहà¥à¤¤ बड़ा है।
रिपोर्ट - सचिन तिवारी
à¤à¤¾à¤°à¤¤ देश à¤à¤• लोकतांतà¥à¤°à¤¿à¤• देश है और इसके लोकतंतà¥à¤° की सारी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ मे दà¥à¤¹à¤¾à¤ˆ दी जाती है लेकिन कà¥à¤¯à¤¾ वासà¥à¤¤à¤µ में इस देश मे लोकतांतà¥à¤°à¤¿à¤• वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ मजबूत है या अंतिम साà¤à¤¸à¥‡ ले रहा है ? सवाल बहà¥à¤¤ बड़ा है और इसका जवाब à¤à¥€ छोटा नही हो सकता इसको समà¤à¤¨à¥‡ के लिठहमे à¤à¤¾à¤°à¤¤ देश की आजादी से लेकर अà¤à¥€ तक की घटनाओं पर नजर डालनी पड़ेगी , लोकतंतà¥à¤° की सीà¥à¥€ का पहला पॉयदान आजादी है , सबसे पहले हमें इस आजादी का मतलब समà¤à¤¨à¤¾ पड़ेगा , कहने को तो हम सब आजाद है और देश के संविधान के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° सबके पास अधिकार और करà¥à¤¤à¤¬à¥à¤¯ हैं जिनको सबको निà¤à¤¾à¤¨à¤¾ है , लेकिन सवाल यह है कि कà¥à¤¯à¤¾ वासà¥à¤¤à¤µ में à¤à¤¸à¤¾ है कि सब आजाद हैं, कà¥à¤¯à¤¾ देश मे रहने वाला आम आदमी आजाद है , कà¥à¤¯à¤¾ देश का अधिकारी वरà¥à¤— आजाद है , कà¥à¤¯à¤¾ देश मे नौकरी करने वाला आजाद है , कà¥à¤¯à¤¾ देश का नौजवान , महिला , बचà¥à¤šà¥‡ आजाद है ? यहाठपर आजादी का मतलब संविधान के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° मील अधिकारों से है , लेकिन संविधान के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° मिले अधिकारों के बाद à¤à¥€ आज हर à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ किसी न किसी का गà¥à¤²à¤¾à¤® है वो अपने न तो करà¥à¤¤à¤¬à¥à¤¯ निà¤à¤¾ पा रहा न ही वो अपने अधिकारों का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— कर पा रहा है , हर à¤à¤• जूनियर अपने सीनियर का गà¥à¤²à¤¾à¤® है , वो अपने अधिकारों का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— नही कर पाता उसका संविधान और उसका करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ सिरà¥à¤« सीनियर की बात को मानना है फिर वो गलत हो या सही , फिर इसमें चाहे पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨ हो पारà¥à¤Ÿà¥€ हो या कोई पà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¥‡à¤Ÿ संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ हो । हर à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ गà¥à¤²à¤¾à¤®à¥€ की जिंदगी जी रहा । फिर हम कैसे कह सकते है कि देश आजाद है । और कैसे कह सकते है कि देश संविधान के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° चल रहा है । à¤à¤¸à¤¾ लग रहा है जैसे लोकतंतà¥à¤° अनà¥à¤¤à¤¿à¤® साà¤à¤¸à¥‡ ले रहा है! सतà¥à¤¤à¤¾ की à¤à¥‚ख चरम सीमा पर है! सतà¥à¤¤à¤¾ के लिये हिनà¥à¤¦à¥‚ मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤®à¥‹à¤‚ के मन में ज़हर पैदा किया जा रहा है! यà¥à¤¨à¤¿à¤µà¤°à¥à¤¸à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾à¤ सà¥à¤²à¤— रही हैं! छातà¥à¤° पढ़ाई छोड़ कर आनà¥à¤¦à¥‹à¤²à¤¨ कर रहे हैं ! वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° ठप पड़ गया है! राजा महाराओं की तरह जनता के पैसे पर à¤à¤¶ करते मंतà¥à¤°à¥€,सांसद,विधायक मौज ले रहे हैं ?कà¥à¤¯à¤¾ यही लोकतंतà¥à¤° है? à¤à¤¾à¤°à¤¤ के करोड़ों यà¥à¤µà¤¾ बेरोजगारी का दंश à¤à¥‡à¤² रहे हैं! à¤à¤¾à¤°à¥€ मातà¥à¤°à¤¾ में लोग à¤à¥‚खे मर रहे हैं! पर चंद मà¥à¤Ÿà¥à¤ ी à¤à¤° लोग जनता के पैसे पर à¤à¤¶ कर रहे हैं! कà¥à¤¯à¤¾ यही लोकतंतà¥à¤° है?लोकतंतà¥à¤° के नाम पर नेतागीरी करने वाले लोकतंतà¥à¤° का गला घोंट रहे हैं, जनता के मन से लोकतंतà¥à¤° का मोह à¤à¤‚ग हो रहा है, लोकतंतà¥à¤° के नाम पर गनà¥à¤¦à¥€ राजनीति हो रही है! जन सेवा के नाम पर निजी सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥ की राजनीति हो रही है! जन सेवा के नाम पर राजनीतिक नेताओं का à¤à¤• दूसरे पर आरोप पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‹à¤ªà¤£ करना और साथ मे लोकतंतà¥à¤° की दà¥à¤¹à¤¾à¤ˆ देना à¤à¤¸à¤¾ लगता है जैसे लोकतंतà¥à¤° की देवी को बीच मे खड़ी करके उसका साथ मिलकर चीरहरण कर रहे हो । कोई नेता दलितों का मसीहा होने का नाटक करता है कोई अनà¥à¤¯ जाति विशेष का, सतà¥à¤¯à¤¤à¤¾ यह है कि जातियाठअपनी जगह पर रह गयीं, जातियों के मसीहा बनने वाले आगे बढ़ गये! लोकतंतà¥à¤° के पहरूओं का नाटक देखते- देखते जनता आज़िज़ आ चà¥à¤•à¥€ है! और à¤à¤¸à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता लोकतंतà¥à¤° अब समापà¥à¤¤à¤¿ की ओर है! लोकतंतà¥à¤° का आननà¥à¤¦ चंद मà¥à¤Ÿà¥à¤ ी à¤à¤° लोगों को उठाते देख कर जनता अब लोकतंतà¥à¤° की सतà¥à¤¯à¤¤à¤¾ को समठचà¥à¤•à¥€ है! यह कहना गलत नहीं होगा कि à¤à¤¾à¤°à¤¤ में सिसकती साà¤à¤¸à¥‹ के साथ लोकतंतà¥à¤° दम तोड़ रहा है! कोई à¤à¥€ सà¤à¥à¤¯ समाज नियमों से ही चल सकता है। जनहितकारी नियमों को बनाने और उनके परिपालन को सà¥à¤¨à¤¿à¤¶à¥à¤šà¤¿à¤¤ करने के लिठशासन की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ होती है। राजतंतà¥à¤°, तानाशाही, धारà¥à¤®à¤¿à¤• सतà¥à¤¤à¤¾ या लोकतंतà¥à¤°, नामांकित जनपà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ जैसी विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ शासन पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में लोकतंतà¥à¤° ही सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ माना जाता है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि लोकतंतà¥à¤° में आम आदमी की सतà¥à¤¤à¤¾ में à¤à¤¾à¤—ीदारी सà¥à¤¨à¤¿à¤¶à¥à¤šà¤¿à¤¤ होती है à¤à¤µà¤‚ उसे à¤à¥€ जन नेतृतà¥à¤µ करने का अधिकार होता है। विधायिका के जनपà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का चà¥à¤¨à¤¾à¤µ आम नागरिकों के सीधे मतदान के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ किया जाता है किंतॠहमारे देश में आजादी के बाद के अनà¥à¤à¤µ के आधार पर, मेरे मत में इस चà¥à¤¨à¤¾à¤µ के लिठपारà¥à¤Ÿà¥€à¤µà¤¾à¤¦ तथा चà¥à¤¨à¤¾à¤µà¥€ जीत के बाद संसद à¤à¤µà¤‚ विधानसà¤à¤¾à¤“ं में पकà¥à¤· विपकà¥à¤· की राजनीति ही लोकतंतà¥à¤° की सबसे बड़ी कमजोरी के रूप में सामने आई है। सतà¥à¤¤à¤¾à¤ªà¤•à¥à¤· कितना à¤à¥€ अचà¥à¤›à¤¾ बजट बनाये या कोई अचà¥à¤›à¥‡ से अचà¥à¤›à¤¾ जनहितकारी कानून बनाये, विपकà¥à¤· उसका विरोध करता ही है। उसे जनविरोधी निरूपित करने के लिठतरà¥à¤• कà¥à¤¤à¤°à¥à¤• करने में जरा à¤à¥€ पीछे नहीं रहता। à¤à¤¸à¤¾ केवल इसलिठहो रहा है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वह विपकà¥à¤· में है। हमने देखा है कि वही विपकà¥à¤·à¥€ दल जो विरोधी पारà¥à¤Ÿà¥€ के रूप में जिन बातों का सारà¥à¤µà¤œà¤¨à¤¿à¤• विरोध करते नहीं थकता था, जब सतà¥à¤¤à¤¾ में आया तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¥€ वही सब किया और इस बार पूरà¥à¤µ के सतà¥à¤¤à¤¾à¤§à¤¾à¤°à¥€ दलों ने उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ तथà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का पà¥à¤°à¤œà¥‹à¤° विरोध किया जिनके कà¤à¥€ वे खà¥à¤²à¥‡ समरà¥à¤¥à¤¨ में थे। इसके लिये लचà¥à¤›à¥‡à¤¦à¤¾à¤° शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ का मायाजाल फैलाया जाता है।  à¤à¤¸à¤¾ बार-बार लगातार हो रहा है, अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ हमारे लोकतंतà¥à¤° में यह धारणा बन चà¥à¤•à¥€ है कि विपकà¥à¤·à¥€ दल को सतà¥à¤¤à¤¾ पकà¥à¤· का विरोध करना ही चाहिये। शायद इसके लिये सà¥à¤•à¥‚लों से ही  वादविवाद पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤—िता की जो अवधारणा बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के मन में अधिरोपित की जाती है, वही जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤° हो। वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤•à¤¤à¤¾ यह होती है कि कोई à¤à¥€ सतà¥à¤¤à¤¾à¤°à¥‚ढ़ दल सब कà¥à¤› सही या सब कà¥à¤› गलत नहीं करता। सचà¥à¤šà¤¾Â  लोकतंतà¥à¤° तो यह होता कि मà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‡ के आधार पर पारà¥à¤Ÿà¥€ निरपेकà¥à¤· वोटिंग होती, विषय की गà¥à¤£à¤µà¤¤à¥à¤¤à¤¾ के आधार पर बहà¥à¤®à¤¤ से निरà¥à¤£à¤¯ लिया जाता पर à¤à¤¸à¤¾ हो नहीं रहा है। अनà¥à¤à¤µà¥‹à¤‚ से यह सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ होता है कि हमारी संवैधानिक वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ में सà¥à¤§à¤¾à¤° की वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• संà¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ है। दलगत राजनैतिक धà¥à¥à¤µà¥à¤°à¥€à¤•à¤°à¤£ à¤à¤µà¤‚ पकà¥à¤· विपकà¥à¤· से ऊपर उठकर मà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‹à¤‚ पर आम सहमति या बहà¥à¤®à¤¤ पर आधारित निरà¥à¤£à¤¯ ही विधायिका का निरà¥à¤£à¤¯ हो, à¤à¤¸à¥€ सतà¥à¤¤à¤¾à¤ªà¥à¤°à¤£à¤¾à¤²à¥€ के विकास की जरूरत है। इसके लिठजनशिकà¥à¤·à¤¾ को बढ़ावा देना तथा आम आदमी की राजनैतिक उदासीनता को तोडऩे की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ दिखती है। जब à¤à¤¸à¥€ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ लागू होगी, तब किसी मà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‡ पर कोई 51 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ या अधिक जनपà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿ à¤à¤• साथ होगें तथा किसी अनà¥à¤¯ मà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‡ पर कोई अनà¥à¤¯ दूसरे 51 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ जनपà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿, जिनमें से कà¥à¤› पिछले मà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‹à¤‚ पर à¤à¤²à¥‡ ही विरोधी रहे हों, साथ होंगे तथा दोनों ही मà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‡ बहà¥à¤®à¤¤ के कारण पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¥€ रूप से कानून बनेंगे। कà¥à¤¯à¤¾ हम निहित सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥à¥‹ से ऊपर उठकर à¤à¤¸à¥€ आदरà¥à¤¶ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ की दिशा में बढ़ सकते है à¤à¤µà¤‚ संविधान में इस तरह के संशोधन कर सकते हैं। यह खà¥à¤²à¥€ बहस का à¤à¤µà¤‚ वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• जनचरà¥à¤šà¤¾ का विषय है जिस पर अखबारों, सà¥à¤•à¥‚ल कालेज, बार à¤à¤¸à¥‹à¤¸à¤¿à¤¯à¥‡à¤¶à¤¨, वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¤¿à¤• संघ, महिला मोरà¥à¤šà¥‡, मजदूर संगठन आदि विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ मंचों पर खà¥à¤²à¤•à¤° चरà¥à¤šà¤¾ होने की जरूरत हैं।Â