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दूरदर्शन का 61 साल का बेमिसाल सफ़र, कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के लोकप्रिय हुआ दूरदर्शन


1959 के दिन दिल्ली में पहले टेलीविजन प्रसारण की शुरुआत हुई थी. उस समय इसे ‘टेलीविजन इण्डिया’ नाम दिया गया. इस वक़्त इस परिवार में एक ट्रांसमीटर और 18 टेलीविजन सेट ही हुआ करते थे.

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

देहरादून। 1959 के दिन दिल्ली में पहले टेलीविजन प्रसारण की शुरुआत हुई थी. उस समय इसे ‘टेलीविजन इण्डिया’ नाम दिया गया. इस वक़्त इस परिवार में एक ट्रांसमीटर और 18 टेलीविजन सेट ही हुआ करते थे. सप्ताह में 3 दिन आधे-आधे घंटे के शैक्षिक और प्रचारात्मक कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता था. 15 अगस्त 1965 को दूरदर्शन के पहले समाचार बुलेटिन की शुरुआत हुई जो बदस्तूर जारी है. इस समय तक रेडियो ही मनोरंजन का ऐसा साधन हुआ करता था जिसकी पहुँच घर तक थी. टेलीविजन के बाद 1970 में टेप और वीसीआर ने दस्तक दी. दिल्ली के बाद बम्बई (1972) मद्रास, कलकत्ता (1975) में दूरदर्शन की शुरुआत हुई. 1975 तक यह सेवा देश के 7 बड़े शहरों तक सीमित थी. 1975 में ही टेलीविजन इंडिया को दूरदर्शन नाम दिया गया. यह नाम देश में विजुअल मीडिया का पर्याय बन गया. इस वक्त इसे लोग कौतुहल कि दृष्टि से जरूर देखते थे मगर इसका वह मान नहीं था जो कि बाद में हुआ. इस वक़्त तक भी रेडियो भारतीय जनजीवन का अभिन्न हिस्सा हुआ करता था. 80 के दशक में टेलीविजन को प्रमुख प्रसार माध्यम बनाने की गरज से स्थापित करने की शुरुआत हुई. 1982 में दिल्ली में एशियाई खेलों का आयोजन किया जाना था, सो सरकार ने नए ट्रांसमीटर लगाकर इसके प्रसारण के दायरे को बढ़ाना शुरू किया. एशियाई खेलों के दौरान ही दूरदर्शन को रंगीन भी किया गया. जिन लोगों के पास उस दौरान नयी नवेली दुल्हन की तरह 7 पर्दों में छिपाकर रखे गए श्वेत-श्याम टेलीविजन सेट हुआ करते थे उन्होंने इसकी स्क्रीन पर प्लास्टिक की नीली स्क्रीन चढ़ा दी. इस नीली स्क्रीन के बीच में एक पीले-गुलाबी रंग का भारत का नक्शा सा बना हुआ रहता था. इससे असमान नीला सा और किरदारों के मुंह पीले से हो जाते थे, जिससे रंगों का आभास मिलता था. ब्लैक एंड व्हाइट टीवी सेट एक भव्य लकड़ी के बक्से के भीतर रहता था. आगे बाकायदा दायें-बाएं खुलने वाला चैनलनुमा गेट हुआ करता था. इस वक़्त टेलीविजन की वह कुकुरगत नहीं थी जो कि आज दिखाई देती है.इन दिनों तक भी प्रसारण ट्रांसमीटर बड़े शहरों में ही हुआ करते थे. छोटे शहरों, कस्बों में इस प्रसारण को ‘कैच’ करने के लिए 50 फीट ऊँचे एंटीना लगा करते थे, जिन्हें फंसाने के लिया बाकायदा सीमेंट की चिनाई तक करवा दी जाती थी. इस एंटीना को घुमाकर प्रसारण ‘कैच’ किया जाता था. बाकायदा एक बंदा छत पर इसे घुमाता और दूसरा टीवी पर बैठा उसे संकेत देता. ‘अबे! जहाँ पहले था वहां सही है’, जैसे समवेत स्वर किसी भी महत्वपूर्ण कार्यक्रम से पहले मोहल्ले में गुंजायमान होते थे.

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